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तेरी पत्नी मेरी भी तो कुछ लगती है…

बस कर लल्ला! ज्यादा मत बोल। सबका दिल एक जैसा नहीं होता। इसको प्यार की जरूरत है इस तरह करोगे तो वो और बीमार हो जाएगी।

बस कर लल्ला! ज्यादा मत बोल। सबका दिल एक जैसा नहीं होता। इसको प्यार की जरूरत है इस तरह करोगे तो वो और बीमार हो जाएगी।

“सोनिया! सोनिया! सोनिया” आवाज पर सोनिया ने मुश्किल से आंख खोल कर देखा तो उसके पति नीरज उसे उठाने के लिए आवाज दे रहे थे। वो उठकर बैठ गयी। उसका हाथ अपने आप उसके चेहरे पर गया तो उसे महसूस हुआ कि वो ख्वाब में रो रही थी।

“तुम हिचकियाँ लेकर रो रही थी कैसा ख्वाब देख रही थी?” नीरज ने पूछा

“मम्मी को…” , उसने खलाओं में देखते हुए कहा। 

“आपको पता है वो मार्केट गयीं थीं मेरे साथ। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा था मगर फिर उन्होंने हाथ छोड़ दिया। मैं उन्हें बुला रही थी, आवाज दे रही थी, पीछे पीछे दौड़ रही थी मगर वो पता नहीं कहाँ गायब हो गयीं। मैं रो रही थी मगर वो फिर भी वापस नहीं आईं।”

सोनिया बताते बताते फिर रोने लगी तो नीरज वहीं उसके पास बैठ गया और उसका हाथ पकड़ कर बोला, “सोनिया! प्लीज संभालो खुद को। तुम हर पल हर वक़्त मम्मी के बारे में सोचती रहती हो इसलिए रोज़ ख्वाब में भी देखती हो। उनके लिए दुआ करो। खुद को देखो कैसी हो गयी हो। मैं तुम्हारा दुख समझ सकता हूँ मगर होनी को कौन टाल सकता है।”

“नहीं! आप नहीं समझ सकते। वो मेरी दुनिया थीं उनके बिना जीने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी। वो कैसे मुझे छोड़ कर जा सकती हैं। उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा मैं कैसे जिऊंगी उनके बिना। मुझे उनसे दूर ना जाना पड़े इसलिए तो मैं ऐसे इंसान से शादी करना चाहती थी जो इसी शहर में रहता हो। उन्हें हफ्तों में ना सही, महीने में एक बार चाहे कुछ घंटे के लिए ही सही, देख तो लूं। उनके पास बैठकर उनकी गोद में सर रखकर सुकून तो ले लूं।”

“और अब वो इतनी दूर चलीं गयीं महीने क्या कभी नहीं देख सकती। मैं क्या करुं मेरे दिल में दिमाग़ में हर पल उनका ख्याल रहता है। कोई काम करने लगती हूँ तो भी उनकी हंसी, उनकी बातें, उनकी डांट, हर चीज़ गूंजती रहती है मैं क्या करुं नीरज? मैं पागल हो जाऊंगी प्लीज़ आप कुछ करिए। मेरा दिल करता है वो वापस आ जाएं। उन्हें वापस ले आइए प्लीज़।” वो रोने लगी फिर कुछ सोचकर आँसुओं के बीच बोली!

“नीरज! डोरेमोन तो सब वापस सही कर देता है ना? काश वो मुझे मिल जाए तो मैं उससे बोल दूँ अपने टाइम मशीन से वक़्त को पीछे ले जाए और मैं अपनी मम्मी को एक्सीडेंट वाली जगह जाने ही ना दूँ। फिर सब नार्मल हो जाएगा। वो मेरे पास ही रहेंगी।”

नीरज खामोश हो गया। वो समझा समझा कर थक गया था मगर सोनिया अपने माँ के अचानक मौत को मान ही नहीं पा रही थी। वो प्यार भी तो बहुत करती थी उनसे। करीब करीब हर दिन बात करती। जहाँ कुछ दिन हो जाता नीरज से कहती, “आफिस जाते हुए मुझे छोड़ दीजिये और वापसी मे ले लीजिएगा।” फिर रात में दोनों खा पीकर आराम से आते मायके में भाई था जिसकी अभी शादी नहीं हुई थी वो जाब के सिलसिले में दूसरे शहर में रहता था।

पापा तो पहले ही नहीं थे माँ ने ही दोनों भाई बहन को पाला था। वो कुछ ज्यादा ही उनके करीब थी। नीरज से लड़ाई भी होती तो फौरन फोन करके बता देती और वो बहुत प्यार से उसे समझातीं और चुटकी में उसका मसला खत्म हो जाता।

