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भारत में किन्नर बच्चों का पहला कल्याण घर बंगलौर में खुलेगा!

कल्पना कीजिये, कैसा महसूस होता होगा इन नन्हे किन्नर बच्चों को जब ये खुद नहीं जानते कि इनके साथ अलग बर्ताव क्यों होता है?

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कल्पना कीजिये, कैसा महसूस होता होगा इन नन्हे किन्नर बच्चों को जब ये खुद नहीं जानते कि इनके साथ अलग बर्ताव क्यों होता है?

समाज में स्त्री और पुरुष के साथ एक और वर्ग है जो सदियों से अनवांछित और वंचित रहा है जिसे आमतौर पे किन्नर, हिजड़ा या ट्रांसजेंडर कहा जाता है।

किन्नर समाज को हमेशा से एक स्वाभाविक जिज्ञासा के साथ देखा जाता रहा है। अभी भी समाज में कई मिथ हैं इनको ले कर या इनके जन्म को ले कर।  पृथ्वी पे किन्नर का इतिहास कोई नया नहीं रहा है | रामायण और महाभारत काल में भी किन्नरो द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का जिक्र है। प्राचीन इतिहास में किन्नरों की स्तिथि आज से कहीं बेहतर थी, लेकिन आज आजादी के इतने सालों बाद भी किन्नरों की स्थिति बेहद चिंतित करने वाली है। दूसरों की खुशियों में आशीर्वाद देते ये किन्नर खुद बचपन से बेहद दुखी और तिरस्कृत जीवन जीते हैं।

बताना चाहूंगी की कुछ समाजसेवी और किन्नरों द्वारा निरंतर प्रयासों के बाद 2016 में ट्रांसजेंडर पर्सन्स बिल पास हुआ जिसके द्वारा इन किन्नरों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने की एक कोशिश की गई | किन्नेरों को थर्ड जेंडर की श्रेणी मिली लेकिन इसके बाद भी इनके जीवन का संघर्ष यही ख़त्म नहीं हुआ।

किन्नर बच्चों का जीवन भी बेहद संघर्ष पूर्ण होता है। इन नन्हे बच्चों का संघर्षपूर्ण जीवन बेहद छोटी उम्र से शुरु हो जाता है। कल्पना कीजिये कैसा महसूस करते होंगे ये नन्हे बच्चे जब ये खुद नहीं जानते की ये क्या हैं, या ये कैसे दूसरों से अलग हैं? कल्पना कीजिये कैसी मनोस्तिथि होगी इनके बालमन की जब अपने परिवार द्वारा भी ये तिरस्कृत होते हैं। कम उम्र में पढ़ने लिखने की जगह ये बच्चे भीख मांग कर गुजारा करने को मजबूर हो जाते हैं। ट्रांसजेंडर को मिलने वाले हक़ को कानूनी मान्यता मिलने के बाद भी आज 21 वी सदी में किन्नर बेहद पिछड़ा जीवन जीने को मजबूर है ख़ास कर उनके बच्चे उनका भविष्य भी मुझे अंधरे में ही नज़र आता है।

किन्नर बच्चों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने एक लिये बैंगलोर में किन्नर बच्चों के लिये देश का पहला घर खुलने जा रहा है और किन्नर बच्चों के हित में उठाये गए इस प्रशंसनीय कदम का मैं खुले दिल से स्वागत करती हूँ।

मिनिस्ट्री ऑफ़ वीमेन एंड चाइल्ड डेवलोपमेन्ट ने इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है, जिसका मतलब है जल्द ही बंगलौर में ऐसे दो घर इन किन्नर बच्चों के लिये खुलेंगे। इन घरों को खोलने के पीछे सरकार का ये विचार रहा है इन उपेक्षित बच्चो का उचित संरक्षण दिया जा सके | जिससे इन बच्चों की सुरक्षा और इनका उचित ध्यान रखा जा सके | सरकार द्वारा उठाया गया ये कदम बेहद प्रशंसा योग्य है लेकिन फिर भी मुझे लगता है इस कदम को उठाने में काफ़ी देर किया गया |

विशेष कर बनाये जा रहे किन्नर बच्चों के ये घर उन किन्नर बच्चों के लिये होगा, जो अनाथ है या अपने परिवार द्वारा छोड़ दिये गए है या फिर बेसहारा सड़को पे मिलते है। इन बच्चों को पहले सामान्य बच्चों के साथ रखा जाता था लेकिन वहाँ भी ये बच्चे सामान्य बच्चों के बीच उत्सुकता का विषय बन जाते थे। सामान्य बच्चे इन्हें अपने बीच सहर्ष स्वीकार नहीं करते और कई बार देखा गया की सामान्य बच्चों द्वारा इन किन्नर बच्चों को परेशान किया जाता था।

मुझे लगता है ऐसे व्यवहार से किन्नर बच्चों के मानसिक स्वस्थ पे बेहद बुरा असर पड़ता होगा। जब ये बात सोच कर भी मुझे दुःख हो रहा है तो ज़रा कल्पना कीजिये उन नन्हे मासूम किन्नर बच्चों का जो ये यातना जन्म से ही देखते है और तिरस्कृत जीवन जीने को मजबूर होते हैं।

किन्नर बच्चों के हित में उठया गया ये कदम निश्चित ही प्रशंसा योग्य है लेकिन फिर भी मुझे लगता है की जहाँ पुरे भारतवर्ष में थर्डजेंडर की आबादी एक अनुमान से 4.9 लाख से भी ज्यादा है वहाँ सिर्फ एक या दो घर से काम नहीं चलेगा। ये प्रयास ऊंट के मुँह में जीरे के बराबर है।

सरकार की प्रशंसा तो तब होगी जब ऐसे घरों को जिला स्तर पे ना सिर्फ खोला जाये बल्कि इन बच्चों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिये उन्हें शिक्षित भी किया जाये। किन्नर जो सिर्फ आशीर्वाद देते हैं, आज उनका जीवन अभिशाप बना हुआ है। ऐसे में मैं आशा करती हूँ कई सरकारी कदम उठे और लोगों की सोच में भी परिवर्तन आये और ये वर्ग भी अपने सारे हक़ पाये।

मूल चित्र : The Hindu 

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