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स्त्री के अधिकारों से ज्यादा उसके कर्तव्य बड़े हो जाते हैं…

वो भूल गई इस दुनियाँ में स्त्री को ये अधिकार कहाँ, अपने लिए वो जिये सदा दुनिया को ये स्वीकार कहाँ। फिर भी वह आज भी जीती रहती है...

वो भूल गई इस दुनिया में स्त्री को ये अधिकार कहाँ, अपने लिए वो जिये सदा दुनियाँ को ये स्वीकार कहाँ। फिर भी वह आज भी जीती रहती है…

ख्वाबों के इस शहर में देखो
इक ख्वाब उसने बुन लिया,

खुद की शर्तों पर जीने का
अपना रास्ता भी चुन लिया।

वो भूल गई इस दुनिया में
स्त्री को ये अधिकार कहाँ,

अपने लिए वो जिये सदा
दुनियाँ को ये स्वीकार कहाँ।

जब वह आगे बढ़ने लगे कभी
तो सौ हकदार खड़े हो जाते हैं,

स्त्री के अधिकारों से ज्यादा
उसके कर्तव्य बड़े हो जाते हैं।

फिर भी ख्वाबों के शहर में
वह आज भी जीती रहती है,

एक प्रेम भरे जीवन के लिए
वह दर्द जहाँ भर के सहती है।

मूल चित्र : Pexels

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