कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

जानिये क्यों हर तरफ चर्चा में है अली जीशान की ये नुमाइश?

पाकिस्तानी डिजाइनर अली जीशान द्वारा प्रस्तुत नुमाइश की कहानी बताती है कि कैसे कम उम्र में महिलाओं की शादी हो जाती है और...

पाकिस्तानी डिजाइनर अली जीशान द्वारा प्रस्तुत नुमाइश की कहानी बताती है कि कैसे कम उम्र में महिलाओं की शादी हो जाती है और…

जब एक लड़की पैदा होती है तो आज भी कई घर वालों के मुँह से एक ही आवाज़ निकलती है -“दहेज!”, “अरे लड़की पैदा हुई है”, “अपशकुनी! लाखों का दहेज लेकर जाएगी” और बेटों में तो हम शान से बोलते हैं, “बेटा तो लाखो का दहेज लेकर आऐगा।”

भारत और पाकिस्तान में एक रिवाज बहुत प्रचलन में है उसका नाम हैं दहेज, इसके बिना शादी पूरी नहीं होती है। कम दहेज मिलने पर बेटियों की इज़्जत ससुराल में कम हो जाती है, इसीलिए परिवार अपनी हैसियत से ज्यादा उनको दहेज देते हैं।

यह भारत और पाकिस्तान में हर दूसरी औरत की कहानी है, जहाँ उस पर कम उम्र में शादी करने का दबाव बनाया जाता है और लड़के वाले उससे ज़्यादा से ज़्यादा दहेज की उम्मीद करते हैं।

लड़की वालों की हैसियत हो न हो पर वह अपने बेटी के लिए कर्ज़ लेकर भी दहेज की मांग पूरी करते हैं। यह सभी बातें तो हमने कई बार सुनी और पढ़ी होगीं पर इसका रुप यूँ देखने को मिलेगा, ऐसा पहली बार हो रहा है।

पाकिस्तानी डिजाइनर अली जीशान पार्टनरशिप के साथ यूनाइटेड नेशंन वुमेन द्वारा प्रस्तुत नुमाइश, सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा में है।

पाकिस्तानी डिजाइनर अली जीशान द्वारा प्रस्तुत कहानी बताती है कि कैसे कम उम्र में महिलाओं की शादी हो जाती है और वह अपने पति के साथ-साथ उस दहेज का भी बोझ जिंदगी भर उठाती रहती है। कम उम्र में उनके ऊपर कितना बोझ आ जाता है।

अली जीशान की नुमाइश एक कहानी बयान करती है

अली जीशान की नुमाइश उस मासूम महिला की है जो अपनी उम्र से ज़्यादा बड़े आदमी के साथ शादी करने को मज़बूर है। कम उम्र में ही उसपर शादी जैसी बड़ी जिम्मेदारी का बोझ आ जाता है, जिसका वजन उसे जीवन भर उठाना है।

बेलगाड़ी यहां जीवन का रुप दिखाती है, जिसे उसे जीवन भर खींचना है। पति और सामान का बोझ उसकी जिंदगी की खुशहाली छीन लेता है। उन नाजुक हाथों में जहा कॉपी किताब होनी चाहिए वहाँ वह अपने पति और गृहस्थी का वजन खींच रही है।

इसमें यह बताने की कोशिश की जा रही है दहेज की वजह से परिवार वाले लड़की को पढ़ाने की जगह दहेज के पैसे जमा करते हैं। जबकि लड़की की शिक्षा दहेज से ज़्यादा जरुरी होती है। अब समय आ गया है कि इस कुप्रथा को खत्म करना चाहिए।

सोशल मीडिया पर क्यों

इस दौर में जहा खबरें मिनटों में वायरल हो जाती हैं, वहाँ दहेज जैसी प्रथा आज भी लोगों की जिंदगियां बर्बाद कर रही है। सोशल मीडिया के जरिये इस मुहिम को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने की उम्मीद की जा रही है। 21 वीं सदी के इस दौर में जहा हम औरतों की हकों की बात पर रोज़ बहस करते हैं, वहां आज भी कई परिवार दहेज जैसी बड़ी समस्या से जुझ रहे हैं।

मूल चित्र : Ali Xeeshan, Instagram

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

14 Posts | 48,673 Views
All Categories