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बेटी का पहला पीरियड? तो तूने उसे पुराने बिस्तर पर सुलाया था न? अब उठते से उसका सिर धुला देना। उसे सारे नियम समझा देना।
“मम्मा, मम्मा… मम्मा देखो ये क्या हो गया?” निया ने अपनी माँ मेघा को पुकारा।
मेघा किचन से हड़बड़ाती हुई आई और बोली, “क्या हो गया,बेटा? क्यों ऐसे चिल्ला रही हो?”
निया ने अपने कपड़ों की तरफ इशारा किया। मेघा ने देखा कुछ लाल धब्बे लगे हुए थे। उसने जल्दी से निया के कपड़े और अंतर्वस्त्र देखे और प्यार से समझाते हुए बोली, “कोई बात नहीं बेटा। अब तुम बड़ी हो गई हो। यह प्रकृति का नियम है और हर लड़की को यह मासिक धर्म यानी पीरियड्स हर महीने होते हैं। यह लो, ये सेनेटरी नेपकिन लगा लो और आराम से सो जाओ।”
“हर महीने? मम्मा, मैं ज्यादा बीमार तो नहीं हो गई न?” निया ने सहमते हुए पूछा।
“नहीं बेटा! आप पूरी तरह स्वस्थ हो। मैं कल आपको इसके बारे में पूरा समझाऊँगी, अभी आप सो जाओ।”
मेघा, उसका पति राजेश और बेटी निया मुंबई में रहते हैं। लेकिन मेघा की विधवा सास को गाँव में ही रहना पसंद है इसलिए अभी मेघा सपरिवार गाँव आई है। अचानक से निया का पहला पीरियड आ गया और अब मेघा बहुत चिंतित है।
अम्माजी वैसे तो सहयोगी सास हैं, लेकिन पीरियड को लेकर बहुत छुआ-छूत और नियम कायदे मानती हैं। जैसे, पीरियड के पहले दिन जिस भी समय आपका पीरियड आए, उसी समय सिर धोना, चाहे शाम हो या रात, गर्मी हो या सर्दी। भगवान को ना छूना, मंदिर न जाना, पुराने बिस्तर पर सोना, अपने झूठे बर्तन खुद साफ करना, अपने कपड़े अलग धोना, तीन दिन कहीं भी बाहर ना जाना, फिर चौथे दिन सिर धोना इत्यादि…
कभी-कभी उसका मन विद्रोह करने लगता कि वह एक शिक्षिका है और इन सब चीज़ों को मान रही है, जो आज के समय में व्यावहारिक नहीं है, लेकिन वह अम्माजी के साथ कम ही समय रहती थी तो उसे लगता कि क्यों व्यर्थ विवाद करना और वह सब नियम मानती रही। पर अब अम्मा जी को कैसे समझाएगी, अपनी बेटी को इन बेड़ियों से कैसे आजाद कराएगी?
मेघा पलंग पर लेट गई। राजेश ने पूछा, “मेघा,क्या सोच रही हो?”
“दरअसल निया के पीरियड शुरू हो गए हैं, इसलिए थोड़ा परेशान हूँ”, मेघा ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।
राजेश ने चकित होकर कहा, “अरे!अभी तो मेरी बेटी बहुत छोटी बच्ची है,अभी से? कोई दिक्कत की बात तो नहीं है न?”
मेघा को राजेश की बेचैनी पर हँसी आ गई और वह मुस्कुराते हुए बोली, “हर पिता के लिए उसकी बेटी, हमेशा छोटी बच्ची ही होती है। वैसे भी आजकल बच्चों में प्यूबर्टी (यौवन) जल्दी आने लगी है।”
“तो किस बात से परेशान हो?” राजेश ने पूछा।
मेघा बोली, “आप तो जानते हैं अम्माजी इन सब चीजों में कितने नियम मानती हैं। इतनी ठंड में नियाका सिर धुलाने कहेंगी। आज निया को हल्का बुखार भी था और भी कई सारी चीजें…”
“मैं निया के बालमन में पीरियड्स को लेकर कोई हौवा नहीं पैदा करना चाहती हूँ। पर अम्माजी को कैसे समझाऊँगी?”
