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मेरी बहु मेरे लिए हमेशा चाँद का टुकड़ा रहेगी…

बहु के रूप में एक बेटी क्या मिली, निर्मला के सपनों को पँख लग गए। साथ में चाय पीने से ले कर बाजार में सेल और साथ में फिल्मे देखने जाना। 

बहु के रूप में एक बेटी क्या मिली, निर्मला के सपनों को पँख लग गए। साथ में चाय पीने से ले कर बाजार में सेल और साथ में फिल्मे देखने जाना। 

पूरे घर में खुशियों का माहौल था। निर्मला जी और पंकज जी के घर नई बहू के स्वागत की तैयारियां चल रही थीं।

सौम्या को एक शादी में देखते हैं निर्मला जी ने पसंद कर लिया था। पहली नज़र में ही दिल में घर कर गई थी सौम्या अपनी होने वाली सासूमाँ के। गुलाबी लहंगे में सौम्या पे जब निर्मला जी की नज़र पड़ी तो बस देखती रह गई और उसी क्षण अपने बेटे अजय के लिए पसंद कर लिया सौम्या को।

‘इतना सुंदर मनमोहक रूप और उनका बेटा अजय भी  लंबा चौड़ा नौजवान, क्या जोड़ी जमेगी!’ मन ही मन दोनों की छवि को अपने दिल में बसा लिया निर्मला जी ने।

निर्मला जी के मन में सौम्या पूरी तरह बस चुकी थी तुरंत ही  सौम्या के घर अपने बेटे अजय का रिश्ता भिजवाया गया। ये जोड़ी तो ऊपर वाले ने ही तय की थी तो किसी को क्या एतराज होता।  दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हुई।

बहु के रूप में एक बेटी क्या मिली, निर्मला जी के अधूरे सपनों को पँख लग गए। साथ में चाय पीने से ले कर बाजार में सेल के मज़े लेना और साथ में फिल्मे देखने जाना।

“जानती हो सौम्या, जब मेरी सहेलियाँ अपनी अपनी बेटियों के साथ शॉपिंग करती और फिल्मे देखने जाती तो मैं हमेशा सोचती काश जो मेरी भी कोई बेटी होती तो मैं भी उसके साथ घूमती।”

अपनी सासूमाँ की बातें सुन सौम्या खिलखिलाती हुई अपने सासूमाँ के गले में बाहें डाल बोली, “मम्मी मैं आ गई ना अब सारे शौक पूरे हो जायेंगे आपके।”

“सौम्या सौम्या” की आवाज से निर्मला जी का घर गूँजता रहता। अजय भी सौम्या को पत्नी के रूप में पा बहुत ख़ुश था। राज़ी खुशी दिन बीत रहे थे।

ससुराल में सौम्या और अजय की शादी के बाद दिवाली का त्यौहार आया। सौम्या बहुत ख़ुश थी।  उसकी पहली दिवाली थी। पंकज जी ने सौम्या को बुला अपना कार्ड पकड़ा कर कहा, “बेटा दिवाली पे जो लेना हो ले लो, अब मुझे तो इतनी समझ है नहीं।”

“लेकिन पापाजी कार्ड की क्या जरुरत है?” सौम्या ने अपने ससुर जी को कहा।

“नहीं बेटा! ये ले जाओ और जो दिल करे, वो लेना”, ज़िद कर पंकज जी ने अपना कार्ड सौम्या को पकड़ा दिया।

माता पिता जैसे सास ससुर पा सौम्या खुद अपने भाग्य पे इतरा उठी। दिवाली के दिन सब ने पूजा की अजय के साथ मिलकर सौम्या ने पूरे घर को दियों से सजा दिया।

दीपक जलाने और पूजा के बाद निर्मला जी ने कहा, “सौम्या जा बेटा तुम और अजय दोनों पटाखे चला लो नहीं तो मेहमान आने लगे तो रसोई से फुर्सत नहीं मिलेगी हमें।”

“जी ठीक है मम्मी”, ये कह सौम्या ने पटाखों का पैकेट उठा अजय के साथ बाहर जाकर पटाखे चलाने लगी।

घर के अंदर निर्मला जी और उनके पति अपने दोस्तों को फोन पर बधाइयां दे रहे थे। इतने में  सौम्या की जोर-जोर से चीखने की आवाजें आने लगीं। दोनों भाग के बाहर आये देखा तो शायद कोई पटाखा सौम्या के चेहरे के पास फट गया था। सौम्या बुरी तरह से चीखे जा रही थी। घबराया अजय तुरंत उसके ऊपर पानी डालने लगा। दर्द से तड़पती सौम्या को तुरंत गाड़ी में डालकर हॉस्पिटल ले जाया गया।

डॉक्टर से चेक किया पता चला कि सौम्या का चेहरा बारूद से जल चुका है। थोड़ा नुकसान आंखों को भी आया था। डॉक्टर ने इलाज शुरू किया। पूरे चेहरे को पट्टी से बांध दिया गया। आंखों तक पर पट्टी बंधी हुई थी। सब का मन बहुत दु:खी हो गया। सौम्या के घर वालों को भी खबर कर दी गयी।  उसके मम्मी पापा भी आ गए। सब बस रोये जा रहे थे।

“ये कैसे हुआ अजय? तुम तो वही थे, फिर कैसे ऐसी लापरवाही हो गई?”

