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अगर ये वक्त चुनाव का होता तो हमारी इन बेटियों को इंसाफ जल्दी मिलता…

हमारे देश में औरतों की सुरक्षा हमेशा से एक चुनावी मुद्दा बन कर रह गया। लेकिन सत्ता में कोई भी पार्टी आये, औरतें कहीं सुरक्षित नहीं हैं।

हमारे देश में औरतों की सुरक्षा हमेशा से एक चुनावी मुद्दा बन कर रह गया। लेकिन सत्ता में कोई भी पार्टी आये, औरतें कहीं सुरक्षित नहीं हैं।

चेतावनी : इस पोस्ट में मर्डर/ब्लात्कार का विवरण है जो कुछ लोगों को उद्धेलित कर सकता है। 

सुबह उठकर अखबार पढ़ते-पढ़ते समाज, सरकार, नौकरशाही को तरह-तरह की गालियां देना हमारे रोजमर्रा के काम हैं और उतनी ही बेबाकी से हम क्राइम का वह पन्ना छोड़ देंगे। तैयार होकर बड़ी आसानी से ट्रेनों में, बसों में बैठकर, देश में हो रही रेप, घरेलू हिंसा जैसी घटनाओं पर चिंता व्यक्त करेंगे। रात होते ही टीवी पर चल रही बहस पर अपनी प्रतिकिया देकर सब भूल जायेंगे।

रेप, गैंग रेप, घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न इन शब्दों से हमे अब फ़र्क़ नहीं पड़ता। अगर पड़ता तो दिव्या और मेघा के लिए कहीं से तो आवाज उठती। सोशल मीडिया के इस दौर में जहां मिनटों में खबरे वायरल हो जाती है वहां कहीं तो मेघा और दिव्या का नाम आता।

हाँ, अगर ये वक्त चुनाव का होता तो बात ही अलग होती। देर सवेरे ही सही पर शायद दोनों को इंसाफ तो मिलता। हमारे देश में औरतों की सुरक्षा हमेशा से एक चुनावी मुद्दा बन कर रह गया। देश में जब भी चुनाव होते हैं तब पार्टीयों का प्रमुख मुद्द होता है – औरत। जो जीत हासिल करने का बस एक ज़रिया है। ये मुद्दे बार–बार सामने आते हैं – हमारी सरकार बनेगी तो महिलाओं को ऐसी आजादी दी जायेगी। वे जैसे जीना चाहती हैं वैसे जी पाएंगी। वे सड़कों पर खुलेआम घूम पाएंगी।

ऐसे ही कितने वादे बिहार की महिलाओं ने 70 साल में सुने होगे और कितनों का ही ज़मीर रोज तोड़ दिया गया होगा। सत्ता में कोई भी पार्टी आये, औरतें कहीं सुरक्षित नहीं हैं। इन 70 वर्षों में कितनी ही महिलाओं ने न्याय की उम्मीद में दम तोड़ दिया होगा।

अब मधुबनी का मुद्दा ही देख लीजिए। एक दिव्यांग बच्ची के साथ पहले युवक ने बेरहमी से बलात्कार किया। जब उससे लगा कि वो शायद पुलिस को उसके बारे कुछ बता देगी तो उसकी दोनों आँखे नुकीले औज़ार से फोड़ दी गईं। अब लगता है रेप तो रोज़ की बात है, इसे इतना बड़ा मुद्दा बनाने का क्या मतलब बनता है? क्योंकि रेप हमारे समाज का ऐसा कड़वा सच है जिसे हम कभी मानना ही नहीं चाहते। आज भी ये सच हम स्वीकार नहीं कर पाते कि रेप करने वाली मानसिकता का भी कोई आदमी हो सकता है।

प्रदेश में पिछले एक सप्ताह में एक गैंग रेप और दूसरा रेप के मामले सामने आ गये – एक मुज्जफरपुर से दूसरा मधुबनी से। ऐसे मामलों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती है। अगर दी जाती तो यह मामले कभी उठते ही नहीं।

मधुबनी जिले के हरलाखी क्षेत्र में एक गांव में युवक ने दिव्यांग दिव्या (काल्पनिक नाम) जो मैट्रिक की छात्रा थी, उसके साथ पहले दुष्कर्म किया फिर उसे हमेशा के लिए अंधी बना दिया। दिव्या गूंगी थी और अब अंधी है। घटना मंगलवार दोपहर की है जब दिव्या खेत में बकरी के लिए पत्ते तोड़ने गयी थी।

बर्बरता की कहानी मधुबनी में ही खत्म नहीं होती। ताजा मामला मुजफ्फपुर का है (वही मुजफ्फरपुर जिसकी लीची दुनिया में सबसे प्रसिध्द है)। मुजफ्फपुर में एक नाबालिग छात्रा के साथ चार युवकों ने बलात्कार किया फिर उससे जिंदा जला दिया। इससे पहले भी बालिका के साथ रेप हुआ था। लेकिन शर्म और समाज के डर से उसने यह बात किसी को नही बतायी और घटना रिपोर्ट नहीं हुई।  

इससे साफ जाहिर हो रहा है कि हमारे यहां रेप जैसी घटनाओ पर आरोपियो को बचाने में एक बड़ा योगदान समाज का होता है। इज्जत की दुहाई देकर कितनी ही लड़कियों की बलि रोज समाज देता है।

मेघा के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। पांच जनवरी को उसके पिता ने जब प्राथमिकता दर्ज कराने की कोशिश की तो उन पर गांव की पंचायत ने दबाव डालाना शुरु किया कि घटना की कार्यवाई पंचायत द्वारा की जायेगी।

हमारे देश में पंचायतो का निर्माण जिन कारणों से हुआ था। उन्हे छोड़कर वो हर काम कर रही हैं। मेघा के पिता ने अपने बयान में बताया कि कैसे पंचायत की तरफ से उन्हे मामले से पीछे हटने के लिए दबाव बनाया गया। दोषियों के छ: वर्ष तक गांव से निष्काशन की अर्जी उनके सामने रखी गयी जिसे उन्होंने मना कर दिया। उन्हे अपनी बेटी के लिए इंसाफ चाहिए।

यह इंसाफ का शब्द मेघा और दिव्या की जिंदगी में कभी नहीं आऐगा क्योंकि इंसाफ के लिए कोर्ट की लंबी तारीखों के सामना करना पड़ेगा। महिला सुरक्षा के वादे पार्टी के मैनिफेस्टो में दबे रह गए। रेप सिर्फ एक महिला की समस्या नहीं है बल्कि पूरे समाज की है। हर वक्त सरकार को दोष देने से स्थिति नहीं बदलेगी। जो आज मेघा और दिव्या है, वो कल कोई भी हो सकती है।

मूल चित्र : thainopho, Canva Pro

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