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तुम्हारी बहु के तो कुछ ज़्यादा ही नाटक हैं…

सास हो या ननद किसी का भी रमा के बगैर दिन नहीं  गुजरता था या यूं कहें कि रमा के आने के बाद शुक्ला परिवार में कुछ ज्यादा ही बहार आ गई थी।

सास हो या ननद किसी का भी रमा के बगैर दिन नहीं  गुजरता था या यूं कहें कि रमा के आने के बाद शुक्ला परिवार में कुछ ज्यादा ही बहार आ गई थी।

रीमा के सपनों में तो जैसे पंख लग गए थे, अच्छा और संपन्न ससुराल मन चाहा जीवनसाथी। एक लड़की इससे ज्यादा और क्या चाह सकती है। रीमा और रमन ने प्रेम विवाह किया था पर रीमा को यह डर था कि रमन का परिवार क्या उसे दिल से स्वीकार करेगा? पर ससुराल आते ही रमा ने अपने व्यवहार से सबका दिल जीत लिया। सास हो या ननद किसी का भी रमा के बगैर दिन नहीं  गुजरता था या यूं कहें कि रमा के आने के बाद शुक्ला परिवार में कुछ ज्यादा ही बहार आ गई थी।

रमा भी अपने परिवार और गृहस्थ जीवन मे रम गई थी और आज तो पूरा परिवार खुशी से झूम रहा था जब रमा ने घर मे नन्हे मेहमान आने की खुशखबरी सबको दी। रमन तो खुशी से पागल ही हो गया था। जोश जोश में माँ के सामने ही रमा को गोद मे उठा लिया था। रमा भी शर्म से लाल होकर अपने कमरे की और भाग गई थी। परिवार का हर एक सदस्य रमा का और अधिक ध्यान रखने लगा।

वो पहला दिन जब उसे पता चला था कि उसके अंदर एक नन्ही सी जान है, उस नन्ही जान से एक प्यारा रिश्ता सा बन गया था उसका। और फिर इन प्यार भरे एहसासों के बीच शुरू हुआ शारीरिक और मानसिक बदलाव का दौर। माँ बनना एक स्त्री के जीवन का सबसे सुखद एहसास होता है। ये बात रमा ने सिर्फ सुनी थी पर अभी यह महसूस होना बाकी था।

रमा को प्रेंग्नेंट हुए एक महीना ही हुआ था कि शारिरिक बदलावों के कारण रमा की तबियत खराब रहने लगी। कभी उल्टी आती तो कभी खाने की चीजों से बदबू, तो कभी भी कुछ भी अलग खाने का मन करता, कभी नींद आती तो कभी बेचैनी से रात भर जागती रहती। उस पर दिन भर उल्टी और जी मचलाना भी बंद नहीं था।

डॉक्टर भी कह चुके थे शुरू के कुछ महीनों तक तो यह होता ही है, हां कुछ दवाओं के जरिये कम किया जा सकता है पर रमा पर दवाओं का भी कोई असर न था। माँ ने भी कहा कम से कम तीन महीने तक तो यह सहना ही पड़ता है। किसी ने सच ही कहा है मातृत्व का सुख यूँ ही नहीं मिल जाता।

रमा का एक एक दिन बड़ी मुश्किल से गुजर रहा था उसे इंतजार था बस जल्दी से ये तीन महीने गुजर जायें। “अभी तो यह शुरुआत है अभी तो पूरे नौ महीने बाकी हैं”, कहकर रमन भी बीच बीच मे रमा को छेड़ता रहता। रमन अपनी तरफ से रमा को खुश रखने की भरपूर कोशिश करता।

किचन में तो रमा जा ही नहीं पाती थी। खाने को देखते ही उल्टी शुरू हो जाती थी। इसी बीच कुछ रिश्तेदार ऐसे  भी आ जाते थे जो इसे नाटक बताते थे, “हाय! तुम्हारी बहु के तो कुछ ज्यादा ही नाटक है जैसे हमने तो बच्चे किये ही न हो!” चाची सास रमा की सास से बोली।

पर रमा की सास सब जानती थी। उन पर किसी की बातों का कोई असर न होता। सासूमाँ रमा का माँ की तरह ही ख्याल रखती, उसकी पसन्द का खाना बनाती और अपने हाथों से खिलाती। इतना अच्छा परिवार पा कर रमा की आंखों में भी आँसू आ जाते। इसी बीच रमन का एक प्रोजेक्ट के लिए कुछ महीनों तक दूसरे शहर जाना पड़ा। अब तो रमा और परेशान हो गई। एक तो ऐसी हालत ऊपर से पति भी साथ न हो तो तकलीफ कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। पर रमन का जाना जरूरी था।

