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दीदी, अब आपका चुप रहना ठीक नहीं है…

हमारी कोई नहीं सुनेगा, कोई उलटा मुझ पर ही इल्जाम लगा देंगे और भाभी मेरी शादी के लिए मुश्किलें होगी। आप प्लीज चुप रहिए, आपको मेरी कसम।

हमारी कोई नहीं सुनेगा, कोई उलटा मुझ पर ही इल्जाम लगा देंगे और भाभी मेरी शादी के लिए मुश्किलें होगी। आप प्लीज चुप रहिए, आपको मेरी कसम।

चेतावनी : इस लेख में यौनिक हिंसा का विवरण है जो आपको परेशान कर सकता है 

“निशि दी! आप इतना चुप चुप क्यों रहती हैं, क्या बात हैं बताइये ना…”

“नहीं भाभी! आप अभी अभी परिवार में शामिल हुई हैं तो आपको ऐसा लग रहा है।”

“लेकिन दी आपकी खामोशी कुछ और ही कह रही है।”

“नहीं नहीं भाभी, ऐसा कुछ नहीं हैं, आप अपनी जिंदगी के नये सफर का सोचिये।”

हम अपनों के बीच ख़ुद को कितना सहज़ और सुरक्षित महसूस करते हैं, सबका साथ हमें हर तरह की परिस्थिति से लड़ने में मदद करता है लेकिन क्या हो जब परिवार के ही किसी सदस्य से आप असुरक्षित महसूस करें। ऐसा ही कुछ हुआ था निशि दीदी के साथ…

मैं आराध्या तिवारी भोपाल में रहती हूँ,अमन तिवारी मेरे पति हैं। उनकी और मेरी शादी को अभी एक महीना ही हुआ था। बहुत ख़ुश थे हम सभी लेकिन एक दिन मैंने देखा निशि दी बहुत शांत लग रही थीं जबकि शादी में वो बहुत खुश थीं। ना जाने ऐसा क्यों था? मैंने पूरी कोशिश की उनसे पूछने की, पर ना जाने वो क्यों खमोश थीं।

अमन और मेरी लव मैरिज हुई थी, लेकिन उनके परिवार से मिलकर कभी ऐसा लगा ही नहीं कि मैं उनसे अनजान हूँ! निशि दी से तो मेरा बहन जैसा रिश्ता बन गया था लेकिन कुछ दिनों से वो बहुत खामोश थीं।

अमन के पापा थे और मम्मी का स्वर्गवास हो चुका और दीदी और अमन को बुआ जी ने पाला था, लेकिन बड़ी भाभी होने के नाते मेरा भी फ़र्ज़ था कि मैं सब जान सकूँ।

निशि दी कुछ तो छुपा रही थीं जिसे वो बाहर नहीं आने देना चाहती थीं और फिर एक दिन वही हुआ जिसका मुझे डर था, दीदी ने आत्महत्या की कोशिश की!

मेरे तो पैरों तले की जमीन निकल गई ये देख सब परेशान हो गये थे, लेकिन सबके जाने के बाद मैंने दी से जोर देकर सब पूछा तो उनके दिल का गुबार फुट पड़ा और जो उन्होंने बताया मेरे होश उड़ गए सुनकर।

“भाभी आप तो जानती हैं, बुआ जी ने माँ के जाने के बाद हमारा बहुत ध्यान रखा। बुआ और फूफा जी ने हमें कोई कमी नहीं होने दी। बचपन से मैं बुआ जी के पास ज्यादा रहती थी। बचपन में तो सब अच्छा था लेकिन जैसे ही मैं बड़ी हुई मुझे एक भयानक सच का सामना करना पड़ा।

एक दिन बुआ जी की अचानक तबियत खराब हो जाने के कारण उनको हॉस्पिटल में रुकना पड़ा।  घर पर मैं अकेली थी, तभी रात को फूफा जी मेरे कमरे में आकर मुझसे बद्तमीज़ी करने लगे।  अचानक उनको ऐसा करता देख मैं डर गई और चिल्ला पड़ी जिसके कारण वो वहाँ से चले गये।

उस दिन के बाद मैं कुछ बिना बोले वहाँ से आ गई और कभी फिर नहीं गई। सबने बहुत पूछा लेकिन मैं इतना डर गई की कुछ नहीं कह पाई। मैंने पापा को भी बताया लेकिन उन्होंने भी यही कहा कि वो परिवार के सदस्य हैं और इतने प्रतिष्ठित भी हैं कि हम कुछ कहेँगे तो हमें ही बदनाम कर देंगे।

कुछ साल सब शांत रहा क्युँकि पापा ने बात की फूफा जी से, इसलिए उनका आना यहाँ कम हो गया, लेकिन भाभी आपकी शादी में जब उनका आना हुआ तो उन्होंने फिर वही करने की कोशिश की। मैं बहुत डर गई थी। शादी का माहौल ना बिगड़े इसलिए मैं चुप रही बस।”

दी इतना बात बता कर फुट फुट कर रोने लगी। मैं ममतमयी माँ की तरह उनको गोद में लिए बैठी रही उनकी एक एक सिसकी मेरा मन कचोट रही थी। मैं सोचकर ही कांप गई थीं उन पर तो बीता था सब।

मैंने उनको संभाला और उनसे बोली, “दीदी जब तक आप उनसे डरेंगी वो ऐसा करेंगे। आप निडर होकर उनसे लड़ें, मैं आपके साथ हूँ। दी मैं अमन से भी बात करुँगी इस बारे में। आप कोई खिलौना नहीं हैं जो कोई भी आपकी आत्मसम्मान के साथ खेंले। आप अपनी आवाज़ उठाइये।”

“नहीं भाभी आपको मेरी कसम आप किसी से कुछ नहीं कहेंगी वरना सब मुझे ही कहेंगे।”

“ये पुरुष प्रधान देश है, हमारी कोई नहीं सुनेगा कोई उलटा मुझ पर ही इल्जाम लगा देंगे और भाभी मेरी शादी के लिए भी मुश्किलें होगी। आप प्लीज चुप रहिएगा, आपको मेरी कसम। आप मेरी अपनी हो इसलिए मैंने आपको बताया था।”

“लेकिन दी आप ऐसे ना बोलकर उनके जैसे इंसान को कैसे बक्श सकती हैं?”

“मुझे कुछ कहना नहीं भाभी, बस…”

मैं दीदी की मज़बूरी समझ रही थी और मन ही मन ये सोच रही थी कि ये कैसी चुप्पी है? ये कैसी मज़बूरी है? हर जगह हम औरतें ही क्यों सहें? जब बात सजा दिलवाने की आती है तो हम चुप क्यों हो जाते हैं? क्यों अपने आत्मसम्मान को ऊपर नहीं रखते? क्यों इस समाज की दकियानूसी सोच को ख़ुद पर हावी कर लेते हैं?

हाँ माना औरत हैं, पर किसी से कमजोर नहीं। क्यों ये पुरुष हमसे जन्म लेकर हमारी ही अवहेलना करता है। इसकी जिम्मेदार हम औरतें भी हैं जो चुप रहकर ऐसे घटिया लोगों को बढ़ावा देती हैं। बस आप ये चुप्पी बहुत हुई, होना तो ये चाहिए कि हम कहें…

नहीं चाहिए ऐसे रिश्तेदार और नहीं चाहिए ऐसा समाज जो हमारी इज्जत ना करे…

अगर दीदी और मेरी जगह आप होते तो आप क्या करते? मुझे कमैंट्स सेक्शन में ज़रूर बताएं।

मूल चित्र : Screenshot from short film Within, YouTube

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