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भारत में सन 2019 में 32033 बलात्कार हुए यानि की एक दिन में 87 से भी कुछ ज़्यादा! फिकरे, जुमले, सीटियाँ, छेड़खानी आम है हिन्दुस्तान में।
चेतावनी : इस पोस्ट में चाइल्ड एब्यूज का विवरण है जो कुछ लोगों को उद्धेलित कर सकता है।
साल 2021 के चौबीस दिन निकल गए।
हर साल हम सोचते हैं की कुछ बेहतर होगा। उम्मीद पर ही तो जी रहें हैं न हम सब लेकिन पता नहीं क्यों नारी, औरत, लड़की, इसके हिस्से हर बार, साल दर साल सिर्फ नाउम्मीदी आती है।
73 साल के आज़ाद देश और 72वां गणतंत्र मनाने वाला यह देश अपनी आधी आबादी को ये सुकून ये विश्ववास नहीं दिला पाया कि उसके वजूद के मायने हैं। वो महज़ मांस का लोथड़ा नहीं जिसे जब जहां जी चाहे गिध्द नोच सकते हैं। वो पब्लिक प्रॉपर्टी नहीं कि जिसे जब जिसके जी में आया छू कर आत्म संतुष्टि कर सकता है!
एक फैसला जिसे लिया एक औरत ने!
मैम से हालिया बातचीत में उन्होंने यही कहा था की पितृसत्ता मर्दों की ही नहीं बल्कि औरतों का रोग भी है। कोढ़ के रोग से ज्यादा घिनौना, बजबजाता हुआ। जिसमें दिमाग में गन्दगी इस कदर सड़ चुकी है कि यदा-कदा बदबू उठ ही जाती है।
कभी कोई कह देता है कि “बलात्कार हुआ गलत है, किन्तु अकेले न निकलती तो ये भी न होता!” तो कभी कोई कह देते है कि “आखिर जब 15 बरस में बच्चे जनने लायक हो गयी है लड़की तो शादी की उम्र २१ करने का क्या औचित्य है?” क्योंकि इस सृष्टि में औरत आयी ही सिर्फ बच्चे जनने है उसके बाद उसका होना न होना खास मायने नहीं रखता !
हम राष्ट्रिय बालिका दिवस मना ज़रुर सकते हैं किन्तु बालिका को सुरक्षित नहीं महसूस करा सकते। बल्कि हमारे अंधे कानून को और पंगु बनाने के लिए ऐसे फैसले आते है जो क*ने , और *त्तों की प्रजाति को भी शर्मिंदा करने वाले मर्दों को हैवानियत , वहशीपन के और करीब ले जाती है। संस्कारों का ढोल बजाते और सदियों पुराने उस रा राज्य के करीब जाते हुए हमने अपनी बेटियों को मांस से टुकड़े या लकड़ी अथवा लोहे की वस्तु के बराबर कर दिया हैं।
कोई भी अगर उनके स्तन दबा दे कपड़ों के ऊपर से तो वो जुर्म नहीं। ये पोक्सो (POCSO) Actके तहत नहीं आता हाँ उसे Section 354 IPC (outraging a woman’s modesty)में भले ही सज़ा मिल जाये।
पढ़ने में शर्म आयी हो तो ज़रा सोचने का कष्ट करें कि जब किसी 12 -13 बरस की बच्ची जो खुद में हुए तमाम बदलाव से यूँ भी परेशान है और कोई ह***, उसे छू कर निकलता है तो उसे अपने ही शरीर पर लाखों बिच्छुओं का डंक मालूम होता है।
सालों बाद भी वो उस लिजलिजे एहसास को भूल नहीं पाती!
लेकिन शायद हमारी माननीय जज साहिबा, जी हाँ ये मुंबई हाई कोर्ट की जजमेंट एक महिला ने दी है, को इन बातों का एहसास नहीं हुआ। और यकीनन उनकी कोई बेटी बहन नहीं है और मर्द उन्हें बहुत अच्छे मिले जितने भी मिले!
तो क्यों न छेड़खानी करने और बलात्कार करने और औरतों को मारने-पीटने के कायदे बना दिए जायें?
छेड़ो पर कपड़े के ऊपर से! बलात्कार करो लेकिन सीमेन के निशान न मिले! मारो मगर न चीख निकले न निशान पड़े!
पढ़ने में अगर तकलीफ हो रही है तो सोचिये जिस पर बीतती है और फिर वो खुद ही कटघरे में खड़ी अपने अकेले आने जाने पर सफाई देती है तो उस पर क्या बीतती होगी?
तो राष्ट्रिय बालिका दिवस पर नए हिंदुस्तान को बधाई एक और कदम गर्त में जाने के लिए! और लड़कियों को सलाह कि भारतीय समाज एक ठहरे हुए पानी की तरह सड़ने लगा है पर तुम, जलकुम्भी हो ये भूलना मत!
मूल चित्र : CanvaPro
Co-Founder KalaManthan "An Art Platform" An Equalist. Proud woman. Love to dwell upon the
दशहरे का रावण तो जला दिया पर क्या सचमुच रावण का अंत कर पाए हैं हम?
नया साल तो हर साल आता है पर….
हम चाहें तो इस नए साल में बहुत कुछ बदल सकते हैं, ज़रुरत है वो पहला कदम उठाने की!
‘हर दिन बराबरी का’ क्या दे पाओगे तुम?
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