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माँ दुर्गा को शक्ति रूपिणी मानते, नारी को तो अबला बोलते। कन्या पूजन करते लेकिन, बेटी को तो नहीं चाहते। फिर ये कैसी पूजा है?
माँ दुर्गा को शक्ति रूपिणी मानते,
नारी को तो अबला बोलते।
कन्या पूजन करते लेकिन,
बेटी को तो नहीं चाहते।
मां काली की पूजा करते,
औरत को तो गोरी चाहते।
धन की देवी लक्ष्मी मानते,
औरत को दौलत का हक नहीं देते।
महिषासुरमर्दिनी की पूजा करते,
महिला को भोग वस्तु समझते।
मां सरस्वती को ज्ञान की देवी मानते,
लड़की को पढ़ाई से मना करते।
ये कैसी पूजा है? ये कैसी संस्कृति है?
मूल चित्र : Sonika Agarwal via Unsplash
Home maker at present. Worked as English teacher. My short stories and poems are published
कन्या पूजन और नवरात्रि तक ही क्यों सीमित रहती है हमारी श्रद्धा?
इस नवरात्री दुर्गा का सिर्फ स्मरण काफी नहीं, ज़रुरत है उसके सशक्तिकरण की
मैं नारी हूँ कोई अबला नहीं
आज भी नारी की पहचान सिर्फ अपने नाम से क्यों नहीं हो सकती?
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