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टूट कर बिखरी स्त्रियां बन जाती हैं पत्थर सी…

वे हर नई टूट से पहले जानती हैं, टूटी हुई किरचों से मिले जख्मों की गहराई, और तैयार रखती हैं फाहे, आँसुओं और हौसलों से बने उस जादुई मलहम के...

वे हर नई टूट से पहले जानती हैं, टूटी हुई किरचों से मिले जख्मों की गहराई, और तैयार रखती हैं फाहे, आँसुओं और हौसलों से बने उस जादुई मलहम के…

टूट कर बिखरी स्त्रियां,
अपनी किरचों को संभाल कर,
गढ़ लेती हैं हर बार
एक नई सुंदर मूरत,
कि देखने वाला बाल बराबर भी
जोड़ नहीं ढूंढ पाता!

वे हर नई टूट से पहले जानती हैं,
टूटी हुई किरचों से मिले
जख्मों की गहराई,
और तैयार रखती हैं फाहे,
आँसुओं और हौसलों से बने
उस जादुई मलहम के,
जिसका नुस्खा उसकी सारी बिरादरी,
सदियों से आजमाती आई है!

टूट कर बिखरी स्त्रियां,
इसी टूटन-जुड़न की अभ्यस्त होकर
एक दिन हो जाती हैं पत्थर,
और पूजी जाती हैं देवघर में,
जहां उनकी चुप्पियों की नजर उतार,
उनपर वारी जाती है दुनियाभर की दौलत!

मूल चित्र : KIJO77 from Getty Images via Canva Pro

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