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मेरे बच्चे के बारे में कुछ कहा तो ठीक नहीं होगा…

केबिन में बैठी डॉक्टर बहुत गंभीर लग रही थी। रवि और उसकी माँ को कुर्सी पर बैठने को बोल वो किसी से फ़ोन पर बात करने लगी। 

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केबिन में बैठी डॉक्टर बहुत गंभीर लग रही थी। रवि और उसकी माँ को कुर्सी पर बैठने को बोल वो किसी से फ़ोन पर बात करने लगी। 

असीम प्रसव वेदना से चीखती नेहा की आवाज़ लेबर रूम से बाहर बरामदे तक आ रही थी। बाहर बेंच पर अपनी दो जुड़वा बेटियों को सीने से लगाए बैठा नेहा का पति रवि, कभी पोते की आस में  बेचैन हो घूमती अपनी माँ को देखता, तो कभी नेहा की चीखों को सुन तड़प उठता।

तभी डॉक्टर साहिबा आती दिखी, “देखिये आपकी पत्नी बहुत कमजोर हैं, तुरंत दो यूनिट ब्लड चढ़ाना होगा, आप इंतज़ाम कीजिये और हाँ, नार्मल डिलीवरी के चांस नहीं ले सकते ऑपरेशन करना होगा।”

ऑपरेशन की बात सुन, घबराये हुए रवि ने डॉक्टर से पूछा, “नेहा तो ठीक हैं ना?”

“देखिये अभी कुछ नहीं कह सकते, आप इंतजाम करें”, और ये कह डॉक्टर निकल गई।”

“माँ! आपने सुना ना डॉक्टर ने क्या कहा?” व्याकुल हो रवि ने अपनी माँ को पूछा।

“हाँ,  सुन लिया। सब कमजोर हैं, महारानी बच्चा नार्मल नहीं कर सकती। जैसे हमने तो बच्चे ही नहीं किये। इतना खिलाया-पिलाया, सब कहाँ रख दिया? सब मेरे बेटे के पैसे लूटने पर पड़े हैं। पहले ही दो बोझ क्या कम थे, जो अब ऑपरेशन भी होगा? अबके पोता ना हुआ तो मायके भिजवा दूंगी इसे।”

“माँ अब चुप भी रहो। जब देखो पोता-पोता, अब सम्भालो बच्चों को, मैं कुछ पैसों का इंतजाम करूँ”, बच्चों को अपनी माँ के हवाले कर रवि पैसों के जुगाड़ मे चला गया। दोस्तों और रिश्तेदारों से हाथ पैर जोड़ कुछ पैसों का जुगाड़ कर फीस भरी तब जा के नेहा का ऑपरेशन शुरू हुआ।

“हे कान्हा जी! इस बार पोते का मुँह दिखा दे, पूरे दो किलो माखन मिश्री का भोग लगाऊँगी”, नेहा की सास ईश्वर को माखन मिश्री का प्रलोभन दे पोते के आस में बरामदे के चक्कर काट रही थी तभी नर्स आती दिखी।

“क्या हुआ नर्स? मेरा पोता हो गया?” बेसब्री से नेहा की सास ने नर्स से पूछा।

“हाँ, बच्चा हो गया हैं पेशेंट भी ठीक हैं, बाकि आपको मैडम ने अपने केबिन मे बुलाया है।”

“लेकिन हुआ क्या बेटा या बेटी?  ये तो बताओ सिस्टर।”

“आप केबिन में  जायें, आपको मैडम बताएंगी”, रवि के बहुत ज़ोर देने पर भी सिस्टर ने उन्हें बिना कुछ बताये डॉक्टर के पास भेज दिया।

केबिन मे बैठी डॉक्टर बहुत गंभीर लग रही थी। रवि और उसकी माँ को कुर्सी पर बैठने को बोल वो किसी से फ़ोन पर बात करने लगी।

“क्या बात होगी माँ? नेहा तो ठीक होंगी ना?”

“जब देखो नेहा-नेहा की रट लगाये रहता है, जोरू का गुलाम कहीं का।” चिढ़ कर रवि की माँ ने मुँह फेर लिया।

फ़ोन रख डॉक्टर ने गंभीर हो कर कहा, ” देखिये मेरी बात को ध्यान से सुन कर ही कुछ निर्णय लीजियेगा।”

“क्या हुआ हैं डॉक्टर?” अधीर हो रवि ने कहा।

“देखिये बच्चा हो गया है और नेहा भी ठीक हैं। लेकिन बच्चा ना लड़का है, ना लड़की। मतलब आप समझ रहे हैं ना? और ब्लीडिंग बहुत होने के कारण स्नेहा की बच्चेदानी निकालनी पड़ी अब वो कभी माँ नहीं बन सकती।”

रवि तो लगा किसी ने कानों में बम फ़ोड़ दिया हो। सोचने समझने की जैसे शक्ति खत्म हो गई हो।  रवि की माँ तो बुत बन गई। कहाँ तो पोता होने के सपनो को संजोये बैठी थी और अब ये सब…

