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बिहार चुनाव में इस बार महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत बढ़ना एक सुखद खबर है क्योंकि इससे महिला सशक्तिकरण का नींव को मजबूती मिलती है।
एक ओर जहां सर्दी दस्तक दे रही है, वहीं बिहार में चुनाव होने के कारण माहौल गर्म है। हर तरफ से चुनाव को लेकर खबरें आ रही हैं और ऐसे में सभी की नज़रें परिणाम पर टिकी हैं। हालांकि अभी वोटिंग का एक और चरण बाकी है, मगर लोगों के मन में उत्साह का माहौल बना हुआ है।
सबसे ज्यादा उत्साह अगर किन्हीं में देखा जा रहा है, वह है महिलाओं की भागीदारी। वोटिंग में जिस तरह से महिलाओं ने अपनी भागीदारी दर्ज की है, उसे देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब वह दौर गया, जब महिलाएं केवल घर तक सीमित रह जाती थीं। चुनाव प्रक्रिया में महिलाओं ने अपनी सशक्त भूमिका से यह जाहिर कर दिया है कि उन्होंने अपने आंचल का परचम बनाना ठान लिया है।
बिहार में चल रहे विधानसभा चुनाव को लेकर वोटिंग में महिलाओं ने पुरुषों को पछाड़ दिया है। इस बार वोटिंग में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 17 प्रतिशत तक बढ़ी है। पिछले चुनावों के आंकड़ों की बात करें तो बिहार में फरवरी 2005 में हुए चुनाव में करीब 2.44 करोड़ वोट पड़े थे। जिसमें एक करोड़ महिलाओं अर्थात् 43 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाला था। यह आंकड़े बेशक एक बेहतर समाज की ओर बढ़ने वाले आंकड़े हैं। वहीं साल 2015 में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 60.48 था जबकि पुरुषों का वोटिंग प्रतिशत केवल 53.32 तक सिमट गया था। बिहार राज्य में महिलाओं की वोटिंग प्रतिशत बढ़ना एक सुखद खबर है क्योंकि इससे महिला सशक्तिकरण का नींव को मजबूती मिलती है।
महिलाओं को वोटिंग का अधिकार पाने के लिए कई सालों का संघर्ष करना पड़ा था। हालांकि भारत के आज़ाद होते ही व्यस्क महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिल गया था। भारत के आज़ादी के वक्त वोटरों की संख्या पांच गुना तक बढ़कर करीब 17 करोड़ 30 लाख तक पहुंच गई थी और इसमें से करीब 8 करोड़ हिस्सेदारी महिलाओं की थी। साथ ही इनमें से करीब 85 प्रतिशत महिलाओं ने कभी वोट ही नहीं दिया था, जिसके बाद करीब 28 लाख महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा देने पड़े।
एक समय ऐसा भी था, जब महात्मा गांधी ने कहा था कि “औपनिवेशिक शासकों से लड़ने के लिए उन्हें पुरुषों की मदद करनी चाहिए।” उनके इस कथन से तात्पर्य था कि वे महिलाओं के वोटिंग के अधिकार के पक्ष में नहीं थे। इतिहासकार गेराल्डिन फोर्ब्स ने लिखा था कि भारतीय महिला संगठनों को महिलाओं को मतदान का अधिकार पाने के लिए एक मुश्किल लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इस करह ऐसे अनेकों कथन हैं जिसमें महिलाओं को कमतर आंका गया था। महिलाओं के बारे में धारणा बना ली गई थी कि वे निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं।
वर्तमान समय में महिलाओं ने जिस तरह से अपनी भागीदारी दिखाई है, उससे यह साफ जाहिर है कि महिलाओं को केवल एक मौके की तलाश होती है। आगे उन्हें अपना रास्ता बनाना आता है। अब तो ना केवल वोटिंग बल्कि प्रत्याशी के तौर पर भी राजनीति में महिलाओं की भूमिका उनके सशक्तिकरण को सबके सामने रखती है।
मूल चित्र : Google
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