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शाबाना आजमी स्टारर 'काली खुही' अपने अंदर परंपरा और रीति-रिवाज के नाम पर दमन, शोषण और अत्याचार की कहानियों को समेते हुए है।
शाबाना आजमी स्टारर ‘काली खुही’ अपने अंदर परंपरा और रीति-रिवाज के नाम पर दमन, शोषण और अत्याचार की कहानियों को समेते हुए है।
कन्या भ्रूण हत्या भारत में अल्ट्रासाउंड मशीनों के आने के बाद दर्ज हो रही बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी है। उसके पहले भारत में कन्या शिशु हत्याओं का चलन बड़ी मात्रा में मौजूद था। इसके लिए बच्चियों के पैदा होते ही दूध में जहर देकर, नाक या मुंह में गेहूं के दानों को डालकर, नमक या अफीम चटाकर, भूख से तड़पाकर मार दिया जाता था।
भारत में कन्या शिशु हत्या के कारण बहुत बड़ी आबादी की महिलाओं के हाथ खून से रंगे हुए है। यह पहली बार तब दर्ज हुई जब 1986 में इंडिया टुडे मैग्जीन में “बोर्न टू डाई” कवर स्टोरी प्रकाशित हुई। दो साल बार फिर 1988 में कन्या शिशु हत्या पर दूसरी विस्फोटक स्टोरी प्रकाशित हुई। उसके बाद ‘कन्या शिशु हत्या फैक्ट फाइंडिंग कमेटी’ बनी और अखबारों में स्टोरी आना शुरू हुई।
इस सच्चाई को एक कहानी के रूप में जानने के लिए “काली खुही” देखनी चाहिए। आज के समय में कई लोगों को भारत के इस सच्चाई के बारे में पता भी नहीं है कि ऐसा कुछ भी होता होगा। कुछ दिन पहले नेटफिलिक्स पर टेरी समु्ंद्रा निर्देशित काली खुही फिल्म कन्या शिशु हत्याओं पर आधारित है। काली खुही की कहानी भले ही कमजोर है पर बहुत तगड़ा संदेश देती है। हॉरर कहकर प्रचारित की गयी काली खुही कहीं से नहीं डराती है बस थोड़ा सा उद्देलित करती है।
“काली खुही” खुही का मतलब कुंआ होता है, खुही क्षेत्रीय भाषा से लिया गया शब्द है। कोई भी कुंआ जब पानी से लबालब होता है। जो जीवनदायी होता है पर खाली या सुखा कुंआ कई हादसों की कहानियों को अपने अंदर समेटे रखता है। काली खुही भी अपने अंदर परंपरा और रीति-रिवाज के नाम पर दमन, शोषण और अत्याचार की कहानियों को समेते हुए है।
कहानी शुरू होती है पंजाब के किसी गांव से, जहां दर्शन(सत्यदीप मिश्रा) की मां(लीला सैमसन) रहती है। मां के बीमार होने की खबर पाकर दर्शन अपनी पत्नी प्रिया(संजीदा शेख) और दस साल की बेटी शिवागी(रीवा अरोड़ा) के साथ गांव आता है। प्रिया गांव नहीं आना चाहती है पर पति के जिद पर चली आती है। दर्शन की मां अचानक से ठीक हो जाती है और प्रिया को बेटा ना होने पर कोसती है। गांव में शिवागी को हमेशा अपने उम्र की एक लड़की (हेवती भानुशाली) दिखती है जो और किसी को नहीं दिखती है। धीरे-धीरे सबों को नहीं दिखने वाली लड़की का असली चेहरा सामने आता है वह रूह शिवागी की दादी, मां और पिता को मार देती है।
शाबान आजमी दर्शन के पड़ोस में रहती है सब उसे मौसी कहते है। मौसी के साथ रह रही बेबी(रोज राठौर) को भी रूह अपने कब्जे में लेती है। मौसी गांव छोड़कर जाना तय करती है मगर रूह जाने नहीं देती। तब मौसी शिवागी से कहती है वह नई पीढ़ी की है वह इसे रोक सकती है। क्या शिवांगी रूह को रोक सकेगी? वह शिवांगी के परिवार के पीछे क्यों पड़ी है? इसके लिए फिल्म आपकों देखनी होगी, जो बहुत बड़े सामाजिक त्रासदी की कहानी है।
फिल्म का मुख्य आकर्षण केवल शाबाना आजमी और रीवा अरोड़ा का चरित्र है। दोनों का अभिनय भी बहुत सधा हुआ है। अपने शानदार अभिनय से शाबाना ही कई बार कहानी में घट रही घटनाओं की सूत्रधार लगती है, जबकि उनका चरित्र बस एक माध्यम है जो चाहकर भी गांव में कन्या शिशु हत्याओं को नहीं रोक पाता है।
अन्य कलाकार अधिक प्रभावित नहीं करते है। सीमित लोकेशन के साथ कहानी कहना एक चुनौती है जिस वजह से कहानी थोड़ी बोझिल भी बन जाती है। टेरी समु्ंद्रा अमेरिका में बसी शार्ट फिल्में बनाती हैं। भारत के गांव को जिस तरह से उन्होंने दिखाया है उसमें देशीपन की झलक इसीलिए कम दिखती है। कहानी कहने में गांव के लोगों के साथ संवाद की कमी भी खटकती है। काली खुई तगड़ा संदेश तो देती है पर कहानी कहने की तरीके में चूक जाती है।
मूल चित्र : Screenshots from the film Kaali Khuhi
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