कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

इतने साल पहले जब मैंने तुम्हारा हाथ थमा था…

मैं आपके वक़्त  के लिए तरसती रही। जानती थी, आप हमारे परिवार के लिए ही मेहनत कर रहे हैं, फिर भी बहुत से ऐसे पल आये जब आपको मिस किया...

मैं आपके वक़्त  के लिए तरसती रही। जानती थी, आप हमारे परिवार के लिए ही मेहनत कर रहे हैं, फिर भी बहुत से ऐसे पल आये जब आपको मिस किया…

एक अलसाई सी सुबह, भोर की किरणें अंगड़ाई ले निकलने को बेताब, चिड़ियों की ची ची की आवाज़, सूनी सड़कों पर सुबह घूमने वाले इके-दुक्के लोग और इन सब में रमेश जी। आज की सुबह कुछ अलग ही लग रही थी इन्हें। यूं तो सुबह घूमने की आदत जवानी के दिनों सी ही लगी थी रमेश जी को।

लेकिन आज की सुबह बहुत ही सुकून वाली थी रमेश जी के लिए। आज उनके रिटायरमेंट के बाद की पहली सुबह जो थी। आज कोई जल्दी नहीं थी किसी बात की। पार्क के चक्कर लगा जब वापस लौटने लगे तो कोने वाले नत्थू हलवाई के पास रुक गये। वैसे तो यहाँ रुकने का नियम हर रविवार का होता था क्यूंकि रविवार के दिन रमेश जी की धर्मपत्नी पुष्पा जी सुबह का नाश्ता नहीं बनातीं। सैर से लौटने वक़्त रमेश जी ही कचौरी जलेबी पैक करवा लेते आते और दोनों पति पत्नी आनंद से खाते।

कचौरी जलेबी पैक करवा रमेश जी घर पहुंचे, तो देखा आदत के अनुसार पुष्पा जी गीले बालों में  तौलिया लपेटे  पूजा की थाली लिए घर में धुप दिखा रही थीं। स्पीकर पर माता रानी का भजन चल रहा था। जैसे ही रमेश जी पर पुष्पा जी की नज़र गई, तो हाथों के इशारे से जूते बाहर खोल कर आने को कह दिया। रमेश जी ने मुस्कुराते हुए मन ही मन कहा, “इनकी आदत नहीं बदलने वाली” और पैकेट टेबल पर रख प्लेट लाने रसोई में चले गये।

रमेश जी और पुष्पा जी की शादी को लगभग चालीस बरस होने को आये थे, हँसते-मुस्कुराते, नोक-झोंक में ये समय बहुत खूबसूरत गुज़रा था। दो बच्चे थे, दोनों को पढ़ा-लिखा शादी कर वे अपनी जिम्मेदारियों से भी मुक्त हो गये थे।

“ये क्या? आज क्यूँ ले आए ये नाश्ता?” पूजा कर लौटी पुष्पा जी ने प्लेट देख कर कहा, “ये सब रोज़ रोज़ खाना आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं।”

“ओफ्फो पुष्पा जी कितनी पाबंदिया लगायेंगी आप? अब पिछले चालीस साल से आपकी घर पर और ऑफिस में अपने बॉस का हुकुम ही तो बजाते आ रहा हूँ। अब तो मैं अपनी जिंदगी अपने अंदाज में जियूँगा”, एकदम फ़िल्मी अंदाज़ में रमेश जी ने पुष्पा जी को कहा तो वो भी मुस्कुराये  बिना नहीं रह पायीं।

नाश्ता कर पुष्पा जी ने चाय बनाई और बरामदे में बैठ दोनों चाय पीने लगे। पति को एकटक खुद को देखता देख पुष्पा जी पूछ बैठीं, “ऐसे क्या देख रहे हैं जी आप मुझे? बिंदी ठीक से नहीं लगी क्या..?” अपनी बिंदी ठीक करते हुए पुष्पा जी ने पूछा।

“अच्छा पुष्पा जी, एक बात तो  बताइये। अपनी शादी में कितनी कसमें खाई थी हम दोनों ने?”

