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मारग्रेट कजिन्स ने भारतीय लड़कियों को शिक्षित करने के लिए और महिलाओं के मताधिकार के अधिकार के लिए सबसे पहले आवाज़ उठायी थी।
कुछ विरले व्यक्त्तिव इस तरह के होते है जो किसी विचारधारा के साथ स्वयं का जीवन सेवा और त्याग के साथ समर्पित कर देते हैं और खो जाते है इतिहास के पन्नों में। अपने अंदर का स्वार्थ वह इस तरह त्याग देते है कि उनके लिए स्वयं का होना कोई विशेष मायने नहीं रखता। उन्हें स्वयं नहीं पता होता उनका सेवाभाव और त्याग ही उनकी जगह इतिहास में विशिष्ट कर रहा है।
मारग्रेट कजिन्स भी उन्हीं महिलाओं में से है, जिन्होंने भारत में अपन सफर शुरू किया ऐनी बेसेंट की सहायिका बनकर। अपने पति जेम्स कजिन्स (जो बाद में जयराम कजिन्स कहलाये) के साथ उन्होंने भारत का हर कोना देखा। चार दशक तक यहां रहने के बाद उन्होंने भारत भूमि को स्वीकार लिया।
मारग्रेट कज़िंस का जन्म 07 अक्टूबर 1818 को आयरलैंड में हुआ। भारत आने से पहले आयरलैंड में महिला मताधिकार के लिए संघर्षरत रही। आयरलैंड में उनके जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। भारत में उनकी गतिविधियों के बारे में कई जानकारी कई लोगों के स्मृतियों और लेखो अधिक देखने को मिलता है। यह बहुत कम लोग जानते है कि जण मण गण राष्ट्रगान की प्यानो पर धुन मारग्रेट कजिन्स ने तैयार की थी जो गुरुदेव को पसंद थी। वही धुन बाद में थोड़े बदलाव के बाद स्वीकार ली गई थी।
मारग्रेट कजिन्स वह महिला हैं जिन्होंने भारतीय महिलाओं के झोली में मताधिकार का अधिकार अपने संघर्षों से डाल दिया। भारतीय महिलाओं को शायद पता भी न हो कि पूरी दुनिया में महिलाओं को मताधिकार के अधिकार के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा था।
इंग्लैंड मे महिलाओं को मताधिकर का अधिकार मिलने के बाद भारत में बस चुके दंपम्ति ने अखबार में जब यह खबर पढ़ी। तब मारग्रेट कजिन्स ने भारत में महिलाओं के मताधिकार के बारे में सोचना प्रारंभ किया। उनके इस ख्याल के बारे में तत्कालीन वायरसराय सहमत नहीं थे, उनका मानना था कि भारतीय महिलाओं में शिक्षा का प्रसार बेहतर स्थिति मे नहीं है न ही उनके अंदर मजबूत राजनीतिक चेतना है इसलिए यह ख्याल ही बेकार है।
वायसराय के इन बातों ने मारग्रेंट कजिन्स का उत्साह ठंडा कर दिया फिर उन्हें ख्याल आया कि भारत में तो महिलाओं के पढ़ने की व्यवस्था ही नहीं है तो क्या महिलाओं को उनके मताधिकार के लिए शिक्षा के आधार पर वंचित रखा जाना चाहिए।
बहरहाल, उन्होंने लड़कियों को शिक्षित करने के लिए और महिलाओं के मताधिकार के अधिकार के लिए एक भारतीय महिला सम्मेलन बुलाया, यहीं से भारत में महिला आंदोलनों का शुरूआत कहा जा सकता है। अग्रगामी महिलाओं को यह अधिकार दिया गया कि वे प्रत्येक गांव में जाए और उन महिलाओं का निशान या अंगूठे का निशान का संग्रह करे जो पढ़ना चाहती थीं। महिलाओं ने कई खतरे उठाकर यह काम किया।
वायसराय के पास इतने हस्ताक्षर पेश हुए कि उसमें एक जहाज भर जाए, उनको गोलमेज सम्मेलन के लिए भेज दिया गया। उसके बाद लड़कियों को शिक्षित करने के लिए 1920 में इजाज़त मिल गई परंतु सुरक्षा के ख्याल से कोई भी लड़की ने नाम नहीं लिखवाया। तब मांग्रेट कजिन्स ने लडकियों के लिए आवासीय स्कूल की वकालत की। उस दौर की शिक्षित महिलाओं की प्रथम पीढ़ी को तैयार करने का काम में मांग्रेट कज़िंस की महत्वपूर्ण भूमिका है।
दूसरे विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में मांग्रेट कजिन्स फिर से महिलाओं के मताधिकार के लिए सक्रिय होकर काम करना शूरू किया। उसी समय में मद्रास, बम्बई, केरल जैसे प्रेसिडेंसी ने महिलाओं को मताधिकार देने की बात मान ली थी। सरोजनी नायडू के नेतृत्व में एक दल उन्होंने इंग्लैड भेजा और भारत के समाचारपत्रों में महिला मताधिकार के लिए लेखों को प्रकाशित करने का काम किया।
आयरलैंड में महिला मताधिकार के लिए उनका संघर्ष भारतीय महिलाओं के मताधिकार के अधिकार की पूर्वपीठिका बना, आजाद भारत में बिना किसी अवरोध के महिला मताधिकार की मांगे स्वीकार्य लिए गए। भारतीय महिलाओं के मताधिकार के लिए उनके प्रयासों के बारे में अधिक चर्चा कभी नहीं होती है क्योंकि लोगों को इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है।
कजिन्स दंपत्ति ने अपने अंतिम दिन थियोसांफिकल परिसर में अकेले बिताये थे। एक गाय से मारगेट कजिन्स को भारी चोट पहुंचाने तथा डां कजिन्स के स्मृत्ति क्षीण हो जाने के बाद वे बिस्तर से लग गए। इसी दौरान मारग्रेट कज़िंस ने अपनी आत्मकथा “वी टू”(हम दोनों) लिखी। जिसमें कजिन्स दंपत्ति के भारतीय जीवन का ब्यौरा विस्तार से मिलता है। आजादी के चार साल बाद मारग्रेट कजिन्स ने दुनिया से विदा ले लिया।
(नोट : इस लेख को लिखने के लिए पहल डॉक्यूमेंट्री का सहारा लिया गया जो दूरदर्शन पर प्रसारित हुई थी)
मूल चित्र : Wikipedia, Stri Dharma
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