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और बता निशा तेरी सास का स्वभाव कैसा है? और वो तेरी जेठानी तेरे साथ अच्छे से तो रहती है ना? मुझे तो तेरी जेठानी बहुत घमंडी लगी।
निशा की शादी एक भरे पूरे घर में हुई थी, सास-ससुर, जेठ-जेठानी और एक छोटा देवर। निशा के ससुराल में सब में बेहद स्नेह और प्रेम था। सभी एक दूसरे का आदर करते और उचित व्यवहार भी करते।
एकल परिवार में जन्मी और अपनी माता पिता की इकलौती संतान निशा को हमेशा ही संयुक्त परिवार आकर्षित करते थे और उसकी इस इच्छा को जान कर ही उसके पिता ने इस परिवार से रिश्ता जोड़ा था। निशा भी अपने ससुराल में बेहद ख़ुश थी।
निशा शादी के पहले जॉब करती थी लेकिन शादी के समय निशा ने कुछ दिनों के लिये काम से ब्रेक लिया था जिससे वो अपने ससुराल में सबके साथ कुछ समय बिता सके और सबके दिलों में अपना स्थान भी बना सके।
कुछ महीनों बाद निशा के ऑफिस से वापस ज्वाइन करने का कॉल आने लगा तो निशा ने अपनी जेठानी से कहा, “भाभी मेरे ऑफिस से वापस ज्वाइन करने का कॉल आ रहा है, क्या जवाब दूँ ऑफिस में?”
“ये तो बहुत अच्छी बात है निशा। कल मैं और माँजी यही तो बात कर रहे थे कि तुम्हें अब ऑफिस ज्वाइन कर लेना चाहिये।”
“वो तो ठीक है भाभी, लेकिन अब इस घर की जिम्मेदारी मेरी भी है। सब कुछ आप पर अकेली छोड़ मैं कैसे जाऊं?”
“ऐसे क्यों सोच रही हो निशा? घर के कामों का क्या है, वो तो पहले भी होते थे और आगे भी हो जायेंगे। लेकिन इतनी पढ़ाई करने के बाद तुम्हारा यू घर पे बैठना उचित नहीं। तुम आराम से जाओ। यहाँ माँजी और मैं है ना? सब संभल जायेगा।”
अपनी जेठानी की बातें सुन निशा के दिल में उनके लिये मान सम्मान दुगना हो गया।
अब निशा हर सुबह नाश्ते में अपनी जेठानी की मदद कर ऑफिस निकल जाती और शाम को भी वापस आ खाना बनाने में मदद कर देती। निशा के ससुराल में खाना सब साथ ही खाते थे। अगर कभी किसी दिन निशा को देर भी होती तो सब निशा का इंतजार करते। ऐसा प्यारा परिवार पा निशा बेहद ख़ुश थी।
सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था इतने में निशा के मायके में उसके चाचा जी के बेटे की शादी की ख़बर आयी। निशा की शादी के बाद उसके मायके की पहली शादी थी तो निशा बेहद उत्साह से तैयारी कर रही थी। चाचा जी भी निशा के पापा के साथ उसके ससुराल आ सबको विवाह में शामिल होने का स्नेह भरा निमंत्रण दे गए थे।
“माँजी, भाभी आप सब का इंतजार रहेगा मुझे आप जल्दी आना शादी में।”
“हां हां निशा हम सब आयेंगे और तुम भी मायके जा खूब मज़े करना”, जेठानी की बातें सुन निशा ख़ुश हो गई।
अगले दिन निशा के चाचा जी आ निशा को ले गए। इतने दिनों बाद सबका साथ पा निशा बहुत ख़ुश थी जाते माँ के गले लग गई, “कैसी हो माँ?”
