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यदि कोई भी शादी से नाखुश हैं तो उन्हें तलाक लेने का पूरा हक़ है। लेकिन इसके लिए तलाक के नियम के बारे में पूरी जानकारी होना आवश्यक है।
तलाक कानूनी करवाई के माध्यम से रिश्ते से अलग होने की प्रक्रिया है। तलाक या डिवोर्स लेने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे मनमुटाव, असहमतियाँ, घरेलु हिंसा, आदि। लेकिन अगर आप दोनों इस रिश्ते से आजाद होना चाहते हैं तो उसमें दूसरों की कोई ‘किन्तु’, ‘परन्तु’ की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। आख़िरकार इससे आपको आपकी शांति ही वापस मिलेंगी। तो अगर आप या आपके कोई जानकार तलाक़ लेना चाहते हैं तो उनके लिए सबसे पहले डाइवोर्स लॉज़ यानि तलाक़ के नियम जानना जरुरी है।
भारत में तलाक के कानून दंपति के धर्म पर निर्भर करता है। हिन्दुओं में हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के अंतर्गत, मुस्लिम कम्युनिटी में मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939, से तलाक़ लेने का अधिकार है। वहीं इंटरकास्ट मैरिज के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के द्वारा फैसला सुनाया जाता है। इनके अलावा कुछ तलाक़ के नियम हैं जो हर जगह समान हैं।
भारत में दो तरिके से तलाक़ लिया जा सकता है : पहला – आपसी सहमति से तलाक़, दूसरा – असहमति से तलाक़।
अगर पति-पत्नी दोनों आपसी रज़ामंदी से तलाक़ लेना चाहते हैं तो वो बहुत आसानी से ले सकते हैं। इसके लिए दोनों का एक साल से अलग रहना सबसे पहला कदम होता है। उसके बाद वे कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं। इसमें कोर्ट के समक्ष दोनों के बयान रिकॉर्ड करे जाते हैं और सिग्नेचर लिए जाते हैं। इसके बाद दोनों को पुनः विचार करने के लिए छह महीने का वक्त दिया जाता है। और छह महीने पूरे होने के बाद अगर वे तलाक़ लेना चाहते हैं तो कोर्ट में उनके तलाक़ को मंज़ूरी दे दी जाती है। इसमें बच्चे की कस्टडी के बारे में पति-पत्नी आपस में फैसला करते हैं।
अगर पति या पत्नी में से कोई अलग होना चाहता है तो वो कोर्ट में तलाक़ की याचिका दायर कर सकता है। इसके लिए आपको तलाक़ लेने के कारणों को स्पष्ट करना होता है। डाइवोर्स लॉज़ में इसके लिए कुछ आधार दिए गए हैं जिस पर पुरुष और महिला तलाक मांग सकते हैं। और कुछ विशेष आधार भी हैं जो केवल महिलाओं के लिए उपलब्ध हैं।
पहले इसकी प्रक्रिया जान लेते हैं –
सबसे पहले आपको जिस आधार पर तलाक़ लेना है, वो सुनिश्चित करें और उसके सबूत जुटाना शुरू करें। इसके बाद कोर्ट में सारे कागजों और सबूतों के साथ अर्जी दाखिल करें। इसके बाद कोर्ट दूसरे पार्टनर को नोटिस भेजेगी। नोटिस के बाद अगर पार्टनर कोर्ट नहीं पहुंचता है तो मामला एकपक्षी रह जाता है और तलाक लेने वाले पार्टनर को कागजों के हिसाब से फैसला सुना दिया जाता है।
वहीं अगर नोटिस के बाद दूसरा पक्ष कोर्ट पहुंचता है तो दोनों की सुनवाई होती है और ये कोशिश की जाती है कि मामला बातचीत से सुलझ जाए। अगर बातचीत से मामला नहीं सुलझता है तो केस करने वाला पार्टनर दूसरे पार्टनर के खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल करता है। लिखित बयान 30 से 90 दिन के अंदर होना चाहिए। इसके बाद दोनों पक्षों की सुनवाई होती है और सबूतों व दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट अपना अंतिम फैसला सुनाती है। ये प्रक्रिया कई बार कई समय तक खींच जाती है। इस तरह के तलाक़ में न्यायालय कस्टोडियल अधिकारों को तय करते समय बच्चे के हित में निर्णय लेती है।
पहली शादी खत्म किये बिना यदि पति दूसरी शादी कर लेता है, तो पत्नी तलाक़ के लिए कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल कर सकती है। ध्यान दे, यह कानून मुस्लिम धर्म की महिलाओं पर लागू नहीं होता है क्योंकि मुस्लिम कानून में सीमित बहुविवाह की अनुमति है।
बाल विवाह के मामलों में, अगर पत्नी पंद्रह साल से ऊपर और अठारह साल से कम उम्र की है, तो वे भी तलाक़ के लिए अर्ज़ी डाल सकती हैं।
ध्यान दे, पत्नी खुद के लिए और अपने बच्चे के लिए एक मेंटेनेंस याचिका दायर कर सकती है। अदालत पति के वेतन, उसके रहने के खर्च, उसके आश्रितों आदि जैसे मुद्दों पर विचार करने के बाद पत्नी का मेंटेनेंस तय करती है। इसके अलावा साथ में खरीदी गयी संपत्ति का बंटवारा भी तलाक़ की प्रक्रिया के दौरान किया जाता है।
कोई भी कदम उठाने से पहले उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी लेना अति आवश्यक होता है। इसीलिए अगर आप तलाक़ लेना चाहते हैं तो भारत में तलाक के नियम सबसे पहले जाने और इसकी जानकारी जरुरतमंदों तक अवश्य पहुँचाये।
मूल चित्र : AndreyPopov from Getty Images Pro, via Canva Pro
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