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आने वाले समय में भी कुछ परिस्थिति हमारे वश में होंगी और कुछ नहीं। ज़रूरत है कि हम मज़बूत मनोबल के साथ अपने डर को समझें और फिर…
पूरा साल हो गया, कोरोना को झेलते, सुनते। अभी इसकी वैक्सीन आई ही है कि इस महामारी का एक नया रूप और भी संक्रामक रोग के फैलने की खबरों से हर कोई आशंकित है।
अब क्या होगा? वैक्सीन के साइड-इफैक्ट्स कैसे होंगे? अगर पहले की तरह जिन्दगी सामान्य न हुई तो? और भी न जाने कितने? क्यों? और कैसे? सवालों से हम डरे हुए हैं। डर स्वाभाविक भी है और समाधान भी देता है, बशर्ते डर सकारात्मक हो, नकारात्मक नहीं। अगर हम डर को समझकर चलें तो यह हमें सच्चाई को स्वीकारने की शक्ति और उससे निबटने के विकल्प भी सुझाता है। ये भी सच है कि अगर हमें डर का अहसास न हो तो हम खुद को खतरों से नहीं बचा सकते। इसके विपरीत अगर हम केवल डरते ही रहें, उसे समझें नहीं, तो हम संकटों में ही घिरे रहेंगे और डर से कभी उबर नहीं पाएँगे।
डर से निकल कर एक बार ज़रा सोचिए कि वर्तमान परिस्थिति में क्या मुमकिन है? हम क्या बेहतर कर सकते हैं? ये भी ध्यान में रखें कि इस महामारी के कारण हमने परिवार के साथ अच्छा समय बिताया। लम्बे समय के बाद एक साथ खाना खाने का मज़ा लिया। पूरे परिवार के साथ टीवी पर मनपसन्द प्रोग्राम देखे। वृद्ध माता-पिता के साथ बैठने का अवसर मिला। अपने स्वास्थ्य और आर्थिक स्त्रोत के प्रति सजग हो गए। अर्थात इतने मुश्किल समय में भी हमने सकारात्मक हल निकालें। और ये तभी सम्भव हो पाया जब हम इस कोरोना महामारी से केवल डरे नहीं बल्कि उस डर को समझे और समाधान पर ध्यान दिया।
आने वाले समय में भी कुछ परिस्थिति हमारे वश में होंगी और कुछ नहीं। ज़रूरत है कि हम मज़बूत मनोबल के साथ अपने डर को समझें और उससे निकलने का रास्ता खोजें।
मूल चित्र : Arif Khan via Pexels
Samidha Naveen Varma Blogger | Writer | Translator | YouTuber • Postgraduate in English Literature. • Blogger at Women's
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