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अब बस! पहले अपने बेटों को औरतों की इज्ज़त करना सिखाइये…

अब बस हमे अपनी बेटियों को इतना मजबूत बनाना चाहिए कि ऐसे लोगों का डट के सामना कर सके और निसंकोच अपने परिवार को बता सके...

अब बस! हमे अपनी बेटियों को इतना मजबूत बनाना चाहिए कि ऐसे लोगों का डट के सामना कर सके और निसंकोच अपने परिवार को बता सके…

नोट : विमेंस वेब की घरेलु हिंसा के खिलाफ #अबबस मुहिम की कहानियों की शृंखला में पसंद की गयी एक और कहानी!

“सुप्रिया सुनो! मौसी जी का फ़ोन था। वो और उनका बेटा अमन दोनो यहाँ आ रहे हैं। अमन कुछ दिनों के लिए हमारे साथ ही रहेगा। उसका फ्लैट मिलते ही वो लोग वहाँ शिफ्ट हो जाएंगे।”

अगले दिन मौसी जी और उनका बेटा अमन दोनो आ गए। सबने उनका स्वागत खुशी खुशी किया।

“ख़ुश रहो! बहु! मयंक ने तो अपनी शादी में बुलाया ही नही। कोर्ट मैरिज कर के खर्चे से बच गया।”

“अरे! ऐसी बात नही है मौसी। सब कुछ इतनी जल्दी में हुआ कि मौका ही नही मिला और फिर ऑफिस से छुट्टी भी नही मिली।”

“अमन बेटा! भाई भाभी के पैर तो छुवों।”

“हाँ, माँ।”

अमन ने सुप्रिया के पैर तो छुए लेकिन उसका तरीका और निगाहें दोनो ही खराब थी। सुप्रिया को अमन का व्यवहार बिलकुल भी अच्छा नही लगा।

रात को सुप्रिया ने मयंक से कहा कि अमन का व्यवहार कुछ अच्छा नहीं लगा मुझे।

“अरे! मेरी प्राणप्रिये वो थोड़ा मजाकिया किस्म का है। और उम्र भी कितनी है उसकी। तुम इतना मत सोचो। अपना ख्याल रखो।”

कुछ दिनो बाद सुप्रिया को ऑफिस से आते समय सुनाई दिया कि कोई लड़की आवाज दे रही है, “छोड़ो मुझे। बचाओ प्लीज़। मेरा बैग मुझे दे दो।”

सुप्रिया भागते कदमों से गयी तो उसने जो देखा। उसके होश उड़ गए।

अमन ने उस लड़की का बैग अपने हाथ में लिया हुआ था और बोले जा रहा था, “चाहिए तो पास आ जाओ। ज्यादा नाटक मत करो। यहाँ कोई नही आने वाला तुम्हे बचाने। ऐसे कपड़े पहन के कोई मंदिर जाता है। क्या नही ना? ऑफ शोल्डर का कुछ तो फायदा हमे भी लेने दो।”

सुप्रिया ने अमन को पीछे से खींचते हुए उसे पलट कर एक जोरदार थप्पड़ मारा और उसके हाँथ से बैग ले लिया।

“भाभी! आप यहाँ। वो भाभी ये लड़की मुझे रोज यहाँ बुलाती हैं। और इसका तो बॉयफ्रेंड भी है। उससे ही इसका झगड़ा हुआ ये यहां उसके ही साथ थी तो मैने सोचा कि इसकी मदद कर दूँ।”

तब तक वो लड़की सुप्रिया के गले लग के बोली, “धन्यवाद दी आपका। मुझे बचाने के लिए। ये हर रोज मेरे कोचिंग क्लासेज के समय यहाँ आ के परेशान करता है।”

सुप्रिया ने उस लड़की को बोला, “चलो! मेरे साथ पुलिस स्टेशन अभी इसके खिलाफ शिकायत करने।”

“नही दीदी, मैं नही करूँगी शिकायत वरना मेरे पापा मेरी पढ़ाई ही बंद करा देंगे। चलती हुँ धन्यवाद मुझे बचाने के लिए।”

इतना सुनते ही अमन की हिम्मत बढ़ गयी और उसने सुप्रिया को बोला, “देखा जानेमन।”

“अमन तुम्हारी इतनी हिम्मत की मुझे ऐसे बात करो” सुप्रिया ने कहा।

अरे! आप तो बुरा मान गई। मेरा मतलब मेरी आदरणीय झांसी की रानी भाभी जी। उसको कोई परेशानी नहीं तो आप क्यों पड़ रही हैं झमेले में और हाँ, घर जा के बताया तो आप के लिए ही मुसीबत हो जाएगी। क्योंकि आप के पास कोई सबूत नहीं। और घर वालो को तो पता है कि मैं इस समय रोज मंदिर जाता हूँ।”

सुप्रिया भी सोच में पड़ गयी कि अब क्या करे?

