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इरा खान अपने डिप्रेशन के बारे में इस वीडियो में ऐसा क्यों कह रही हैं?

इरा खान ने अपने डिप्रेशन के बारे में बोलने के लिए ट्रोल किए जाने के बाद एक वीडियो साझा किया। क्यों आज भी हमें इसकी ज़रूरत हुई?

इरा खान ने अपने डिप्रेशन के बारे में बोलने के लिए ट्रोल किए जाने के बाद एक वीडियो साझा किया। क्यों आज भी हमें इसकी ज़रूरत हुई?

अनुवाद : शगुन मंगल ( यह लेख विमेंस वेब पर पहले यहां पब्लिश हुआ है।)

हाल ही में, आमिर खान की बेटी, इरा खान ने खुलासा किया कि वे 14 साल की उम्र में, किसी अपने जानने वाले के द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार हुईं थी। अपने इंस्टाग्राम पेज पर उन्होंने दस मिनट के लंबे वीडियो में कई व्यक्तिगत चुनौतियों के बारे में बताया। इनमें छ: साल की उम्र में एक भयानक बीमारी का पता चलना, 14 साल की उम्र में यौन उत्पीड़न, उनके माता-पिता के तलाक और डिप्रेशन (अवसाद) के साथ उनकी लड़ाई शामिल थी।

लोगों की तरफ से समर्थन और सकारात्मकता के बजाय, इरा को अपने ‘विशेषाधिकारों’ के बारे में  कई तरह के असंवेदनशील सवालों का सामना करना पड़ा।

हम क्यों मानते हैं कि ‘विशेषाधिकार प्राप्त’ (privileged) लोग निराश नहीं हो सकते?

‘उदास क्यों हो? ईश्वर की कृपा से आपके पास सब कुछ है। आपको इसके लिए आभारी होना चाहिए। हमने कितनी बार डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों को इस अफसोस में धकेला है कि वे अपने जीवन के लिए आभारी नहीं हैं?

हम बस यह मान लेते हैं कि जब कोई व्यक्ति अपने जीवन से असंतुष्ट होता है, तो डिप्रेशन होता है और इसी वजह से यह भी मान लिया जाता है कि ‘विशेषाधिकार प्राप्त’ लोगो उदास नहीं हो सकते हैं। इरा खान ने भी कहा कि उनके विशेषाधिकार का मतलब है कि उन्हें अपने दम पर सब संभालना चाहिए। ‘

लेकिन जिसे हम भूल जाते हैं या मानने से इनकार करते हैं, वह यह है कि अवसाद मन की बीमारी है और यह हम सभी को प्रभावित कर सकती है। हम अक्सर लोगों को यह सोचने के लिए कहते हैं कि वे ‘इसे बना रहे हैं’ या ‘यह सब उनके दिमाग में है।’ आज भी ‘अनग्रेटफुल’ और ‘अटेंशन सीकर’ जैसे टैग मिल जाने के डर कई व्यक्ति अपना दर्द साझा करने से कतराते हैं और अकेले इससे लड़ते हैं।

डिप्रेशन ‘अटेंशन सीकिंग’ नहीं है

जब भी कोई अवसाद के साथ अपनी लड़ाई साझा करने के लिए खुलकर आता है या मदद लेने का प्रयास करता है, तो हम अक्सर इसे ‘ध्यान केंद्रित करने वाले व्यवहार’ या ‘पब्लिसिटी स्टंट’ के रूप में टैग कर देते हैं। खासकर जब बॉलीवुड की बात आती है, तो हम मानते हैं कि सब कुछ एक पब्लिसिटी स्टंट है।

आज कई फिल्मों में, डिप्रेशन को रोमांटिक और बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है, जिससे यह लगता है कि यह एक ऐसी चीज है जो ‘कूल और ट्रेंडी’ है जिसे बस कुछ तरह के शब्दों के साथ संबोधित किया जा सकता है। इस धारणा के कारण, अधिकांश लोग आगे नहीं आते हैं या मदद नहीं मांगते हैं। इसके अलावा, नजरअंदाज किए जाने या उससे भी बदतर ट्रोल किये जाने का डर रहता है।

किसी को भी अपने अवसाद को दूसरों के सामने सही ठहराने की जरूरत नहीं है। बॉलीवुड में, जहां हम सभी सिर्फ ग्लैमर और लक्जरी दिखता है, वहां डिप्रेशन से जूझना एक कठिन काम लगता है। अब हमें डिप्रेशन की थकावट को महसूस करने भी ज़रूरत है जहां हमसे हर वक़्त मुस्कुराने की उम्मीद करी जाती है, जहां हमसे हमेशा की तरह या नॉर्मल रहने की करी जाती है जबकी हम दिल खोलकर रोना चाहते हैं।   

किसी को भी उनके डिप्रेशन के लिए एक ‘वेलिड़ रीज़न’ खोजने के लिए नहीं बोला जाना चाहिए, क्योंकि सभी शारीरिक बीमारियों की तरह, डिप्रेशन, भी एक बीमारी है, भले ही वह अदृश्य हो।

मूल चित्र : Ira Khan’s Instagram

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Anamika

Anamika is an English literature student with a strong inclination towards feminist literature, feminist literary criticism and women's history. read more...

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