रमा का पांचवा महीना लग चुका था। अब तबियत भी ठीक रहती थी। बच्चे की हलचल भी महसूस होने लगी थी। खाने पीने का भी मन चलने लगा था अब। माँजी और ननद के साथ कैसे दिन गुजर जाता पता ही नही चलता था पर रमन की कमी उसे बहुत खलती। हालांकि रमन वीकेंड पर आता रहता था पर ससुराल भले कितना ही अच्छा क्यों न हो पर मन पति की याद में ही लगा रहता है।

डॉक्टर ने अब तो डिलीवरी की तारीख भी दे दी थी। रमा के साथ साथ पूरा परिवार उस दिन के इन्तजार में था। रमा दिन रात अब अपने बच्चे के ख्वाब बुनते रहती उसके दिल की धड़कन को भी रमा महसूस कर  सकती थी। अपने खाने पीने और स्वास्थ्य का ध्यान वह खुद ही पहले से ज्यादा रखने लगी थी। पर अब कमर दर्द, पैरों में दर्द, गला जलना, जैसी अनेकों परेशानियों को झेलना पड़ता था। चूंकि वजन और पेट काफी बढ़ गया था तो आप झुक कर कोई काम नहीं कर सकती थी। ज्यादा देर तक खड़े रहने में भी परेशानी होती थी। और सबसे ज्यादा मुश्किल रात को सोते वक़्त करवट बदलने में होती थी। दर्द से रमा की चीख निकल जाती थी। इस समय अपने अधिकतर कामों के लिए वह सासू माँ पर निर्भर थी।

धीरे धीरे डिलीवरी की तारीख पास आ रही थी। रमन को पहले ही बोल दिया था कि तारीख से पहले ही छुट्टी लेकर आ जाना, पर रमा को दर्द दस दिन पहले ही उठ गया। आनन फानन में हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया गया। रमन को भी खबर मिल चुकी थी पर रात में परिवहन का कोई साधन न मिला सुबह तक इंतजार करना रमन के बस में नहीं था। उसका शरीर भले ही दूसरे शहर में था पर मन तो रमा और अपने बच्चे में ही लगा था। रमन अपनी मोटरसाइकिल से ही इस लम्बे सफर पर निकल गया।

उधर रमा लेबर रूम में दर्द से कराह रही थी बार बार रमन को पुकार रही थी। इस समय वह बस रमन को अपने पास चाहती थी। रमा की हालत देखकर डॉक्टर ने फोन पर रमन से बात करने की परमिशन दे दी। रमन की आवाज सुनते ही रमा की रुलाई फुट पड़ी, “जल्दी आ जाओ!” बस इतना ही बोल पाई। वह जानती थी रमन सुबह के पहले आने वाला नहीं है पर फिर भी  रमा को लगा जैसे उसकी आँखों के सामने अंधेरा आ गया है।

तभी रमा ने पहली बार अपने बच्चे का रोना सुना और उसकी सारी तकलीफ जैसे छू हो गयी। डॉक्टर ने उसे बधाइयां दी और बताया कि वह एक प्यारे से बेटे की माँ बन गई है। तभी नर्स ने हरे कपड़े में लिपटे एक बच्चे को रमा की गोद मे रख दिया। उसके चेहरे को देखते ही रमा को सिर्फ रमन की याद आई। वह चाहती थी कि बच्चे को सबसे पहले उसके साथ रमन ही देखें पर अब ये संभव नही था।

जैसे ही रमा को बाहर शिफ्ट किया गया रमन उसके सामने था उसे देखकर तो रमा की जैसे आंखे चमक गई। रमन से गले लगकर बहुत देर तक लिपटी रही। रमा के साथ साथ रमन की आंखों में भी आँसू थे। रमा को लगा जैसे उसका दुबारा जन्म हुआ है।

हर महिला जानती है कि गर्भावस्था का समय बहुत नाजुक होता है, इसमे महिला को प्यार, अपनापन, देखभाल, स्पेशल ट्रीटमेंट की जरूरत होती है वो भी खास कर पति की तरफ से। रमा बहुत किस्मत वाली थी कि उसे पति के साथ साथ इतनी केयर करने वाला अच्छा ससुराल भी मिला।

मूल चित्र : Photo by Krishna Studio from Pexels

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Babita Kushwaha

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