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जल्दी क्या है, सारा दिन घर पर ही तो रहती हो तुम…

ज्यादा निराशा अंजलि को इस बात से थी कि उसके लिए महत्व रखने वाली इतनी सीधी बात अमन के लिए कितनी गैरज़रूरी थी।

ज्यादा निराशा अंजलि को इस बात से थी कि उसके लिए महत्व रखने वाली इतनी सीधी बात अमन के लिए कितनी गैरज़रूरी थी।

अंजलि ने रोज़ की अपेक्षा आधे घंटे जल्दी का अलार्म लगाया। कल वो कुछ भी करके, घर का सारा काम जल्दी से जल्दी खत्म करना चाहती थी। उसे साढ़े बारह बजे मधुबनी पेंटिंग पर एक विशेष ऑनलाइन वर्कशाप जो अटेंड करनी थी। कई दिनों पहले ही अंजलि ने इस सेशन के लिए आवेदन दे दिया था।

सुबह जल्दी उठकर अंजलि घर के सारे काम जल्दी-जल्दी निपटाने लगी। साढ़े आठ बज चुके थे और अमन (अंजलि के पति) अब तक अखबार पढने में ही तल्लीन थे। अंजलि के पूछने पर अमन ने बताया कि आज वो घर से ही काम करने वाला है और इसलिए उसे तैयार होने की कोई जल्दी नहीं थी। सुनकर अंजलि खुश होने के बजाय उदास हो गयी। अमन का घर पर होना यानी अंजलि की रसोई का दिन भर चालू रहना।

अंजलि ने फ़िर भी मन पक्का किया और बारह बजे तक सारा काम खत्म करके स्टडी में आ गई। पर उसने देखा की, अमन तो कंपनी के लैपटॉप पर काम करने के बजाय घर के लैपटॉप से काम कर रहा था। पूछने पर पता चला कि कंपनी के लैपटॉप में कुछ खराबी आ गई है इसलिए उसे घर के लैपटॉप की ज़रूरत है।

अंजलि बिना कुछ कहे जब जाने लगी तब अमन ने पूछा कि क्या उसे कुछ काम था। अंजलि ने भी बेझिझक होकर अमन को अपनी वर्कशाप के बारे मे बता दिया। कुछ पल के लिए अंजलि को लगा था कि शायद अमन उसकी बात समझकर उसे थोड़ी देर के लिए लैपटॉप दे देगा लेकिन अमन ने  बिना अंजलि की ओर देखे स्पष्ट कर दिया, “घर पर ही तो रहती हो सारा दिन! कभी और देख लेना।”

अंजलि भी बिना कुछ कहे स्टडी से बाहर आ गई। हालाँकि उस वर्कशाप के लिए उसने कोई पैसे जमा नहीं किये थे, लेकिन सेशन अटेंड न कर पाने से ज्यादा निराशा अंजलि को इस बात से थी कि उसके लिए महत्व रखने वाली इतनी सीधी बात अमन के लिए कितनी गैरज़रूरी थी। क्या इतनी ही कीमत थी उसकी अपने घर में?

इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि अंजलि ने अपने पसंदीदा चित्रकार की दो दिवसीय प्रदर्शनी को देखने जाने का कार्यक्रम बनाया। हालाँकि कैलेेंडर चेक करने के बाद अंजलि को याद आया कि प्रदर्शनी के पहले दिन तो उसके तीन वर्षीय बेटे आयुष का टीकाकरण है, तो उसके लिए केवल प्रदर्शनी के दूसरे और अंतिम दिन ही जा पाना संभव होगा।

तय दिन जब अंजलि प्रदर्शनी में जाने के लिए उत्सुकता से तैयार हो रही थी, तभी अमन का फोन आया , “अंजलि आज रात  मेरे बाॅस और उनका परिवार हमारे घर खाने पर आने वाले हैं । तुम्हारे हाथ की बिरयानी उन्हें बड़ी पसंद आई तो वही बनाना और कुछ मीठा बनाना मत भूलना।” अंजलि ने अमन की बात को काटते हुए बताया कि वह किसी काम से बाहर जा रही थी। उस पर अमन ने तुरंत स्पष्ट कर दिया “सारा दिन घर पर ही तो रहती हो, कभी और चली जाना।”

अंजलि बाहर गई ज़रूर लेकिन बिरयानी के लिए सब्जियाँ और खीर के लिए मेवे खरीदने। जाते-जाते सोचती रही कि क्या अमन के प्रमोशन के लिए उसके  काम से ज्यादा अंजलि के हाथ का खाना महत्वपूर्ण है? और अगर ऐसा है तो इसका मतलब उसके अपने ही घर में उससे ज्यादा कीमत, उसके हाथ के खाने की है। खैर! जो भी हो, आखिर अंजलि की पाक कला का जादू अमन के बाॅस पर चल ही गया।

