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बहु गहने सँभालने की तुम्हारी औकात नहीं…

शादी में कहीं किसी ने गहने चुरा लिये या गुम हो गए तो तुम्हारे घर वालों की भी उतनी हैसियत नहीं जो वापिस वैसे ही गहने दे सकें।

शादी में कहीं किसी ने गहने चुरा लिये या गुम हो गए तो तुम्हारे घर वालों की भी उतनी हैसियत नहीं जो वापिस वैसे ही गहने दे सकें।

प्यारा भैया मेरा दुल्हा राजा बनकर आ गया गाने पर रश्मि की ननद सुमन कुछ शादी में आई हुई लड़कियों के साथ मिलकर डांस प्रैक्टिस कर रही थी क्योंकि रश्मि के देवर की शादी थी। पूरा घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था और सबके आवभगत की जिम्मेदारी सिर्फ रश्मि की थी क्योंकि वो घर की बड़ी बहू थी कि तभी कमरे में मौजूद रश्मि की सास गीता जी ने रश्मि को आवाज़ दी, “रश्मि यहां आना।”

रश्मि रसोई से कमरे में गयी तो पलंग पर बैठी गीता जी को देखकर कहा, “जी माँजी बुलाया आपने?”

“हाँ! ये गहने आज शाम के बारात में पहनने के लिए दे रही हूं, लेकिन इसको शादी बीतते मुझे तुरंत उतार कर दे देना समझीं? भारी गहने हैं संभाल कर पहनना, क्योंकि सबकी औकात नहीं होती ऐसे गहने देने और पहनाने की अपने बहु बेटियों को। और तुमने मायके में पहले पहने नहीं होगी जो संभाल सको, इसलिए ये सब समझा रही हूं। क्योंकि सिर्फ बड़े घरों की बेटी बहुएं ही जानती हैं कि कैसे गहनों को संभाल कर रखना है”, गीता जी ने व्यंग करते हुए रश्मि को कहा।

कमरे में मौजूद ननद इतना सुनते ही मुस्करा दी और कहा, “ये तो बिलकुल सही कहा माँ आपने।” कमरे में मौजूद सभी रिश्तेदार लड़कियां रश्मि को देखने लगे। गहने देखते और गीता जी की व्यंग भरी बात ने आज रश्मि के सालभर पुराने घाव हरे कर दिए।

एक साल पहले जब रश्मि ने गहने अपनी बहन की शादी में पहनने के लिए मांगे तो गीता जी ने ये कहते हुए मना कर दिया कि वो गहने सँभालने की तुम्हारी औकात नहीं। शादी में कहीं किसी ने चुरा लिया या गुम हो गए तो तुम्हारे घर वालों की भी उतनी हैसियत नहीं जो वापिस वैसे ही गहने दे सकें। अपने मायके के गहने ही पहनो जो तुमने मुझे रखने के लिए नहीं दिए। गीता जी कभी कोई मौका नहीं छोड़तीं रश्मि को नीचा दिखाने का। मौका कोई भी हो लेकिन ले दे कर बात उसकी औकात पर ही आती।

दरअसल रश्मि मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी थी जिसे एक नजर में ही उसके पति सुरेश ने पसंद कर लिया था। सही मायनों में ये रश्मि और सुरेश का पहली नजर वाला प्यार था। सुरेश जिद पर अड़ गए कि शादी जब भी करूँगा सिर्फ रश्मि से। बेटे के आगे गीता जी की एक ना चली और दबाव में आकर गीता जी को इस लव-मैरिज की अनुमति देनी पड़ी। अमीर घराना होने की वजह से गीता जी के अनुरूप समान और दहेज रश्मि के मायके से नहीं मिला था। लेकिन इस बार छोटी बहू वो अपने पसंद की मोटा दहेज लेकर उतार रही थी इसलिए वो बहुत खुश थीं।

