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अरे बहु, सब्जी में इतना तेल क्यूँ डाला…

जिसकी बनायी हर डिश पर मम्मी पापा वाह-वाह करते थे और छोटे भाई बहनों की फरमाइशें लगी रहती थीं, अचानक वो सब व्यर्थ हो गया।

जिसकी बनायी हर डिश पर मम्मी पापा वाह-वाह करते थे और छोटे भाई बहनों की फरमाइशें लगी रहती थीं, अचानक वो सब व्यर्थ हो गया।

शिल्पा की शादी को कुछ महीने ही हुए थे। हर नई बहु की तरह उसने भी सबको खुश करने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी थी। पापाजी की दवाई की ज़िम्मेदारी, सासु माँ के कपड़े समेट कर उनकी अलमारी में रखना और देवर ननद का पूरा ख़याल रखना। मतलब कि कमर कस के सर्वगुण संपन्न बहु बनने की कोशिश हो रही थी।

मामला गड़बड़ तब हुआ जब खाना बनाने की बारी आई। उसने अपने पीहर में जैसा सीखा था यहाँ सब कुछ उससे बिलकुल ही अलग। सरला जी, यानि की शिल्पा की सासु माँ को उसका बनाया कुछ भी पसंद नहीं आता था।

“अरे बहु, सब्जी में इतना तेल क्यूँ डाला? कम डालो। फुल्के इतने धीरे क्यूँ बना रही हो? तवा खाली नहीं रहना चाहिए। मुझे देखो एक फुल्का तवे पर, तो दूसरा चकले पर बेला हुआ और तीसरे की लोई तैयार है। तुम तो बहुत ही धीरे काम करती हो।”

कुल मिला कर हर चीज़ में नुख्स निकलने शुरू हो गए और साथ ही साथ शिल्पा के  सेल्फ कॉन्फिडेंस की भी धज्जियाँ उड़ने लगी। जिसकी बनायी हर डिश पर मम्मी पापा वाह-वाह करते थे और छोटे भाई बहनों की फरमाइशें लगी रहती थीं, अचानक उसे वो सब कुछ व्यर्थ लगने लगा।

“मम्मी आप मुझे यहाँ के हिसाब से खाना बनाना सिखा दीजिये न प्लीज। ” शिल्पा को यही एक उपाय सही लगा।

“हाँ वो तो सीखना ही पड़ेगा। ऐसे बनाओगी तो कैसे चलेगा?” सासु माँ ने रवाब से कहा। “बस अब यही बाकी रह गया था। सोचा था बहु आएगी तो आराम करुँगी, पर अब उसको सिखाओ”, सासु माँ बड़बड़ाते हुए ससुर जी के सामने से निकली।

शिल्पा को सीखने में ज्यादा समय नहीं लगा। जल्दी ही सब कुछ ससुराल वालों के टेस्ट के हिसाब से बनाने लग गयी। एक दिन उसने सांभर बनाया। ससुरजी ने चटखारे लेते हुए कहा, “शिल्पा, जिस दिन ऐसा सांभर बनाने लग जाओगी न, समझ लेना पास हो गयी।” उसके लिए इससे बढ़िया कॉम्प्लीमेंट और कोई हो ही नहीं सकता था। वो इंतज़ार ही कर रही थी कि अब सासूजी बोलेगी कि आज सांभर बहु ने ही बनाया है।

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। सरला जी तो जैसे मुँह में दही जमा कर बैठी थीं और शिल्पा को समझ नहीं आ रह था कि वो सबको बताये या नहीं कि आज सरला जी ने नहीं, बल्कि उसी ने सांभर बनाया है। उससे रहा नहीं गया और उसने कह दिया, “पापाजी आज खाना मैंने ही बनाया है। मम्मी ने मुझे सिखाया था।” ये कहकर उसने मामले को बेलेन्स किया। थोड़ी मम्मी की तारीफ़ हो जाएगी तो वो भी खुश हो जाएगीं। सरला जी को अब तो झक मारकर बोलना ही पड़ा, “हाँ मैंने सिखाया, इसे कहाँ आता था सांभर बनाना। मुझसे सीखी है तो अच्छा बना पा रही है।” शिल्पा को समझ नहीं आया कि ये उसकी बढाई हो रही थी या  बुराई? खैर, ऐसा तो रोज ही होने लगा।

एक दिन कामवाली ने ऐलान किया कि वो सात दिन के लिए नहीं आएगी। सासु माँ परेशान हो गयी।शिल्पा ने कहा, “अरे कोई बात नहीं मम्मी, मैं कर लूंगी।”

सासूमाँ ने मुँह बनाते हुए कहा की, “तुम क्या कर लोगी? सिर्फ रसोई का काम करने में तो तुम थक जाती हो। झाड़ू पोछे में तो और हालत खराब होती है।”

“तो ठीक है न मम्मी, आप किचन का काम कर लेना। मैं बाहर के काम कर लूंगी। ” शिल्पा ने उपाय बताया। शिल्पा ने घर में झाड़ू, पोछा लगाया, कपड़े धोये और सुखाये। शाम को सभी घरवाले साथ बैठे तो सासुजी की रामायण चालू हो गयी। आह-ऊह की अलग-अलग तरह की आवाजें मुंह से निकलनी शुरू हुईं तो सबका ध्यान आकर्षित होना ही था। वो भी यही चाहती थी।

“क्या हुआ सरला, दर्द हो रहा है?” ससुर जी ने पुछा। “क्या बताऊँ जी, पूरा खाना बनाना, रसोई की एक-एक पट्टी साफ़ करना, बर्तन मांजना, कामवाली नहीं है तो हालत खराब हो गयी। ” सरला जी ने कराहते हुए कहा।

शिल्पा को सरला जी का ये हाल देखकर बहुत ग्लानि हुई। उसे ऐसे लगा कि उसने गलत ज़िम्मेदारी ले ली। “झाड़ू पोछे में तो इतनी मेहनत नहीं होती और कपड़े तो मशीन में ही धुल रहे हैं मुझे तो सिर्फ सुखाने ही थे। ” शिल्पा मन ही मन सोच रही थी। उसने सासु माँ से कहा, “मम्मी, कल से मैं किचन का काम और कपड़े का काम कर लूंगी आप बाकि के काम कर लेना।”

दूसरे दिन शाम को फिर सब बैठे तो सासुजी के वो ही हाल थे, “अरे 4 कमरों में झाड़ू लगाना, फिर पोंछा लगाना। आज तो हालत ख़राब हो गयी। रसोई का क्या है तुमने तो खड़े-खड़े सारा काम कर किया।”

अब शिल्पा को समझ नहीं आ रह था कि वो क्या कहे। लेकिन इतना तो वह अच्छी तरह समझ गयी थी कि सासु माँ चाहती थी कि सारे काम शिल्पा ही करे, जिससे वो आराम कर सकें। वो कुछ भी करे सरला जी को कम ही लगेगा और सासू माँ जो भी करे वो उसे बढा-चढ़ाकर बोलेगी कि लगेगा इससे ज्यादा मेहनत का काम कोई है ही नहीं। एक साल में शिल्पा ने एक सबक सीख लिया था कि अपनी सासू-माँ से बड़ाई पाने की आशा रखना व्यर्थ है।

मूल चित्र : Pexels

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