कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

माँ आप बहू के संस्कारों की लिस्ट तो देना भूल गयीं…

बंद कीजिए तमाशा और जल्दी विदाई कीजिये, और पाण्डे जी आप क्या औरतों की तरह रो रहे हैं, आप अनोखे पिता थोड़ी ना है जो बेटी विदा कर रहे हैं।

बंद कीजिए तमाशा और जल्दी विदाई कीजिये, और पाण्डे जी आप क्या औरतों की तरह रो रहे हैं, आप अनोखे पिता थोड़ी ना है जो बेटी विदा कर रहे हैं।

रेखा और अजय की लव-मैरिज शादी दोनों परिवार की रजामंदी से तय की गई थी। अजय रेखा को कॉलेज के समय से ही जानता और पसंद करता था। भाग्यवश दोनो की नौकरी भी एक ही कम्पनी में थी।

रेखा शुरू से आधुनिक सोच एवं स्पष्टवादी थी लेकिन अजय और रेखा का रिश्ता अजय के छोटी बहन निधि और बहनोई अखिल को नहीं पसंद था। अखिल घर के दामाद होने का पूरा फायदा उठाते थे। अजय के पिता हार्ट और डायबिटीज के मरीज थे। पिता की बीमारी की वजह से कम उम्र में ही घर की सारी जिम्मेदारी अजय पर आ गयी तो उसने तय किया कि वो पहले अपनी छोटी बहन की शादी करेगा बाद में अपनी।

अखिल शुरू से इस शादी के खिलाफ थे क्योंकि वो अपने किसी नजदीकी रिश्तेदार की लड़की से अजय की शादी करा कर अजय पर एहसान और घर मे अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे। लेकिन अजय के आगे उनकी एक भी ना चली क्योंकि अजय ने साफ साफ लफ्जो में कह दिया था कि वो जब भी शादी करेगा रेखा से ही करेगा।

अजय की माँ गीता जी अपने एकलौते बेटे को खोना और उसकी नजरों में बुरी माँ नहीं बनना चाहती थी सो उन्होंने भी विद्रोह नही किया और शादी के लिए राजी हो गयी। लेकिन इन सब में वो अपने बेटी निधि और दामाद पर आँख बंद करके भरोसा करती थी। जो बात बेटी-दामाद ने कही वो पत्थर की लकीर हो जाती थी उनके लिए। वो वही काम करती या करना पसंद करती जो उनके दामाद को पसंद था और अगर किसी ने कुछ कहा तो रोना-धोना शुरू हो जाता था।

शादी की शुरुआत से ही अखिल और निधि का रवैया रेखा और उसके छोटे भाई को पसंद नहीं था। अखिल और निधि हमेशा रेखा के पिताजी (अमित पांडेय) से उनका नाम लेकर बात करते। औपचारिकता बस भूल कर भी कभी नमस्ते या प्रणाम नहीं करते। और बात-बात में उनको नीचा दिखाने की कोशिश करते, कभी पैसों को लेकर कभी रुतबे को लेकर तो कभी व्यवस्था के नाम पर।

एक दिन रेखा ने ये बात अपनी माँ से भी कही पर उन्होंने ये कहते हुए बात टाल दिया कि हमें क्या करना? ये तो उन लोगों को सोचना चाहिए।

“लेकिन माँ! मुझे अच्छा नहीं लगता जिस तरीके से वो लोग पापा से बात करते हैं। वो लोग पापा से उम्र में छोटे हैं और बात तो ऐसे करते हैं जैसे वो पापा से कितने बड़े या उनके हमउम्र हों और बेमतलब का अकड़ में बात करते हैं। मुझे तो लगता है उनको  तमीज ही नहीं सिखायी गयी। मैं सोच रही हूँ, अजय से इस बारे में बात करुँ”, रेखा  ने कहा।