आज रश्मि को एकबार फिर से ये बात कहकर गीता जी ने चोट पहुंचाई थी। रश्मि ने अपने पति सुरेश से कहा, “सुरेश, माँजी गहने से लेकर कपड़ों तक हर बात में मुझे ये ही ताना क्यों मारती हैं कि मेरी कोई औकात नहीं? मैं सिर्फ उनके बड़े होने का लिहाज कर के चुप हो जाती हूं क्योंकि ये मुझे दिए गए संस्कार ही हैं जो मुझे रोक लेते हैं, वरना बोलना मुझे भी आता है।”

सुरेश ने कहा, “ओफ़ ओह्ह! रश्मि कितनी बार कहा है तुमसे मुझे तो ये समझ नहीं आता कि तुमको कैसे समझाऊँ? माँ दिल की बुरी नहीं, वो तुम्हें भी प्यार करती है वरना शादी के लिए हाँ क्यों करती? वो तो बस उनके समझाने का तरीका थोड़ा कड़क है। अच्छा तुम बताओ तुम्हारी माँ तुम्हें कुछ बोलती तो क्या तुम तब भी यही करतीं? नहीं ना? फिर ये फर्क क्यों वो भी तो तुम्हारी माँ ही है तो बात दिल से क्यों लगाना?”

“हाँ सुरेश माँ तो है लेकिन सासुमाँ, माँ नहीं। एक माँ अपने बच्चों को समझाती है, ताने नहीं मारती,” रश्मि ने कहा।

“अच्छा अब छोड़ो इन बातों को। जाओ जाकर तैयार हो जाओ। मेहमान भी आने वालें होंगे।”

लेकिन आज रश्मि ने मन ही मन तय कर लिया कि अब अगर चुप रही तो बहुत देर हो जाएगी। और हमेशा के लिए अपना सम्मान खो देगी। जो दो साल की शादी में नहीं किया, अब करना होगा, इस घर में खुद की जगह बताने और औकात की परिभाषा समझाने के लिए।

शाम को जब सब बारात जाने के लिए तैयार होकर शामिल हुए उसी बीच रश्मि भी आयी। सब रश्मि को देखते रह गए, रश्मि ने अपने मायके से मिली सिंपल साड़ी, पतली चेन और कान में छोटे बूंदे पहन रखे थे और हाँथ में गहनों की पोटली ले रखी थी। रश्मि को देखते सब मेहमानों के बीच खुसर-भुसर शुरू हो गयी, “ये देखो नाम बड़े और दर्शन छोटे, सास खुद तो महारानी बनी घूम रही है और बहू को कितना सादा सादा रखा है।”

तभी गीता जी ने गुस्सा दबाते हुए कहा, “रश्मि ये सब क्या है? तुम तैयार क्यों नहीं हुई अभी तक?”

तब रश्मि ने कहा, “माँजी मैं तैयार हूँ।” और सभी  के सामने गहनों की पोटली रश्मि ने गीता जी के हांथो में देते हुए कहा, “माँजी ये लीजिये आपकी अमानत। मैं नहीं संभाल सकती।”

तभी बुआ सास ने कहा, “अरी बहु ये क्या कह रही हो? और ये ऐसे क्यों तैयार होकर आयी, जाओ जाकर जेवर और कपड़े बदलो।”

“माफ कीजिएगा बुआ जी लेकिन मेरे पास तो यही है, वो भी मेरे माता-पिता का दिया हुआ। मेरी औकात भारी गहने और कपड़े पहनने के तो बिलकुल नहीं, जो आप सब की बराबरी कर सकूं।”

तब तक बुआ सास ने रश्मि की बात को बीच मे  काटते हुए बोला, “क्यों गीता बहु क्या कह रही है?”

