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पता नहीं इतनी बातें आती कहाँ से हैं…

तब से वो अपनी बहन से ही बात कर रही हैं, कब आये, कब गए, क्या लाये, क्या दे गए, और बहु ने कुछ कहा तो नहीं, सब बातें फ़ोन पर ही हो रही हैं।

तब से वो अपनी बहन से ही बात कर रही हैं, कब आये, कब गए, क्या लाये, क्या दे गए, और बहु ने कुछ कहा तो नहीं, सब बातें फ़ोन पर ही हो रही हैं।

सुबह के 6 बजे हैं और मम्मी जी मोबाइल देख रही हैं। उन्हें पता भी नहीं चला कि कब रिया उठ कर आयी, चाय बनाई। जब उसने ट्रे रखी तब बोलीं, “अरे तुम उठ गईं। मैं तो अपने ग्रुप्स में सबको मैसेज कर रही थी।”

“कोई बात नहीं, आप चाय ले लो। मैं बच्चों को उठाकर स्कूल के लिए तैयार कर लूं। लेकिन मम्मी जी आज तो आपको बाजार जाना था? मौसी जी के साथ, उसका क्या हुआ? जाओगे तो बिटू के लिए डायपर ला देना। मैं आपको रुपये दे दूंगी।”

“नहीं बहु, आज सुमन के घर उसकी बहू के दूर के रिश्तेदार आ गए। तो उसका फ़ोन आया कि वो नहीं आ सकेगी। हम कल जायेंगे।”

“लेकिन मम्मी जी कल से तो श्राद्ध शुरु हो रहे हैं। आप ही कहते हो इस समय कोई नया सामान, कपड़ा आदि नहीं खरीदते।”

“हाँ वो तो तुमने सही कहा। कोई बात नही, मैं सुमन को फोन कर दूंगी कि हम बाद में चले जायेंगे।”

फिर रिया रसोई की तरह चल पड़ी बर्तन साफ करने और दोपहर का खाना बनाने और उसकी सासूमाँ लगी अपने मोबाईल में गप्पें मारने।

“पता नहीं कितनी बात करेगीं।”

रिया ने सब काम निपटा कर अपने कमरे में आकर बैठी और हाथ मे अखबार लिया था। तभी सासूमाँ बोली, “अरे रिया बहू कब से चाय का इंतजार कर रही हूं। तुम बनाओगी या मैं खुद ही बना लू अपने लिए?”

“नहीं मम्मी जी, अभी चाय लेकर लायी।”

‘तब से सासूमाँ अपनी बहन से ही बात कर रही है कब आये, कब गए, क्या लाये, क्या दे गए, और बहू ने कुछ कहा तो नही सब बातें फ़ोन पर ही हो रही हैं। यह एक समय में नहीं दिन में 4-5 बार होता है। सुबह उठने से लेकर रात तक सोने तक की सारी बातें जब तक एक दूसरे से ना कर लें तब तक मन नहीं भरता। पता नहीं  इतनी बाते कहाँ से आती हैं? कोई तो बताओ।’ रिया मन ही मन सोच रही है।

यदि एक दिन बात न हो पाए तो दोनों बहनों की दशा देखते ही बनती है, कि आज कुछ हुआ है। अगले दिन तो पूरे 2 घंटे फ़ोन को ही समर्पित हो जायेंगे।

आजकल हमारे सभी घरों मे भी यही हालत है, सब मोबाइल से लगे हुए है। फ़ोन, मैसेज, चैटिंग, शेयरिंग, पिक्चर बस यही रह गया है। साथ बैठकर भी सब अलग अलग हैं, फिर भी सब व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़े हुए हैं। हमारे मोबाइल जुड़े हुए है लेकिन हम नहीं। आज कल रिश्तों की परिभाषा ही बदल गयी है! अब किसी के पास समय नही है लेकिन मोबाइल से हमेशा ऑनलाइन ही मिलेंगें।

आप का क्या कहना है इस बारे में? आजकल जिसे देखो चाहे बच्चों को देख लो या फिर बुजुर्गों को सब के हाथों में यह खिलौना दिख ही जाता है। पार्क में भी जाएंगे तब भी मोबाइल, टीवी देखते हुए भी मोबाइल, खाना खाते हुए मोबाइल। सही में यह मोबाइल न हुआ कोई जी का जंजाल हुआ। आपस मे बैठकर कोई बात नही करेगा लेकिन मोबाइल पर ‘इतनी बातों का भंडार कहा से आता है” कोई तो बताओ! 

यदि आपके पास मेरे इस सवाल का उचित जवाब हो तो मुझे जरूर देना। मेरा यह ब्लॉग कैसा लगा? लाइक भी करें।

मूल चित्र : grapixel from Getty Images Signature, via Canva Pro 

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