निर्मला जी के इतना पूछते अजय बच्चों सा बिलख उठा, “एक अनार जल ही नहीं रहा था। मैंने बोला सौम्या को कि रहने दो, दूसरा जलाते हैं, पर वो मानी ही नहीं और अचानक वो अनार फट गया और फिर मेरी सौम्या…”, रोते अजय को संभालना सबके लिये मुश्किल हो गया।

पूरे एक महीने के बाद सौम्या की पट्टी खुली लेकिन जख्म पूरी तरह ठीक होते होते दो से तीन महीने लग गए थे। चेहरे के तो घाव तो सूख चुके थे लेकिन उनकी निशानी सफ़ेद सफ़ेद दाग जो थे वह वैसे ही थे।

सौम्या जब जब अपने चेहरे को देखती तो रोने लगती और उसे रोता देख निर्मला जी का भी दिल रोने लगता इतनी सुंदर उनकी बहू जिसके चेहरे को देखकर ही उन्होंने उसे पसंद किया था, आज उस चेहरे पर ही दाग लग गए थे। लेकिन अपने दिल को मजबूत करके उन्होंने सौम्या को संभाला।  बार-बार सौम्या को सब  समझाते। यहां तक के सौम्या के मम्मी पापा भी बार-बार आकर उसे समझाते थे, लेकिन इन सब बातों का कोई असर नहीं होता।

सौम्या अब अजय से भी कटी-कटी रहती और इस बात से परेशान होती रहती कि उसकी जिस सुंदरता से रीझ कर अजय उसका दिवाना था वो अब उससे दूर ना हो जाये। खुद को कोसती रहती क्यों उस दिन वह पटाखों के इतने पास चली गई? उसे पता ही नहीं चला कब वो पटाखा उसके चेहरे को हमेशा के लिये बर्बाद कर दिया।

धीरे-धीरे सौम्या डिप्रेशन में जाने लगी। उसे ऐसा देख पूरे परिवार का दिल रोता। किस तरह अपनी प्यारी सौम्या को संभाले उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था। बीतते समय के साथ थोड़ा बहुत नॉर्मल होने लगी सौम्या। इस बीच खबर आई कि सौम्या की छोटी बहन की शादी तय हो गई थी।

“सौम्या ये क्या रिम्मी  की शादी पास आ गई है और तुमने कुछ भी तैयारी नहीं की?”

“मम्मी, मैं नहीं जा रही शादी में। आप और अजय चले जाना पापा जी के साथ।”

“नहीं जा रही? क्यों बेटा?  तुम्हारी खुद की सगी बहन की शादी है। ऐसे अच्छा नहीं लगेगा।”

“अपने चेहरे पर ये दाग लेकर मैं वहां नहीं जा सकती मम्मी”, सौम्या ने रुखा सा ज़वाब दे दिया।

“तो क्या इन दागों के लिए तुम अपनी बहन की खुशी में शामिल नहीं होगी या सच में ये दाग तुम्हारी बहन की खुशी से बढ़कर हैं तुम्हारे लिये?”

“नहीं मां! आप कुछ भी कह लो लेकिन मैं नहीं जाऊंगी।”

ज़िद पे अड़ी सौम्या को निर्मला जी ने समझा-बुझाकर कर अपने साथ शादी में ले के गईं। वहाँ जाते वही हुआ जिसका डर सौम्या को था। सब धीमे धीमे शब्दों में यही कहते, ‘इतनी सुंदर थी सौम्या,  अब कैसा रूप हो गया? सारी सुंदरता खराब हो गई चेहरे पर इतने दाग हो गए, इतनी नई-नई शादी है।’ इन सब बातों को सुन सुनकर सौम्या वापस उदास हो रोने लग गई।

“मम्मी मैंने कहा था ना आपको मुझे नहीं जाना देखिये सब कैसी कैसी बातें कर रहे हैं”, रोते-रोते सौम्या ने निर्मला जी को कहा।

अपनी बहू को ऐसे रोते देख निर्मला जी बहुत परेशान हो गयीं और सबके सामने अपनी बहू का हाथ पकड़ के ले गईं, “मेरी बहु तो चांद का टुकड़ा है और दाग़ तो चांद पे भी होता है, तो मेरी बहू के चेहरे पे थोड़े दाग़ आ भी गये तो क्या? इसके निश्छल मन पे तो कोई दाग़ नहीं है। और फिर ये दाग़, ये तो समय के साथ चले जायेंगे। तब तक हमें सौम्या का मनोबल बढ़ाना है ना कि गिराना। जब मुझे और मेरे बेटे को इन दागों से कोई परेशानी नहीं तो, आप सब क्यों परेशान हो रहे हैं?

डॉक्टर ने भी कहा है कि धीरे-धीरे दाग चले जाएंगे  लेकिन आपकी बातों से जो घाव सौम्या के  दिल पर लगेगा वह कैसे मिटेगा वह तो समय के साथ भी नहीं मिटेगा। आपके घर की बेटी है सौम्या, जब आप इसका साथ नहीं दोगे तो कौन साथ देगा?”

सौम्या अपनी सास का यह रूप देखकर दंग रह गई, “आपकी बहु बन आपके घर आयी थी मम्मी, लेकिन कब आपकी बेटी बन गई, मुझे भी पता नहीं चला मम्मी।” ये कह सौम्या अपने सास के गले लग गई। निर्मला जी और सौम्या का स्नेह देख सबकी ऑंखें भर आयीं।

चित्र साभार : Vikramrghuvanshi from Getty Images Signature, via Canva Pro 

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