गीता जी की झुकी निगाहें रश्मि को गुस्से से घूर रही थीं कि तभी रश्मि ने कहा, “बुआ जी दरअसल गहने माँजी ने दिए तो लेकिन ये बोलकर की कहीं खोने नहीं चाहिए। अगर भूलकर खोए तो मुझे मायके से वैसे ही गहने वापिस देने होंगे और इतनी मेरे मायके वालो की हैसियत नहीं, इसीलिए नहीं पहने। क्यों माँजी सही कह रही हूँ ना? ठीक किया ना मैंने ना पहनकर?”

सबके सामने हुए अपमान से गुस्से में रश्मि को गीताजी घूरे जा रहीं थी कि तभी मामी सास बोल पड़ी, “क्या कह रही है जीजी बहुरिया? रश्मि अब तुम्हारी भी उतनी ही औकात है जितनी तुम्हारे ससुराल वालों की। अब तुम जितने अच्छे से सज-संवर कर और खुश रहोगी उतना ही समाज तुम्हारे ससुराल के सदस्यों की तारीफ करेगा। विवाह से पहले मायका और विवाह के बाद ससुराल पर बहु और बेटी का पूरा हक होता है। जीजी समझाओ रश्मि को की अब उसकी भी वही और उतनी ही औकात है जितनी आप की और परिवार के बाकी लोगों की।”

गीता जी को बात समझ आ चुकी थी कि रश्मि ने सबके बीच में उनकी और अपनी औकात बता दी थी। लेकिन अब अपनी इज्ज़त जो बाहरी मेहमानों के सामने बचानी थी तो गीता जी ने गुस्सा मन में दबाए हुए कहा, “बहु ये सब क्या बात लेकर बैठ गयीं? तुम जाओ जाकर तैयार हो जाओ, अब हमारे परिवार के प्रतिष्ठा की बात है। लोग क्या कहेंगे? ये पकड़ो गहने, तुम्हारे ही हैं। मैं तो मज़ाक कर रही थी”

“जी माँजी अभी आयी तैयार होकर”, रश्मि को घूरती गीता जी की निगाहें उसके पास आते और बड़ी हो गईं।

तभी रश्मि ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, “माँजी अब यूं घूरना बंद कीजिए। अब ये गहने मेरे पास ही रहेंगे।” कहकर रश्मि वहाँ से चली गयी।

विवाह बीतने के बाद रश्मि गीता जी के कमरे में आयी। उस समय गीता जी कमरे में अकेली थी उन्होंने रश्मि को देखते कहा, “अब यहाँ करने आयी हो ले तो लिए गहने और सबके सामने मेरी बेइज्जती भी करा दी।”

रश्मि ने कहा, “ये लीजिये आपके गहने, और सुकून से बैठिए। ये चिंता की लकीरें चेहरे से हटा कर। मुझे इनकी कोई जरूरत नहीं। ना ही मेरा इरादा आपका अपमान करने का था। मैं तो सिर्फ आपको बताना चाहती थी कि अब मेरी भी औकात उतनी ही है जितनी आपकी और मैंने अपने माता-पिता का अपमान कभी बर्दाश्त नहीं करूँगी। मैंने तो आपको हमेशा अपनी माँ के बराबर ही प्यार और सम्मान दिया, लेकिन आपके मन मे मेरे लिए कभी भी अपनापन और प्यार नहीं था।

खैर!अपने और अपने मायके के सम्मान के लिए मुझे अगर ऐसा दुबारा करना हुआ तो भी मैं पीछे नहीं  हटूँगी। इस लिए आपसे निवेदन करूँगी की आगे से ऐसी कोई भी बात या काम नहीं करेंगी आप। चलती हूँ।” और गहनों के डब्बे गीता जी के हाँथ में रखकर रश्मि कमरे से चली गयी।

रश्मि को पता था कि गीता जी का व्यवहार तो बदलने वाला नहीं लेकिन अब वो रश्मि को कोई भी बात सोच समझकर ही बोलेंगी।

मूल चित्र : Nripen kumar roy from Pexels 

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