होश आने पर जब नेहा को पता चला तो उसने बच्चे से मुँह फेर लिया। अपमान और दु:ख आँखों से आंसू बन बह रहे थे। सास ने अपने तानों और गालियों से नेहा की आत्मा को भेद दिया…

भूखा बच्चा रो-रो कर अपनी माँ को पुकार रहा था। माँ की ममता निष्ठुर हो गई थी। दोनों बच्चियां इन सब से बेख़बर अपने पिता से इस तरह चिपकी थीं जैसे सब कुछ पता हो, अपनी माँ का दु:ख, दादी का तिरस्कार।

एक माँ की ममता आखिर कब तक निष्ठुर हो सकती थी? सीने से चिपका बच्चे को दूध पिलाने लगी। आखिर था तो अपनी ही कोख़ का जना, चाहे जो भी रूप ले जन्मा हो। हॉस्पिटल से छुट्टी हो घर आ गई नेहा और अब सास ने एक अलग ही तांडव शुरू कर दिया।

“इस बच्चे को घर से निकालो। इनकी टोली में दो या फिर किसी एनजीओ को सौंप दो लेकिन इस घर में नहीं ये नहीं रह सकता।”

अपमान और गुस्से से थर-थर काँप रही थी नेहा, “नहीं माँ जी! ये नहीं कर सकती मैं। चाहे आप जो भी सजा दें, मेरी संतान है ये। नौ महीने पाला है अपनी कोख़ में। इसे मैं किसी को ना देने दूंगी। बेटा हो, बेटी हो या किन्नर हो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। आखिर बीज़ तो मेरा ही है ना फिर फ़सल को क्या दोष देना माँजी? मेरे जिगर का टुकड़ा है ये, इसे पढ़ा-लिखा के समाज में एक पहचान दिलवाऊंगी।”

“बड़ी आई पढ़ाने वाली। मत भूल एक किन्नर बच्चा है ये…”, सास ने घृणा से कहा।

“बस अब एक और शब्द नहीं! माँ जी मेरे बच्चे के बारे में कुछ कहा तो ठीक नहीं होगा।”

“देख रहा है अपनी बीवी को? इसकी तो बुद्धि ही फिर गई है कुछ समझा रवि इसे।”

“नेहा ठीक कह रही हैं माँ, अब ये हमारा बच्चा है, ईश्वर ने हमें दिया हैं तो हम इसे उतने ही प्यार से पालेंगे जैसे अपनी बेटियों को पाल रहे हैं।”

“अब तुम दोनों की बुद्धि फिर गई है तो पालो इस आफत को। मेरा तो वंश का नाम लेवा खत्म हो गया”, और छाती पीटती बच्चे को कोसती रह गई।

जन्म को महीना भी नहीं बीता था कि सास ने नेहा को घर के कामों मे झोक दिया। बच्चों को रुलाना, नेहा को परेशान करना सब जतन कर लिए, पर नेहा ने हिम्मत नहीं हारी। रानी नाम दिया अपने नई संतान को और रानी की तरह ही पाला।

आस-पड़ोस मे एक कोतुहल का विषय बन गई थी रानी। कोई अपने बच्चों के साथ खेलने नहीं देता रानी और उसकी बहनों को। रानी जब अपनी माँ से पूछती, “माँ सब मेरे से बात क्यूँ नहीं करते?” तो हँस के नेहा कहती, “बेटा एक समय आएगा जब सब तेरे पीछे होंगे और तेरे से बात करने को और तेरे पास समय नहीं होगा इनसे बातें करने को।”

समाज से लड़ती हर मोड़ पर इम्तिहान देती रही रानी। जब थक जाती माँ के आंचल में आ जाती। समाज के इम्तिहानों को पार करती रानी, आज जज की कुर्सी पर बैठी देश की पहली किन्नर जज थी। वही समाज जो उसके जन्म पर रवि और नेहा को तानों से जलील कर रहा था, आज उनकी परवरिश की तारीफ़ करते नहीं थक रहा था।

रवि और नेहा की तपस्या का फल उनको आज मिला था। कुल का नाम रानी ने रोशन कर दिया था, ये देखने को दादी तो नहीं रही थी, अगर होती तो वो भी रानी पर गर्व करती।

दोस्तों ये एक पूर्णतः काल्पनिक कहानी है। किसी की भावनाओं को अगर ठेस पहुंची हो तो माफ़ी चाहती हूँ। कहानी का सार बस इतना है कि बच्चा चाहे जिस रूप मे जन्मा हो, उसे सम्मान, प्यार वो सब कुछ मिलना चाहिए जो एक  बच्चे का हक़ होता है। आशा है मेरी कहानी पसंद आयी होगी। 

मूल चित्र : Vardhan from Getty Images Signature via Canva Pro 

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