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आख़िर कितनी खुश हैं घर से-घर के काम करती हुईं हमारी ये महिला…

वर्क फ्रॉम होम के अनेक फायदे बताये गये, पर क्या सही मायनों में इस वायरस के कारण औरतों  की जिंदगी में इतने फायदे हुए हैं जितने बताये गये?

वर्क फ्रॉम होम के अनेक फायदे बताये गये, पर क्या सही मायनों में इस वायरस के कारण औरतों  की जिंदगी में इतने फायदे हुए हैं जितने बताये गये?

2020 के वक्त एक शब्द जो सबसे ज्यादा प्रचलित हुआ था। वह था वर्क फ्रॉम होम जिसका इस्तेमाल आज भी हो रहा है। इस शब्द ने करोड़ो लोगों की ज़िंदगियाँ बदल दीं। जहा र्वक फ्रॉम होम से कई महिलाओं के जीवन पर असर पड़ा। वहीं कई महिलाओं की जिंदगी इससे बेहतर हुई।

टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा एक ब्लॉग के मुताबिक विश्व के अमीर देशो में 15- 25 वर्ष की दो-तिहाई महिलाओं ने अपनी आजीविका के साथ-साथ रहन-सहन का स्तर भी बेहतर किया है। वहीं एशियाई देशों के लिए यह एक चत्मकार स्वरुप है, क्योंकि फीमेल लेबर फाॅर्स पार्टिसिपेशन ( female labour-force participation rate) अब सात प्रतिशत तक बढ़ने में उम्मीद करते हैं।

एक सबसे बड़ी दुविधा जो उत्पन्न हुई थी कि फीमेल लेबर फाॅर्स पार्टिसिपेशन का जो रेट 1990 में 33 प्रतिशत था अब वह 25 प्रतिशत हो गया है। सीएमआई(सेंटर फ्रॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी) के आकड़े और डराने वाले हैं। कोविड के कारण कई महिलाऐं अपनी जॉब को बचाने में जुटी रही।

वर्क फ्रॉम होम से कुछ तो फायदे हुऐ होगें

अब क्योंकि दुनिया घर से चल रही है तो घर की गृह मंत्री को कुछ तो फायदे हुऐ होगें। अयोति द्वारा प्रकाशित इस लेख से समझते हैं। घर से काम करने से हमे ऑफिस की गॉसिप, भीड़ से बचने का मौका मिला, काम के बीच किसी के द्वारा डिस्ट्रैकेट नहीं किया गया। जिसके कारण हम अपने काम को अपना सौ प्रतिशत दे पाऐ। काम कहीं से और कभी भी करने की आजादी मिली, बीमार पड़ने पर छुट्टियां नहीं लेनी पड़ीं, ऑफिस में चलती आ रही राजनीति से कुछ दिन की सही पर छुट्टी तो मिली।

कम से कम आवागमन

घर से काम करने का बड़ा फायदा था, कहीं बाहर जाने से बचने की आजादी। सुबह-सुबह उठ कर तैयार होना, घर के काम निपटाना जैसे ज़रुरी काम को हम में से कई लोग आराम से त्याग पाऐ।

कम का कुछ बोझ कम हो जाना?

ऑफिस में आठ घंटो की डयूटी करनी ही पड़ती। डेडलाइन से पहले काम को पूरा करने की जिम्मेदारी से हम पर काफ़ी बोझ पड़ जाता था। वायरस के कारण इस ज़ंजीर से सुकून के दो पल मिल सके।

वर्क फ्रॉम होम के ऐसे अनेक फायदे बताये गये। पर क्या सही मायनों में इस वायरस के कारण औरतो की जिंदगी में इतने फायदे हुए है जितने बताये गये?

हमने दो औरतों से बात की जिनमें से एक हाउसवाइफ हैं और दूसरी की अभी शादी नहीं हुयी और वो जॉब कर रही हैं।

सुनते हैं इन दो औरतों की राय

ऑफिस न जाने की खुशी मुझे ज्यादा इसीलिए हुई क्योंकि अब मैं घर में हुँ। मुझे पीजी के गंदे खाने से छुट्टी मिली। घर पर रहने का सुख अलग होता है।

क्या घर पर रहकर ऑफिस को लेकर कोई समस्या?

सही मायनों उतनी नहीं जितनी पीजी में रहकर होती थी। घर पर रहने से खाना बनाने, कपड़े धोना, सफाई करना से लेकर कोई भी छोटे मोटे काम मुझे खुद नहीं करने पड़ते। छोटे-मोटे के काम के लिए मैं अपने से छोटे भाई-बहनों की मदद लेती थी- अर्पणा कुमारी,कामकाजी महिला

मेरा दो बच्चे हैं, दोनो बेटिया हैं। बड़ी बेटी सातवी में पढ़ती है और छोटी बेटी अभी एल.के.जी में है। लॉकडाउन के दौरान मेरे पति ज्यादातर ऑफिस के कॉल पर रहते थे। दोनो बेटियों की पढ़ाई से लेकर हर काम में खुद करती थी। कोरोना वायरस ने मेरी मुश्किलें बढ़ा दीं। बच्चों के स्कूल चले जाने से बहुत हद तक आराम महसूस होता था, पर अब उतनी आजादी नहीं है– रेणु झा, गृहिणी

हम सोच भी नहीं सकते पर देश में काम करनी वाली करोड़ों महिला की जिंदगी कोरोना वायरस के दौरान बदल गयी। स्कूल और ऑफिस से उन्हें थोड़ी निजात मिली है पर उतनी नहीं जितना हम सोचते हैं।

मर्द और औरत के काम में पितृसत्ता से अंतर

वर्क फ्रॉम होम के दौरान महिलाओं से हर मायने में ज्यादा उम्मीद लगाई गयी, क्योंकि जब एक पुरुष घर का काम करता है तो हम उसकी तारीफों के पुल बांध देते हैं, “कितना अच्छा पति, पिता या भाई है जो अपनी परिवार की मदद कर रहा है।” घर में अगर मर्द किचन या साफ-सफाई का कोई काम करता तो समाज उन्हें महान पुरुष की उपाधि देता, “कितना अच्छा पति है जो अपनी पत्नी की मदद करता है।”

तारीफ हो तो पति और पत्नी दोनों की हो

हम यह भूल जाते हैं कि उस पत्नी की भी उतनी ही तारीफ होनी चाहिए जितनी एक मर्द की जाती है। घर का काम करना सिर्फ औरत की ज़िम्मेदारी कैसे हो सकती है, जब परिवार में खाने वाले चार या पांच लोग हों? सोचने वाली बात है कि एक औरत काम करती है तो हम उम्मीद करते हैं कि वह घर और ऑफिस दोनों संभाले?

हम यह उम्मीद मर्दों से क्यों नहीं करते हैं कि वह ऑफिस के साथ-साथ अपने घर के कामों में मदद करे? जहाँ लोग बड़ी आसानी से समझ रहे थे कि वर्क फ्रॉम होम से सहूलियत मिली है, उसके उल्ट अब ज़्यादातर महिलाऐं दुगना काम कर रही हैं। एक तरफ जहा आठ घंटे की ड्यूटी के बाद हम सुकून के दो पल ले पाते थे, वहीं आज हम घर के काम के साथ-साथ ऑफिस की नौन-स्टॉप ड्यूटी निभा रहे हैं।

जितने अच्छे लेख घर से काम करने वाली महिलाओं के बारे में लिखे गए, उसका दो प्रतिशत भी अगर लागू होता तो महिलाऐं खुश होतीं।

मूल चित्र : Deepak Sethi from Getty Images Signature via Canva Pro 

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