राजेश ने कहा,”अरे! इतनी सी बात? सीधा अम्मा को बोल देना कि मेरी बेटी यह सब नहीं कर सकती है। इतना परेशान क्यों होना? अब सो जाओ।”
राजेश यह कहकर सो गए पर मेघा की आँखों से नींद कोसों दूर थी वह तो आने वाले कल के बारे में ही सोच रही थी।
फिर उसने मन में ठाना कि नहीं अब जो भी हो जाए समाज में बदलाव लाना ही होगा और शुरुआत घर से ही होती है। मैंने गलत-सही, सारे नियम माने, पर इसका मतलब यह नहीं कि मेरी बेटी भी इन नियमों को माने और फिर मेघा निश्चिंत होकर सो गई।
सुबह चाय पीते-पीते, अम्माजी ने पूछा, “मेघा, गुड़िया की तबीयत कैसी है?”
मेघा बोली, “रात को बुखार तो कम ही था पर उसको माहवारी शुरू हो गई है।”
अम्माजी चौंक गईं और प्रश्नों की झड़ी लगा दी, “क्या? अभी से? इतनी सी उम्र में?”
“हाँ, अम्मा जी! आजकल कई बच्चों को माहवारी जल्दी होने लगी है। मैं अपने स्कूल में भी देखती हूँ कुछ बच्चों को…”
“तो तूने उसे पुराने बिस्तर पर सुलाया था न? अब उठते से उसका सिर धुला देना। उसे सारे नियम समझा देना। अब बिटिया सयानी हो गई है। सारे नियम-कायदे समझाना तेरी जिम्मेदारी है”, अम्मा जी ने समझाया।
“अम्मा जी, निया को बुखार था तो मैं उसका सिर आज न धुलाऊँगी।” मेघा बोली।
“अरे! चीज़ों की छुआ-छूत भी तो कुछ होता है, वो नियम भी तो मानने पड़ते हैं।” अम्मा जी कुछ क्रोध से बोलीं।
“अम्मा जी! आपने मेरे लिए कुछ नियमों में छूट दी। आप मुझे पीरियड्स में स्कूल जाने से नहीं रोकतीं, जब आप मुंबई में नहीं होती हो तब पीरियड्स के समय खाना मैं ही बनाती हूँ। फिर निया तो बहुत छोटी बच्ची है उसके लिए भी तो कुछ नियमों में ढील दी जा सकती है ना?” मेघा ने कहा।
“अरे! सब नियम कायदे मेरे बनाए हुए नहीं हैं। हमारे पुरखों के बनाए हुए हैं। उन्होंने कुछ सोच समझकर ही बनाए होंगे न?” अम्मा जी भड़कते हुए बोलीं।
“अम्मा जी! पहले का जमाना और था। अब जमाना कितना बदल गया है। पहले तो लोग लड़कियों को पढ़ाते भी नहीं थे, विधवा विवाह नहीं होता। इसी तरीके से मासिक धर्म संबंधी कुछ नियम इसलिए बनाए गए थे।
बदलते जमाने के साथ हमें बदलना होगा। मैं नहीं चाहती कि निया के मन में मासिक धर्म को लेकर कोई कुंठा या डर समाए। उसकी जिंदगी है, वह खुलकर जिएगी। हाँ, सही-गलत का फर्क समझाना हमारा फ़र्ज़ है। बेड़ियों में उसकी जिंदगी को बाँधने का हमें कोई हक नहीं है।
अम्मा जी,आप बहुत समझदार हैं। अपनी लाड़ली पोती के लिए इस चीज को भी समझेंगी तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी, नहीं तो मैं और आप की पोती आज ही वापस चले जाते हैं। मैंने कुछ गलत कहा हो तो माफ कर दीजिएगा।” मेघा बोली।
अम्माजी बोली, “शायद तू ठीक कहती है। हमें बदल जाना चाहिए पर क्या करूँ? पूरी जिंदगी जो कायदे माने हैं, उन्हें एक पल में बदलना तो आसान नहीं है ना। पर कोशिश करूँगी। वाकई, नए जमाने के साथ बदलाव बहुत ज़रूरी है। तू सच कहती है, गुड़िया बहुत छोटी है, उसे इस समय हमारे प्यार और सहारे की ज़रूरत है। मैं अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी से कोशिश करूँगी, ये वादा करती हूँ।” अम्मा जी मुस्कुरा कर बोलीं।
“अम्मा जी…”, रुंधे गले से मेघा, अम्माजी के गले लग गई।
मूल चित्र : VikramRaghuvanshi from Getty Images Signature via Canva Pro
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