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सपने देखा करती हैं कुछ लड़कियाँ, आसमान को बढ़तीं सीध अपनी नज़र लगा, कभी धरा पर धरी समतल, उलझी सुलझी सी कुछ लड़कियाँ।
बेल के जैसी लचीली होती हैं कुछ लड़कियाँ,जहां तहां बेहिसाब उड़ती फिरती,सपने देखा करती हैं कुछ लड़कियाँ।
थाम लेती हैं कभी किसी गुमसुम पेड़ का तना,या स्वछन्द अपनी दिशा तय कर लेती हैं कुछ लड़कियाँ।काट कर जो रोप दी जाएं कुछ कोंपलें,गमलों में भी सख्त दरख़्त हो लेती हैं कुछ लड़कियाँ।
आसमान को बढ़तीं सीध अपनी नज़र लगा,कभी धरा पर धरी समतल,उलझी सुलझी सी कुछ लड़कियाँ।
धूप छांव बादल बहार,मौसमों को मापती कुछ लड़कियाँ।रूख सूख कर फिर हरा होने का हुनर,पैदा होती ही सीख लेती कुछ लड़कियाँ।
ना मिले दो बूँद भी बारिश की तो क्या,ओस की बूंदों से मन भर लेती हैं कुछ लड़कियाँ।जो न दे दुनिया उन्हें दो गज़ भर की भी ज़मीं,सर्प सी फुँफकार भर बढ़ चढ़ लेती हैं कुछ लड़कियाँ।
ना ना न कहना ये तुम कर सकती नहीं,बस वही कर जाने की ज़िद धर लेती हैं कुछ लड़कियाँ।बेल के जैसी लचीली होती हैं कुछ लड़कियाँ।
मूल चित्र : Arif khan via Pexels
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