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हर घर की मैं मुस्कान हूँ , शान हूँ। मेरे सहनशक्ति व त्यागमयी ममता मेरी ढाल हैं। कमजोर न समझना मेरा अस्तित्व चट्टान की तरह विशाल हैं।
नर अगर शब्द हैं तो नारी पूरी भाषा हैं मेरे अस्तित्व की यह पूरी परिभाषा है माँ -बेटी, बहु-बहन से पहले मैं एक औरत हूँ। सीता भी मैं हूँ , दुर्गा भी मैं हूँ अबला नहीं मैं सिंह की दहाड़ हूँ जननी हूँ , बेइंतहा बेमिसाल हूँ मेरे अस्तित्व से यह कायनात हसीन है। हर घर की मैं मुस्कान हूँ , शान हूँ मेरे सहनशक्ति व त्यागमयी ममता मेरी ढाल हैं कमजोर न समझना मेरा अस्तित्व चट्टान की तरह विशाल हैं।
मूल चित्र: Bulbul Ahmed via Unsplash
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आखिर कब तक नारी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी? आखिर कब तक?
सुनो! मैं भी इंसान हूँ…बिल्कुल तुम्हारी ही तरह!
चुप थी तब, चुप हूँ आज-पर, लड़की हूँ बोझ नहीं
मैं कविता हूँ
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