“मैं तो तुझे देख कर ही ख़ुश हो गई। तू बता निशा तू ख़ुश है ना बेटा?” माँ ने अपनी लाडो को प्यार से गले लगाते हुए पूछा।
“हां माँ मैं बहुत ख़ुश हूँ।” अभी निशा अपनी माँ से बातें कर ही रही थी की तभी निशा की मुंहफट और तेज़तर्रार बुआ वहाँ आ गई और निशा का हाथ पकड़ अंदर रूम में ले गई। वहाँ सारे भाई बहन बुआ, चाची सब निशा को घेर कर बैठ गये। बस फिर क्या था निशा की बुआ ने निशा को कुदेर उसके ससुराल की बातें करनी शुरु कर दिया।
“और बता निशा तेरे ससुराल का हाल। तेरी सास का स्वभाव कैसा है? और वो तेरी जेठानी तेरे साथ अच्छे से तो रहती है ना? मुझे तो तेरी जेठानी बहुत घमंडी लगी।”
“हां बुआ सब बहुत अच्छे हैं और मुझे बहुत प्यार भी करते हैं।” निशा को अपनी बुआ का यूँ सबके सामने पूछना बिलकुल अच्छा नहीं लगा क्यूंकि अपनी बुआ के स्वभाव से निशा भली-भांति परिचित थी। निशा की बुआ बहुत ही तेज़ स्वभाव की महिला थी। बुआ की मंशा जानते हुए भी निशा ने उस वक़्त ज्यादा कुछ कहना उचित ना समझ उन्हें शांति से ही ज़वाब दिया। लेकिन बुआ कहा मानने वाली थी वो वापस शुरु हो गई।
“चल निशा अब ज्यादा झूठ ना बोल। क्या मैं जानती नहीं? संयुक्त परिवार का मतलब ही जी का जंजाल होता है, ना मन का खा पाओ ना मन का कुछ कर पाओ। हर वक़्त सब सिर पे बैठे रहते हैं। ऐसे जेल से तो अकेला रहना ही भला है। अब मुझे देखो, अकेली मज़े से रहती हूँ और जब जो जी करता है करती हूँ। जाने भैया को क्या सूझी तेरे जैसी पढ़ी लिखी लड़की की इतने बड़े परिवार में शादी कर दी। आजाद लड़की के जैसे बेड़िया ही डाल दी पैरों में। इतना कह बुआ हँसने लगी।”
निशा को बहुत बुरा लगा अपने ससुराल की बुराई सुन और अब उसने बुआ को जवाब देने की ठान ली। आप ऐसा इसलिए बोल रही हैं बुआ क्यूंकि आप संयुक्त परिवार में कभी रही ही नहीं या यूं कहो रहना चाहा ही नहींं संयुक्त परिवार में।
“माफ़ करना बुआ संयुक्त परिवार तो आशीर्वाद के समान होता है। जहाँ हर वक़्त बड़ों का आशीष मिलता है तो छोटों का प्रेम और सम्मान भी मिलता है। कोई तकलीफ हो या कोई दुःख पूरा परिवार चट्टान की तरह मेरे सामने खड़ा रहता है। क्या अकेली रहती तो मैं नौकरी कर पाती? जब तक बच्चे नहीं हैं तक तक तो शायद कर भी लेती, लेकिन बच्चे होने के बाद तो बिलकुल भी नहीं कर सकती थी।
मेरी नौकरी पे जाने से वहाँ कोई मुँह नहीं बनाता उल्टा मेरी जेठानी जो आपको घमंडी लगती है उन्होंने बिना चेहरे पे शिकन लाये मेरे हिस्से के काम भी अपने नाम कर लिया ताकि मैं नौकरी कर सकूँ। और हां बुआ हमारे घर में किसी बात की रोक नहीं ना खाने की और ना ही पहनने की हम अपने ससुराल में बहुएँ नहीं बेटियों के सामान ही रहते हैं। मेरा ससुराल जेल नहीं मंदिर है बुआ।काश बुआ आपने भी इस आशीर्वाद को स्वीकार किया होता तब आप समझते संयुक्त परिवार कभी श्राप नहीं होता बल्कि रिश्तों का आधार होता है।”
बुआ के पास एक शब्द नहीं था कहने को और वहाँ मौजूद सभी ने निशा की बातों का समर्थन किया। दरवाजे के पास खड़ी निशा की माँ के चेहरे पे सुकून भरी मुस्कान तैर गई उनकी बिटिया को उनसे भी ज्यादा प्यार करने वाला ससुराल जो मिल गया था।
कहानी का सार यही है कि संयुक्त परिवार में शायद बहुत आजादी ना मिले लेकिन बल बहुत मिलता है। हर मुसीबत में पूरा परिवार साथ खड़ा रहता है। बच्चों को जो संस्कार अपने बुजुर्गों से मिलता है वो एकल परिवार में संभव नहीं!
मूल चित्र : Photo by Arif khan from Pexels
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