एक दिन अंजलि ने अमन को अपने किसी मित्र से फोन पर बात करते सुना कि अमन के ऑफिस के किसी सहकर्मी ने उनके वॄद्ध माता- पिता और दो वर्षीय बेटी को दिनभर  संभालने के लिए बीस हजार रूपये मासिक वेतन पर एक सहायक रखा हुआ है, परंतु फिर भी उस व्यक्ति की लापरवाही से आज उस सहकर्मी की माताजी अस्पताल में भर्ती है। मित्र के कुछ कहने पर अमन ने सिर्फ इतना कहा कि “अंजलि तो दिन भर घर पर ही रहती है न, हमें इन सब बातों से क्या काम।” इधर अंजलि सोचने लगी कि वह कम से कम अमन के बीस हजार रूपये तो बचा ही लेती है।

अगले दिन, सुबह की आपाधापी के बीच अंजलि को याद आया कि आज गैस के सिलेंडर के आवेदन का आखिरी दिन था। उसने नंबर मिलाने के लिए फोन उठाया ही था कि अमन ने आवाज़ दी, “अंजलि देर हो रही है, नाश्ता लगा दो।” अंजलि ने तुरंत जवाब दिया कि वह एक ज़रूरी काॅल पर है और अमन को खुद ही नाश्ता लेना होगा।

सुनते ही अमन ने झुँझला कर कहा कि,”दिनभर तो घर पर ही रहती हो! क्या ये बाद में नहीं हो सकता?”, कहकर अमन बिना नाश्ता किये जाने लगा। जाते-जाते उसने अंजलि से कहा कि, “आज जब आयुष को स्कूल से लेने जाओ तब बिजली का बिल भर देना और माँ की दवाईयाँ भी ले आना। दिन भर घर पर रहती हो, थोडा टाईमपास हो जाएगा” अंजलि ने सिलेंडर का टोकन नम्बर लिखते हुए  सोचा, “सच ही तो बात है, दिनभर घर पर वक्त कहाँ कटता है मेरा।”

आज रविवार का दिन है, मतलब छुट्टी का दिन। अरे भई अमन की छुट्टी का दिन है! और संयोग तो देखो कि आज ही अमन की पसंदीदा टीम का क्रिकेट मैच भी है। इससे अच्छी छुट्टी और क्या हो सकती है। लेकिन अंजलि? उसका क्या? सुबह का संडे स्पेशल नाश्ता फिर विशेष खाना, कूलर के सामने आकर बैठने का मौका मिला तब तक दोपहर के तीन बज चुके थे और चार बजे तो उसे आयुष को लेकर एक बर्थडे पार्टी में जाना है।

ज़रा आराम करने की सोच ही रही थी कि अमन ने छेड़ा- “आराम तो रोज़ ही करती हो, कभी मेरे पास आकर भी बैठा करो।” अंजलि ने भी जवाब देते हुए प्यार से कहा कि, “सुनो ना, आयुष को आज तुम बाहर ले जाओ ना।” पर अमन ने तुरंत जवाब दे दिया कि, “वो क्रिकेट मैच छोड़कर नहीं। जायेगा और फिर रोज़ तो घर पर ही रहती हो, इसी बहाने बाहर हो आओगी।”

पर अचानक इस बार न जाने क्यूँ स्वयं का तिरस्कार, अंजलि के भीतर बिजली सा दौड़ गया। उसने अमन को कुछ न कहते हुए बस अपना फोन उठाया और नंबर लगाया- “हैलो! ‘न्यू मी’ सैलून? क्या मुझे अभी का अपाॅइन्टमेंट मिल सकता है?” कुछ जवाब सुनकर अंजलि ने पर्स उठाया और बाहर जाने लगी।

“पर मम्मी मेरी पार्टी?” आयुष बोला।

“पापा ले जाएंगे बेटा। आज संडे है ना, घर पर ही तो है। इतना तो कर ही सकते है। है ना!” अंजलि ने कहा। सीढियां उतरते हुए अंजलि की हाई हिल सैंडल की आवाज़ आने लगी। अपने मन में अंजलि दोहराते रही, ‘कल करे सो आज कर, आज करे सो अब। बाद में कहते-कहते उम्र निकल जाएगी, ज़िन्दगी जियोगी कब?’

काश! अंजलि सिर्फ एक काल्पनिक पात्र ही होती। दुर्दशावश,  अंजलि सिर्फ एक काल्पनिक पात्र न होकर हर ग्रहणी की कहानी है, जिसके योगदान और इच्छाओं को हमेशा ही कम आंका जाता है।

मूल चित्र: Blush via YouTube

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