नीरज बेचारा सोनिया का बहुत ख्याल रखता। गाँव से अपनी माँ को भी बुला लिया। वो उसके पास बैठती उससे बातें करतीं। उसे समझातीं। वो बस खामोशी से उनका चेहरा ही देखती रहती फिर पता नहीं क्या होता उसके आंखों से आंसू बहने लगते तो माँ उसे चुप कराने लग जातीं। वो ज्यादा दिन रुक नहीं पाईं गाँव में पापा अकेले थे।

सोनिया ने रुकने के लिए कहा तो वो फिर आने के लिए बोल कर चलीं गयीं। वो तो रुक भी जातीं मगर पापा का यहाँ बिल्कुल दिल नहीं लगता था और ज्यादा दिन माँ उन्हें अकेले गाँव में छोड़ नहीं सकती थीं।

जब से मम्मी गयीं थीं वो हर पल उनको याद करके रोती रहती। कभी कभी तो बैठे बैठे तेज तेज रोने लगती उसे घर में उलझन होने लगती तो ऐसे ही घर से बाहर निकल जाती। वहाँ भी सुकून नहीं मिलता था फिर वापस आ जाती।

उसे किसी भी आवाज से डर लगने लगता। फोन की घंटी बजती तो उसका दिल इतना तेज तेज धडकने लगता की उसकी तबियत खराब होने लगती। रोशनी भी अच्छी नहीं लगती थी। यहाँ तक की किसी से बात करने में भी दिक्कत होने लगी थी। बात करते करते रोने लग जाती।

भाई आता रहता था। प्यार से डांट से समझाता मगर पता नहीं क्यों वो समझ ही नहीं पा रही थी।

नीरज अब उस पर गुस्सा होने लगा था। उसे डांट भी देता। नाराज़ हो कर घर से बाहर निकल जाता। वो भी नीरज से नाराज हो जाती। डरने भी लगी थी।

एक दिन माँ और पापा गाँव से आ गए। उसकी हालत देखकर तो माँ एकदम परेशान हो गई। नीरज को भी डांटा तो उल्टा नीरज उसकी शिकायत करने लगा, “वो ठीक ही नहीं होना चाहती। मुझे परेशान करना चाहती है। हर इंसान को एक दिन जाना होगा मगर अब ये तो नहीं होना चाहिए कि जाने वाले के साथ।”

“बस कर लल्ला! ज्यादा मत बोल। सबका दिल एक जैसा नहीं होता। इसको प्यार की जरूरत है इस तरह करोगे तो वो और बीमार हो जाएगी। मैं तेरे बाबा के साथ अपने बहू के लिए आई हूँ। उसे हमारी जरूरत है। उसने अपनी माँ खोई है…तू ये दर्द नहीं समझ सकता क्यों कि तुम्हारी माँ जिंदा है। सबसे पहले तो तुम इसे डाक्टर के पास ले जाओ। डाक्टर दवा देगा और हम प्यार से उसे ठीक करेंगे।”

माँ देर तक बेटे को समझाती रही। उसे भी समझ में आ गया। दूसरे ही दिन वो सोनिया को डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने बताया कि वो धीरे धीरे डिप्रेशन में जा रही थी। वो माँ के जाने का दर्द सह नहीं पा रही थी। उसे दवा के साथ प्यार की भी जरूरत है। वो अब वाकई समझ गया था।

वो डॉक्टर के कहने के हिसाब से सब करता। डॉक्टर देर तक सोनिया से बात करते। वो भी उनकी बात मानती। धीरे धीरे वो समझने लगी थी। पहले से ठीक होने लगी थी।

नीरज जब आफिस से घर आया तो सोनिया को किसी बात पर हंसते हुए देखा। कितना वक़्त हो गया था सोनिया को इस तरह हंसते हुए देखे। उसे इस तरह हंसते हुए देखकर उसे बहुत सूकून महसूस हो रहा था। उसने माँ को शुक्रिया बोला तो उन्होंने प्यार से चपत लगा दिया औऱ कहने लगीं, “पागल वो तेरी पत्नी है तो मेरी भी कुछ लगती है। अब मैं इतनी भी बुरी नहीं हूँ।”

“नहीं माँ! आप बिल्कुल भी बुरी नहीं है। आप तो बस माँ हैं और मैं अब आप दोनों को कहीं नहीं जाने दूंगा। बाबा को भी यहाँ अच्छा लगने लगा है और माँ सोनिया के साथ मुझे भी आपकी जरूरत है।”

उसकी बात पर माँ मुस्कुरा दीं। दरवाजे पर खड़ी सोनिया भी खुश हो गई। यही तो वो कहने आ रही थी।

मूल चित्र : avid_creative from Getty Images Signature, Canva Pro

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