“कान खोलकर मेरी बात सुनना, किसको तमीज है किसको नहीं ये तुझे सोचने की जरूरत नहीं। वैसे भी लड़की वालों को थोड़ा बहुत तो सुनना पड़ता है। वैसे अजय तुम्हारी पसंद है, तो शादी तय होने के पहले ही अखिल और निधि को तुम परख ली होतीं। एक बात मेरी याद रखना, परिवार के खिलाफ जाकर तुम्हारी पसन्द के लिए तुम्हारे पापा ने हामी भरी है, तो अब कुछ भी ऐसा मत करना जिसकी वजह से हमे सबके सामने शर्मिंदा होना पड़े। और वो लड़के वाले हैं, तो अकड़ तो रहेगी ही। लेकिन तू एकदम चुप रहेगी समझी मेरी बात? मैं बेकार में कोई तमाशा नहीं चाहती जिससे कल को समाज में जग हँसाई हो हमारी”, रेखा की माँ ने गुस्से से कहा।

इंगेजमेंट के दिन सभी बडे सम्मान से एक दूसरे से मिले। पूरा समारोह अच्छे से हुआ। जैसे ही रेखा के पापा अजय के पिता के पांव छूने गए उन्होंने कुर्सी से खड़े होकर उनका हाथ पकड़ लिया और बोला, “अरे! समधी जी, ये क्या कर रहे हैं? हम तो बराबरी के रिश्तेदार हैं। गले मिलिए एक परिवार की तरह।”

रेखा ससुर जी की बाते सुन के बहुत खुश हुई, कि वो पुराने खयाल के नहीं ,कि तभी वहाँ निधि और अखिल  भी आ गए। रेखा के पापा ने कहा, “आइए अखिल जी कुछ कमी तो नहीं रही ना? मैंने सब कुछ आप के कहे मुताबिक ही किया था।”

तो उन्होंने ने कहा, “अब क्या बोलें पांडेय जी। ठीक ही है। व्यवस्था तो आपने देखी ही नहीं। हमारे घर की शादियां देखते तो आपको पता चलता कि व्यवस्था किसको कहते हैं। खैर, फिर भी कुल मिलाकर आपने अच्छी व्यवस्था करने की कोशिश की। अभी तो घर के लोग हैं तो चल गया, लेकिन बारात के लिये तो अपनी कमर कस लीजियेगा। ऐसा ना हो कि अभी तो ठीक-ठीक जैसे-तैसे हो गया लेकिन शादी वाले दिन हम लोग शर्मिंदा हो जायें।”

ये सुनकर रेखा और उसके भाई को बहुत गुस्सा आया। अपने पिता का इस तरह अपमानित होना रेखा को बहुत दुखी कर रहा था। उसकी आँखों से आँसू आने लगे, वो चाहकर भी कुछ बोल या कर नहीं पा रही थी क्योंकि उसकी माँ ने उसका हाथ पकड़ रखा था और माँ की आँखों ने रेखा के मुँह पे उंगली। चाह कर भी अपने पिता के अपमान को नहीं रोक पा रही थी। अपने पिता के साथ हुए इस व्यवहार को वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।

घर आने पर रेखा की माँ ने रेखा और उसके भाई को कस के डाँटा, “क्या करने जा रहे थे तुम दोनों? और रेखा तू तो बड़ी है, तुझे कहा था ना मैंने हर बेटी के बाप को सुनना होता है? और कौन सा समधी जी ने कुछ कहा और रिश्तेदारों की बात का क्या लेना? वो तो कुछ भी बोलते हैं।”

“लेकिन माँ आपने देखा नहीं उन्होंने कैसे बात की पापा से?” रेखा के भाई ने कहा।

“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं तुम दोनों आगे से मुँह बंद रखना बस”, रेखा की माँ ने कहा।

शादी के दिन सभी व्यवस्था की तारीफ़ कर रहे थे कि तभी अचानक अजय के जीजा जी शोर मचाने लगे, “ये कैसी व्यवस्था है, छोटे बच्चों का स्टॉल कहाँ लगा है? और मेरे बेटे के दूध की भी व्यवस्था नहीं है। दो महीने का बच्चा क्या स्टॉल पर जाकर खाना खायेगा?”

