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हमें भी आया गीतों का बुलावा!

और आँखों ही आँखों में तय कर लेती हैं, अपनी-अपनी भूमिकाएं, नाचने, बजाने, गाने और बात-बेबात पर कहकहे लगाने की!

और आँखों ही आँखों में तय कर लेती हैं, अपनी-अपनी भूमिकाएं, नाचने, बजाने, गाने और बात-बेबात पर कहकहे लगाने की!

ढोलक पर थपकियां देती,
भात, घोड़ी, बन्ना-बन्नी,
जनम, छठी, मुंडन के शगुन,
गीत गाकर झूमती-नाचती औरतें,
पलक झपकते ही बना लेती हैं,
गीतों वाले घर में अपना एक अलग समूह!
वे हाईजैक कर लेती हैं,
गीतों का पूरे का पूरा कार्यक्रम,
और आँखों ही आँखों में तय कर लेती हैं,
अपनी-अपनी भूमिकाएं,
नाचने, बजाने, गाने और
बात-बेबात पर कहकहे लगाने की।

वे नई पीढ़ी की स्त्रियों को
लगाने नहीं देती ज़रा सी भी सेंध,
अपने इस ‘देसी ईवैंट ग्रुप’ में!
लोकगीत गाती इन स्त्रियों पर
गीतों के साथ-साथ,
एक मैंटल प्रैशर भी
हावी रहता है अपनी पीढ़ी को
नई पीढ़ी की स्त्रियों के समक्ष
श्रेष्ठ सिद्ध करने का।

इन स्त्रियों द्वारा बड़े ही मनोयोग
और चाव से गाए,
शुभेच्छाओं के रंग में रंगे
गीतों को सुन कर जब,
गीतों के बुलावे वाले घर का
सूना पड़ा हर कोना और आँगन
गुंजायमान होकर झूम उठता है तो।

हाईफाई डीजे पर चलते गीतों पर,
युवा पीढ़ी के कोरियोग्राफ्ड डांस भी
इनके आगे फीके जान पड़ते हैं!
शगुन गीत गाने वाली,
इन औरतों के समूह में होती है,
इन सबसे उम्रदराज औरत
जो गीतों के दौरान सारी रस्म निभाती,
नई और पुरानी पीढ़ी की औरतों के बीच
बातों ही बातों में सामंजस्य बैठाती है,
बस, वही लोक-परंपराओं की सच्ची ध्वजवाहक
और संरक्षक होती है।

चित्र आभार : shaadikiwebsite.com

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