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क्या बेटे ताज के लिए मां शबनम के 7 ख़ून माफ़ होंगे?

ये शबनम से भी ज़्यादा उसके 12 साल के बेटे ताज की कहानी है। वह चाहता है कि देश का कानून उसकी मां को जीवनदान दे।

ये शबनम से भी ज़्यादा उसके 12 साल के बेटे ताज की कहानी है। वह चाहता है कि देश का कानून उसकी मां को जीवनदान दे।

साल 2008, ज़िला अमरोहा (उत्तर प्रदेश), तारीख़ 14 अप्रैल। ये वो दिन था जब पूरा देश हक्का-बक्का रह गया था क्योंकि 24 साल की शबनम ने अपने परिवार के 7 लोगों की जान ले ली थी। इस वारदात को क़रीब-क़रीब 13 साल बीत चुके हैं और शबनम को अपने गुनाह के लिए फांसी की सज़ा मिलने वाली है। आज़ाद भारत में ऐसा पहली बार होगा जब किसी महिला को फांसी की सज़ा दी जाएगी। इस केस को क़ानूनी भाषा में रेयरेस्ट ऑफ रेयर माना गया था।

यह कहानी एक मां की है जिसे फांसी की सज़ा सुनाई जा चुकी है और दूसरी तरफ़ एक बेटा है जिसने राज्यपाल से अपनी मां की सज़ा माफ़ करने की गुहार लगाई है। वारदात के 8 महीने बाद दिसंबर 2008 में जेल में ही शबनम ने एक बेटे को जन्म दिया। ये शबनम से भी ज़्यादा उसके 12 साल के बेटे ताज की कहानी है। वह चाहता है कि देश का कानून उसकी मां को जीवनदान दे।

क्या हुआ था उस दिन

साल 2008 में उत्तर प्रदेश के अमरोहा के एक घर में 7 क़त्ल हुए थे। 24 साल की पोस्ट ग्रेजुएट शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने माता-पिता, भाई-भाभी, अपनी बहन और 11 महीने के बच्चे को मार डाला था।

शबनम का परिवार उन दोनों के रिश्ते से ख़ुश नहीं था। शबनम शादी भी करना चाहती थी और अपने सुरक्षित भविष्य के लिए उसे पैसा भी चाहिए था। इसलिए सलीम के साथ मिलकर उसने ये पूरा कांड रचा। शबनम ने अपने परिवार को चाय में नींद की गोलियां मिलाकर पिला दीं और जब सब लोग बेहोश हो गए तो इन दोनों ने मिलकर पूरे परिवार की हत्या कर दी।

जब ख़बर पुलिस तक पहुंची तो शबनम ने पुलिस को झूठा बयान देते हुए कहा कि उसके घर में डकैत घुस गए थे और उन्होंने ही उसके परिवार को मार दिया। लेकिन वो कहते हैं ना सच छिपाए नहीं छिपता। हत्या के 4 दिन बाद शबनम के घर से चायपत्ती के डिब्बे में एक सिम कार्ड मिला जिसने एक के बाद एक सारे राज़ खोल दिए।

इस कार्ड के कॉल रिकॉर्ड्स से पता चल गया कि कैसे शबनम और सलीम ने ये वारदात रची थी। पुलिस की कड़ी पूछताछ के बाद दोनों अपराधियों ने अपना जुर्म कुबूल तो कर लिया लेकिन गिरफ्तारी के बाद दोनों ने एक-दूसरे पर आरोप मढ़ दिया। आख़िरकार सच सामने आ ही गया।

कोर्ट में कई साल तक मामला चलने के बाद साल 2010 में शबनम और सलीम को फांसी की सज़ा सुनाई थी लेकिन कई कारणों से ये फांसी टलती रही। फिलहाल शबनम रामपुर की जेल में बंद है और जेल प्रशासन ने अमरोहा ज़िला अदालत से शबनम की फांसी का डेथ वॉरंट जारी करने की याचिका लगाई है। डेथ वॉरंट जारी होते ही शबनम को फांसी दे दी जाएगी।

क्या शबनम की सज़ा माफ़ हो सकती है

शबनम को फांसी मिलना लगभग तय हो चुका है। मथुरा जेल के महिला फांसीघर में शबनम की फांसी की तैयारी भी शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के बाद राष्ट्रपति ने भी शबनम की दया याचिका को ख़ारिज कर दिया है।

राज्‍यपाल के पास दायर एक दया याचिका अभी पेडिंग है जो शबनम के बेटे की तरफ से दायर की गई है और कुछ लोग जो फांसी की सज़ा के खिलाफ़ हैं, वो इसे उम्रक़ैद में बदलने की मांग कर रहे हैं।

बेशक शबनम का गुनाह माफ़ करने लायक तो बिलकुल भी नहीं है लेकिन बस मन में कुछ सवाल हैं कि देर से मिले न्याय को क्या सच में न्याय माना जा सकता है? सालों बीत जाने के बाद जब अदालत कोई फ़ैसला सुनाती है तो उससे एक नहीं कई जीवन प्रभावित होते हैं। जेल में पैदा हुआ ताज जब अपनी मां की फांसी की ख़बर सुनेगा तो उसके भविष्य पर क्या असर होगा? क्या बेटे ताज को उसकी मां मिलेगी या शबनम को फांसी हो जाएगी? आने वाले कुछ घंटों में सब साफ़ हो जाएगा। आप क्या मानना है?

मूल चित्र : zeenews

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