रेखा के पिताजी ने हाथ जोड़ लिए और बात संभालते हुए कहा, “आप चिंता मत कीजिये मैं अभी करता हूँ। मुझे नहीं पता था कि इतने छोटे बच्चे भी आएंगे। जैसे-तैसे बात संभाली गयी।”

शादी सम्पन्न हुई और विदाई का वक़्त आया। सभी छोटे बड़ों का पैर छू रहे थे। फिर अखिल जी ने चिल्ला ना शुरू किया, “बंद कीजिए ये सब तमाशा और जल्दी विदाई कीजिये, और पाण्डे जी आप क्या औरतों की तरह रो रहे हैं। आप अनोखे पिता थोड़ी ना है जो बेटी विदा कर रहे हैं।”

तभी रेखा के पिता ने कहा, “बस बस अखिल जी अभी सारी रस्में पूरी कराता हूं। इतना सुनते रेखा ने अपने आंसू पोछ लिए और अब उसका सारा ध्यान अखिल  पर हो गया। विदाई के समय अखिल ने जैसे ही रेखा के पापा को पाण्डेय जी कह के हाथ मिलाने की कोशिश की, रेखा का भाई बोल पड़ा क्योंकि उसके सब्र का बांध टूट चुका था।

“रूकिये जीजा जी, क्या आप को पता नहीं बड़ों से हाँथ नहीं मिलाते, उनके पाँव छूते हैं? और मेरे पिताजी तो आप के पिता समान हैं। क्या आप अपने पिता के साथ भी ऐसा ही व्यवहार करते हैं? मुझे भी आपने यही कहा था ना कि झुक कर पैर छुओ, तुम्हें संस्कार नहीं पता क्या कि छोटे बड़ो के पैर छूते हैं? अब आपके संस्कार कहाँ गए?”

“देख लीजिए पांडेय जी यही तमीज और संस्कार सिखाया है आपने? इसको पता नहीं क्या हो सकता है…”, अखिल ने कहा।

“रेखा के पापा हाथ जोड़कर अखिल  से माफी मांगने लगे और कहा, “बच्चा है गलती से बोल गया।  माफ कीजिये, उसकी तरफ से मैं हाथ जोड़कर आपसे माफी मांगता हूं।”

अखिल के चेहरे पर नाराज़गी और गुस्से के भाव साफ दिख रहे थे। लेकिन सब के बीच में कुछ बोल नहीं पाए और चुपचाप वहाँ से चले गए। पूरी बारात में रेखा के घर वालों के संस्कारहीन होने की बात आग की तरह फैल गयी

विदाई हुई। रेखा की माँ को डर था कि अब क्या होगा। वहाँ ससुराल में सासूमाँ पहले से ही मुँह फुलाए गुस्से में बैठी थी ये सब जान के। समाज को दिखाने के लिए सारी रस्में निभाई गयीं।

रात में रेखा अपने कमरे में फोन पर अपने भाई से बात कर रही थी। वो उससे पूछ रही थी कि माँ ने तुझे ज्यादा डाँटा तो नहीं, बाकी सब कैसे हैं और पापा कैसे हैं? तभी रेखा की सास ने रेखा को आवाज देकर बुलाया और कहा, “दीदी जीजाजी घर जा रहे हैं। इनके पैर छुओ और ये इसी शहर में रहते हैं, तो तुमको इनका मान सम्मान भी करना होगा।

