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बड़े तोहफों से रिश्तों को छोटा नहीं करते…

उनके जाने के बाद निशा ने कहा, "माँ क्या जरूरत थी उनको मिठाई और चांदी के सिक्के देने की? वो कौन सा उपहार लेकर आये थे।"

उनके जाने के बाद निशा ने कहा, “माँ क्या जरूरत थी उनको मिठाई और चांदी के सिक्के देने की? वो कौन सा उपहार लेकर आये थे।”

“भाभी आपके मायके से आपके भाई और पापा आये हैं”, रसोई में आकर निशा ने अपनी छोटी भाभी प्रियंका से कहा।

“क्या? आती हूँ?” प्रियंका खुशी से भागती हुई अपने भाई पापा से मिलने गयी। लेकिन आज प्रियंका से भी ज्यादा खुश निशा थी। क्योंकि आज उसको महंगा तोहफा जो मिलने वाला था।

प्रियंका अपने मायके में दो भाइयों में इकलौती थी। मायके से  भी सम्पन्न धनी परिवार से थी। तो उसे मायके महंगे गिफ्ट मिलते रहते थे।

निशा रसोई में आके भाग भाग कर काम करने लगी। निशा ने अपनी बड़ी भाभी साक्षी से कहा, “ये क्या भाभी लड्डू नहीं। इसमें काजु कतली और रसमलाई रखो। पता नहीं भाभी के मायके वाले कितने पैसे वाले हैं?” उसने चाय पानी नाश्ता सब खुद ही ले जाकर दिया।

पूरा परिवार प्रियंका के भाई पापा से मिलकर एक दूसरे को दीवाली की बधाई दे रहा था, लेकिन निशा की नजरें तो उनके लाये उपहार पर ही टिकी हुईं थीं कि कब वो लोग जाएँ और वो उन उपहारों को खोल कर देखे।

तभी प्रियंका के पापा ने कहा, “समधनजी (सुधा)ये कुछ उपहार आप सब के लिए लाया था। दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं आप सब को।”

“आपको भी समधी जी सपरिवार दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं। हमारी तरफ़ से भी ये छोटा सा उपहार स्वीकार कीजिए”, सुधा जी ने उनको मिठाई के साथ चांदी के सिक्के दिए।

अगले दिन निशा गिफ्ट में मिला अपना  महंगा सूट देखकर खुश हो रही थी कि तभी सुधा जी ने आवाज़ दी, “निशा साक्षी को बोल दे बेटा की उसके पापा रमेश जी आये हैं और चाय नाश्ता लेकर आना जरा।”

लेकिन निशा टस से मस नहीं हुई। थोड़ी देर बाद सुधा जी खुद उठ के आयीं और साक्षी को आवाज लगाई। साक्षी छत से सूखे कपड़े उतार रही थी। सासु माँ की बात सुन के वो नीचे उतर कर आई और कपड़ों को कमरे में रख कर भागती हुई अपने पापा से मिलने गयी।

रमेश जी सिर्फ मिठाई लेकर आये थे। सुधा जी ने निशा से कहा, “बहु तुम अपने पापा से बात करो।मैं आती हूं”, और खुद ले जाकर चाय नाश्ता दिया, क्योंकि प्रियंका बाजार गयी हुई थी।

सुधा जी को निशा का ये व्यवहार बिल्कुल भी पसंद नहीं था। बहुत बार सुधा जी ने प्यार से समझाने की कोशिश की थी लेकिन वो समझने के लिए तैयार नहीं थी।

सुधा जी ने उनको भी वैसी ही मिठाई मंगा कर दी और कहा, “समधी जी आपको भी सपरिवार दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं।”

उनके जाने के बाद निशा ने कहा, “माँ क्या जरूरत थी उनको मिठाई और चांदी के सिक्के देने की? वो कौन सा उपहार लेकर आये थे।”

“क्यों भाभी ठीक कह रही हूं ना? प्रियंका भाभी के पापा ने तो कितना अच्छा और महंगा उपहार और सूट दिया मुझे और हम सब को”, कह के अपने कमरे में जाने लगी।

तभी सुधाजी ने कहा, “निशा रूको। अभी बात पूरी नहीं हुई। निशा कल को तुमको भी शादी करके ससुराल जाना है। और कहीं तुम्हारे ससुराल वाले भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा तुम अपनी भाभी के मायके वालों के साथ करती हो, तो कैसा लगेगा तुम्हें? सोच कर बताना।” निशा अवाक हो सुधा जी को देखने लगी।

तभी सुधा जी ने दूसरा प्रहार किया, “निशा त्यौहार  महंगे उपहार बांटने के  लिए नहीं होते, बल्कि त्यौहार  में अपनों के बीच प्यार और खुशियां बाँटी जाती हैं। यही वो मौका होता है जब हम एक दूसरे के साथ अपना मनमुटाव ख़त्म कर देते हैं। खुशियां और प्यार बांटने से बढ़ती हैं। साक्षी के पापा ने तो हमें इतना सुंदर बेशकीमती उपहार अपनी बेटी हमें दी है और क्या चाहिए हमें?”

निशा को आज अपने किये पर शर्म आ रही थी। उसने कहा, “हाँ मां सही कह रही हो। मैं अपने लालच में भूल गयी थी कि कल को मुझे भी ससुराल जाना है। भाभी मुझे माफ़ कर दीजिए। आगे से ऐसी गलती नहीं करूँगी।” और सुधा जी ने अपनी बेटी और बहू को गले से लगा लिया।

चित्र साभार : davidf from Getty Images Signature via Canva Pro 

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