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बहुएं इतनी ज़ोर से नहीं हँसती हैं…

एक दिन उसे ऐसे खिलखिलाकर हँसते देख जेठानी ने बहुत बहुत डाँटा था। उनका कहना था कि बहुएं इतनी जोर से नहीं हँसती हैं।

एक दिन उसे ऐसे खिलखिलाकर हँसते देख जेठानी ने बहुत बहुत डाँटा था। उनका कहना था कि बहुएं इतनी जोर से नहीं हँसती हैं।

रसोई का काम निपटाकर वह समाचार पत्र पढ़ने बैठी। ननद कॉलेज जाने की तैयारी कर रही थी। पास आकर बोली, “भाभी, प्लीज मेरा नाश्ता लगा दो।” उसकी प्लीज सुनते ही उसे अपना मायका याद आ गया। प्यार से प्लीज बोलकर वह माँ से इसी तरह काम करवा लेती थी। इसलिए आज उसे ननद पर बहुत प्यार आ गया।

वह समाचार पत्र रखकर बोली, “अभी आपके लिए नाश्ता लाती हूँ।” रसोईघर से झांक कर देखा कि पतिदेव भी ऑफिस के लिए तैयार हो ही गये हैं, तो उनके लिए भी नाश्ता ले आयी। जेठ जी नाश्ता करके ऑफिस चले गए थे और सास-ससुर बालकनी में बैठकर बातें कर रहे थे। जेठानी अपने कमरे में थी।

वह सोचने लगी कि ननद से उसकी दोस्ती हो गई है। अब तो वह कॉलेज की सखियों की भी बातें उसे बताने लगी हैं। कभी-कभी दोनों मिलकर खूब बातें करती हैं और जोर से खिलखिलाकर हँसने भी लगती हैं।

एक दिन उसे ऐसे खिलखिलाकर हँसते देख जेठानी ने बहुत बहुत डाँटा था। उनका कहना था कि बहुएं इतनी जोर से नहीं हँसती हैं। उनकी डाँट सुनकर वह चुप तो हो गई पर सोचने लगी कि बहुओं पर ही पाबंदी क्यों? क्या उन्हें जीने का अधिकार नहीं? क्या घर में हँसने से बड़ों की इज्ज़त दांव पर लग जाती है? जेठानी कभी उसके साथ प्यार से बात नहीं करती और उसके हँसते चेहरे पर भी ग्रहण लगा देती है।

उसे भी बड़ों की इज्ज़त का ख्याल रहता है। मायके से अच्छे संस्कारों की पोटली लेकर ही उसने ससुराल की चौखट पर कदम रखे हैं। जब उसने माता-पिता के सम्मान को कभी ठेस नहीं पहुंचाई तो ससुराल में बड़ों के सम्मान को ठेस क्यों पहुँचाएगी? ऐसा नहीं है कि उसे बड़ों का टोकना पसंद नहीं है। वह बड़ों को उचित सम्मान भी देती है और उनकी बात भी मानती है। पर जेठानी की बेतुकी बातें उसे बिलकुल पसंद नहीं हैं।

सब लोग बैठकर चाय पी रहे थे। ननद ने कहा, “छोटी भाभी, आप भी आ जाओ न। सब साथ बैठकर चाय पीते हैं। चाय पीकर जब सबने जूठे कप टेबल पर रखे तो जेठानी ने कहा, “छोटी बहू, तुम छोटी हो। इसलिए तुम सबके जूठे कप यहाँ से उठाकर ले जाओगी। मैं सबकी जूठन तो उठा सकती हूँ। तुम्हारी नहीं क्योंकि मैं तुमसे बड़ी हूँ। तुम्हारे जूठे कप नहीं उठाऊँगी।”

वह सोचने लगी कि मैं घर की छोटी बहू हूँ तो क्या मैं इंसान नहीं हूँ? जब मैं सबके जूठे बरतन धो सकती हूँ तो मेरे जूठे बरतन कोई और क्यों नहीं धो सकता है? धोना तो दूर उठाकर सिंक में रख भी नहीं सकता। ऐसा क्यों?

जेठानी बात बात में बड़ी और छोटी का भेदभाव करके उसे नीचा दिखाती रहती। फिर भी वह शांत रहकर अपना काम करती रहती। पर पति के सामने अपने मन की हर भड़ास निकाल देती। कभी कभी रो भी लेती। पति कहते, “तुम्हारे चेहरे पर आँसू अच्छे नहीं लगते। तुम हिम्मत से हर परिस्थिति का सामना कर सकती हो और प्यार से सबका दिल जीत सकती हो।” पति का यही विश्वास उसकी संजीवनी बन जाता। उसे भी स्वयं पर विश्वास हो जाता कि वह घर में सबका दिल जीत सकती है।

वह देख रही थी कि सास, ससुर, ननद और पति सब के दिलों में वह जगह बना ली थी। लेकिन जेठ-जेठानी के दिलों में नहीं। वह प्रयासरत रहेगी और सबका दिल जीत लेगी। क्योंकि उसे मिलजुलकर रहना ही पसंद है। पर किसी की बेतुकी बातें वह बर्दाश्त नहीं करेगी।

औरत ही औरत को दबाने के लिए ऐसी उलजलूल नियम का हवाला देकर परेशान करती है और उसका मनोबल तोड़ती है। वह सब समझ गयी है। इसलिए ऐसी बातों का विरोध करेगी।

मूल चित्र : Mohit Maaru via Unsplash

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