और जो तमाशा तुम्हारे भाई ने सबके बीच किया ना, हमारा मन ना होते हुए भी हम तुमको ले आये। हम चाहते तो तुमको वहीं छोड़ देते मायके में। पड़ी रहतीं उम्र भर, कोई पूछता भी नहीं। नाक रगड़कर माफी मांगता पूरा मायका और तुम भी समझीं? लेकिन वो तो दामाद जी की दरियादिली थी जो तुमको लेकर आ गए। तुम्हारी मां ने  तो तुम्हें तमीज और संस्कार नहीं सिखाया, इसलिये मैं  सीखा रही हूं। मेरे बेटी-दामाद का अपमान मै कभी बर्दाश्त नहीं करूंगी और अब तुम्हारे मायके वालों से हमारा कोई रिश्ता नहीं। वो अब हमारे दरवाजे पर कदम भी ना रखने पाएँ, समझीं?”

तभी अखिल  ने बीच में  व्यंग्य में मुस्कुराते हुए बोला, “क्या मम्मी जी आप भी! अभी नई-नई है। धीरे-धीरे सब सिख जाएंगी।”

रेखा समझ चुकी थी कि उसका चुप रहना इस घर में सही नहीं होगा। उसने कहा, “माँ जी पहली बात कि मेरे भाई ने जो किया बिलकुल सही किया क्योंकि संस्कार तो सबके एक समान ही होने चाहिएँ और मेरी मां को आप के घर के बारे में नहीं पता, तो पहले ही अपने घर के संस्कारों की लिस्ट बता देतीं। जैसे घर के सामानों की लिस्ट दी आप लोगो ने, बहु के संस्कारों के भी दे देतीं कि ये ये बातें सीखना। और आप भी थोड़ा संस्कार निधि और अखिल को दे देतीं कि बड़ों से कैसे बात करते हैं।

दूसरी बात कि कोई भी अपने से छोटे के पैर नहीं छूता और ये दोनों लोग मुझसे छोटे हैं। मैं इनके पैर कभी नहीं छूऊँगी। रही बात सम्मान की, तो मैं उतना ही सम्मान और प्यार दूँगी जितना मुझे आप लोगों से मिलेगा। और आखिरी बात, चाहे वो इस घर के बेटी-दामाद हो या कोई अन्य सदस्य, मैं भी किसी के द्वारा अपने माता-पिता और मायके वालों का अपमान बर्दाश्त नही करूँगी।

और अजय को मैंने पहली मुलाकात में ही ये बता दिया था कि मैं गलत ना करूँगी ना ही बर्दाश्त करूंगी। रही बात मुझे मायके भेजने की तो या छोड़ने की तो उसके ख्वाब आप सब ना देखे तो ही बेहतर होगा। वैसे भी मैं किसी कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती। बाकी आप सब की मर्जी, जैसा ठीक समझें। चलती हूं”, कहकर रेखा अपने फोन पर बात करती हुई कमरे में चली गयी।

रेखा की सास और ननद नंदोई सब के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था। उनको समझ नहीं आ रहा था कि किस को क्या बोलें क्योंकि अजय को पहले से ही अपने जीजा का व्यवहार नहीं पसंद था। तो उसने चुप रहना ही बेहतर समझा। और रेखा को आज भी सब संस्कारहीन और तेज बहु कहते हैं।

दोस्तों ये घटना सत्य पर आधारित है सिर्फ नाम और पात्र काल्पनिक हैं। जब मैं अपनी दोस्त रेखा से उसकी शादी के बाद मिली तो मैंने उससे पूछा कि क्या ये सब करते हुए तुम्हें डर नहीं लगा? तो उसने सिर्फ दो टूक कहा, “नहीं, क्योंकि मुझे मेरे पिता के सम्मान से ज्यादा प्यारा कुछ भी नहीं।”

उम्मीद करती हूं मेरी ये कहानी आप सबको पसंद आएगी। किसी त्रुटि के लिए माफ करें। पसंद आने पर लाइक कमेंट शेयर करें।

मूल चित्र : eskaylim from Getty Images via CanvaPro 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

79 Posts | 1,619,187 Views
All Categories