रमेश जी ने पूछा तो चौंक कर पुष्पा जी ने कहा, “अब ये भी भूल गए इस बुढ़ापे में? मुझे भी ना भूल जाना आप। वैसे सात खाईं थीं हमने।”

“नहीं!  मैंने तो आठ खाईं थीं, पर वो आठवीं कसम पूरी ना कर पाया”, रमेश जी ने कहा।

अचरज से पति को देखती पुष्पा जी ने पूछा, “क्या मतलब जी?”

“मतलब ये, कि घर-गृहस्थी में, बच्चों में परिवार की जिम्मेदारियों में मैंने वो वक़्त नहीं दिया आपको जिसका वादा मैंने खुद से किया था आपको देने का। पर अब जब सभी जिम्मेदारियों को हम दोनों ने निभा दिया है, तो अब से मेरा सारा वक़्त आपका पुष्पा जी”, और अपनी पत्नी के हाथों मे एक लिफाफा पकड़ा दिया।

“ये क्या हैं?” अचरज और उत्सुकता से पुष्पा जी ने लिफाफा खोला तो अंदर से ‘ गोवा’ की टिकट्स निकलीं।

“ये क्या?  इन पर तो हम दोनों के नाम हैं। हम गोवा जा रहे हैं? वो भी इस उम्र में? दामाद जी क्या कहेंगे? और बहु वो क्या सोचेगी? सास ससुर तीर्थ पर ना जा गोवा घूमने जा रहे हैं?”

“कोई कुछ नहीं सोचेगा और अगर सोचता भी हैं तो क्या? और फिर उम्र का क्या है वो तो बस एक गिनती है और फिर पति के साथ जा रही हैं, आप कोई बॉयफ्रेंड के साथ नहीं…”, पुष्पा जी को छेड़ते हुए रमेश जी ने कहा और ज़ोर से खिलखिला उठे।

“आप भी ना…”,पति का प्यार तो खूब मिला था पुष्पा जी को लेकिन वक़्त नहीं मिल पाया था जिसकी कसक उनके दिल में हमेशा दिल रहती थी। ये बात रमेश जी भी जानते थे। एक हफ्ते की ट्रिप पर  दोनों पति पत्नी गोवा गए। जाने से पहले खूब सारे नये कपड़े पुष्पा जी ने लिए अपने सेकंड इनिंग के हनीमून के लिए।

गोवा मे दोनों जैसे बच्चे बन गए। बीच पर हाथों मे हाथ डाल घूमना, नारियल पानी पीना, रेत पर एक दूसरे का नाम लिखना और पानी में खूब सारी मस्ती। ऐसे ही एक शाम समुन्दर के किनारे डूबते सूरज को दोनों देख रहे थे कि पुष्पा जी ने अपना सिर अपने पति के कंधो पर टिका दिया।

“आप ख़ुश तो हैं ना?” जब रमेश जी ने पूछा तो पुष्पा जी के आँखों मे आंसू आ गए।

“जीवन में सारे सुख आपने दिए, लेकिन आपके वक़्त  के लिए तरसती रही। जानती थी, आप हमारे परिवार के लिए ही मेहनत कर रहे हैं। फिर भी बहुत से ऐसे पल आये जब आपको मिस किया… आज से वादा कीजिये आपका सारा समय मेरा सिर्फ मेरा होगा। जीवन के इस साँझ की बेला में  आप और मैं फिर से वो सारे पल जीयेंगे जो हमने गवां दिए…”

अपनी पत्नी के आंसू पोछते हुए रमेश जी ने कहा, “ये वादा तो सात फेरों के वक़्त ही किया था पर निभाऊँगा अब पुष्पा जी। अब हँस भी दीजिये पुष्पा जी वरना लोग कहेंगे बुड्ढा अपनी बीवी को रुला रहा है और आपको तो पता है ना आई हेट टीयर्स पुष्पा और दोनों पति पत्नी खिलखिला के हँस दिए।

मूल चित्र : Manu_Bahuguna from Getty Images via Canva Pro 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

174 Posts | 3,896,600 Views
All Categories