अमन का हर रोज का काम हो गया था। कभी पैर छूने तो कभी हँसी मज़ाक के नाम पर उसके साथ अभद्र व्यवहार करने लगा।

एक दिन रात में सुप्रिया किचन में पानी लेने गयी।

तभी पीछे से आ के अमन ने सुप्रिया के कमर पर हाथ रखते हुए बोला, “आइए मैं पिलाता हूँ पानी।”

आज सुप्रिया के बर्दाश्त की सीमा पार हो चुकी थीं। “उसने पलटकर फिर जोरदार थप्पड़ मारा और बोली। इस पानी की आवाज कैसी लगी देवरजी?”

इतने में सभी वहाँ इकट्ठे हो गए तो अमन अपनी माँ से बोला, “माँ देखो ना भाभी को मुझसे क्या परेशानी है। मैं पानी पीने आया तो इन्होंने मुझे थप्पड़ मार दिया।”

“अच्छा! मयंक इसने मुझे गलत तरीके से छुआ इसलिए मैंने अमन को थप्पड़ मारा। झुठ मत बोलो अमन।”

गुस्से में मयंक बोला, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई अमन? मेरे ही घर मे रह के मेरी पत्नी के साथ बत्तमीजी करने की।”

तब तक बीच में मौसी जी गुस्से में सुप्रिया पर बरस पड़ी, “मिल गयी तेरे कलेजे को ठंडक दोनो भाइयों में झगड़ा लगा के। मैं तो पहले ही दिन समझ गयी थी कि तुझे हमारा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा। सब को अपने जैसा समझ रखा है क्या? हम संस्कारी परिवार से है। हमने अपने बच्चो को संस्कार दिए हैं। तेरे माँ बाप जैसे नही। बेटी लिव इन रिलेशनशिप में रहे और पता नही कितने लड़को के साथ क्या क्या किया होगा तूने। वो तो हमारा मयंक था जिसने तुझे अपना लिया वरना जिसके साथ साल भर रही उसी ने छोड़ दिया।”

“अब बस मौसी जी। बहुत बोली लिए आप रूकिये” और सुप्रिया ने चुपके से लगाये गए घर के कैमरे की रिकॉर्डिंग टी वी पर चला दी। जिसमे अमन की सारी हरकते साफ दिख रही थी।

“अब कहिये। किसके अंदर कितने संस्कार है। अमन की हरकतों को देख के ही मैंने घर मे कैमरे लगा दिए थे।”

मौसी जी आप एक माँ होने से पहले एक औरत हैं और मैं आप की बहू। आप से सच कह रही हूँ तो आप नही मान रही है। जरा सोचिए जिन लड़कियों के पास सबूत ना हो वो कैसे साबित करेंगी कि वो सच बोल रही है। क्योंकि हर बार सबूत मौजूद हो ये तो ज़रूरी नही।”

“मौसीजी! अगर कोई आप के बेटे की गलती बताता है तो उसको सुधारिये बजाय की आप उसकी गलत हरकतों का बचाव शुरू कर दे। अपने बेटे को औरतों की इज्ज़त करना सिखाइये। मैं आज ही अभी इसकी शिकायत पुलिस में…”

“नही! नही! बेटा तुम्हारे हाथ जोडती हुँ, बहुत बदनामी होगी। मैं समझा दूँगी। लेकिन अगर ऐसा दुबारा किया तो मैं खुद हो पुलिस को बता दूँगी।”

“ठीक है। मौसीजी आप के कहने पे मैं छोड़ दे रही हूँ। लेकिन कल सुबह ही आप लोग यहाँ से शिफ्ट हो जाएंगे।”

दोस्तो हर महिला या लड़कियों को क़भी ना कभी जिंदगी में इस तरह के अपराध का सामना करना ही पड़ता है। लेकिन बहुत ही कम समस्या की रिपोर्ट पुलिस में हो पाती हैं। इस तरह के अपराधियों को सबक सिखाने के लिए सबसे पहले इनका बहिष्कार परिवार वालो द्वारा किया जाना चाहिए फिर समाज द्वारा। और हमे अपनी बेटियों को इतना मजबूत बनाना चाहिए कि ऐसे लोगों का डट के सामना कर सके और निसंकोच अपने परिवार को बता सके और बेटो को नारी का सम्मान करना सीखना चाहिए ये मेरे निजी विचार है।

मूल चित्र : Ashwini Chaudhary via Unsplash 

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