कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

अब बस! अब और नहीं सहेगी वो…

आज सौम्या निकल पड़ी घर से एक अनजानी अनचाही राह पर आंखों में आंसू थे लेकिन चेहरे पर एक सुकून था क्योंकि अब बस बहुत हो चुका था।

आज सौम्या निकल पड़ी घर से एक अनजानी अनचाही राह पर आंखों में आंसू थे लेकिन चेहरे पर एक सुकून था क्योंकि अब बस बहुत हो चुका था।

नोट : विमेंस वेब की घरेलु हिंसा के खिलाफ #अबबस मुहिम की कहानियों की शृंखला में पसंद की गयी एक और कहानी!

अपने पति रोहित के द्वारा प्रताड़ित सौम्या आखिर कब तक सहेगी। “यही संस्कार लेकर आई हो क्या अपने बाप के यहां से। तुम्हारे मां बाप ने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया, साड़ी पहनने की तमीज भी नहीं है तुम्हारे पास, अरे! दुनिया में देखता हूं औरतें कितने तरीके से रहती हैं, और एक तुम हो कि, तुम्हें देखकर मेरा कलेजा जल जाता है। शक्ल से नफरत है तुम्हारी, जाओ चली जाओ मेरी आंखों के सामने से। अब कभी मत आना। अपना यह मनहूस चेहरा कभी मत दिखाना मुझे। तंग आ गया हूं रोज-रोज की किच-किच से। अब से तुम्हारा रास्ता अलग और मेरा रास्ता अलग चलो जाओ अपने मायके और जिसके सहारे जीना हो जियो।”

सौम्या ने सिसकियां भरते हुए अपने पति से कहा, “कैसी बातें करते हो आप। चलिए गलती हो गई , कोई बात नहीं आगे से ध्यान रखूंगी। कभी आपके सामने तेज आवाज में नहीं बोलूंगी और हां साड़ी भी हमेशा सलीके से ही पहनूंगी। वह क्या है ना काम करते-करते थोड़ा डिस्टर्ब हो जाती है।”

“हां हां क्यों नहीं। एक दुनिया में तुम ही अकेली औरत तो हो जो काम करती हो। तुम्हारे बाप के घर में तो नौकर लगे रहे होंगे जो यहां बैठे बैठे खाना चाहती हो। जाओ चली जाओ वहीं। जाओ वहीं ऐश करो जाके मैं इतना करोड़पति नहीं हूं कि तुम्हें बैठे-बैठे खिलाऊंगा।”

“नहीं जी मैंने यह नहीं कहा कि मैं काम नहीं करना चाहती हूं। मैं सब काम करना चाहती हूं लेकिन वह क्या है ना साड़ी में काम करने में थोड़ी बहुत असुविधा तो होती है। फिर भी मैं काम तो साड़ी पहनकर ही करूंगी। हां थोड़ा डिस्टर्ब हो जाती है तो काम करने के बाद सही कर लूंगी। आप उस बीच में अगर आप देख लेगे तो जरूर यह कहेंगे कि तुम्हें साड़ी पहनना नहीं आता है।”

“हां हां, मेरे तो सींग लगे हैं जो हर समय तुम्हें मारता रहता हूं तो क्यों रहती हो भाई मेरे साथ, चली जाओ! अपने मायके चली जाओ! और कहीं चली जाओ! जहां जाना हो वहां चली जाओ मगर मेरा पिंड छोड़ दो।”

बेचारी सौम्या इस तरह की बातें सुन सुन कर रोज परेशान हो गई थी। उसे लगने लगा वह पागल हो जाएगी। “जब अच्छी भली हूं। सब काम करती हूं तब यह हाल है। अगर किसी दिन मुझे कुछ हो गया तब क्या होगा। मुझे अपने लिए कुछ ना कुछ सोचना होगा।”

आखिर एक दिन उसने तय कर लिया वह चली जाएगी रोहित की जिंदगी से कहीं बहुत दूर।

अपने इरादों को मजबूत करती हुई सौम्या निकल पड़ी घर से एक अनजानी अनचाही राह पर आंखों में आंसू थे लेकिन चेहरे पर एक सुकून था। “कहीं भी जाकर कमा कर खा लूंगी लेकिन कम से कम चैन की जिंदगी तो जिऊंगी।” अपने मन को यही समझाती हुई अबाध गति से बढ़ती चली जा रही सौम्या अपने वर्तमान को लेकर स्वयं को समझा रही थी।

“अब बस अब और नहीं सहूंगी मेरे माता पिता ने मुझे पढ़ा लिखा कर इस काबिल तो बनाया ही है कि अपने लिए दो रोटी और दो धोती का इंतजाम कर सकती हूँ फिर क्यों घुट-घुट कर जीयूं अपनी जिंदगी। हां मुझे भी अधिकार है स्वाभिमान के साथ जीने का”, सौम्या के इसी इरादे ने उसके आत्मबल और स्वाभिमान की रक्षा की आज सौम्या अपनी खुद की जिंदगी अपने बलबूते पर जी रही है।

और उसके पति रोहित बार-बार कोशिश कर रहे हैं कि वह उनके साथ उनके घर पर रहे अपने तरीके से पर क्या सौम्या सब कुछ भूल कर जा पाएगी वापस उसी जिंदगी मे। शायद नहीं क्योंकि उसे यह यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि कही रोहित कुछ दिनों बाद फिर अपने पुराने रवैया पर वापस आ गया तब तो वह कहीं की भी नहीं रहेगी इसलिए अब बस अब और नहीं सहेगी वह।

मूल चित्र : Ketut Subiyanto via Pexels

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

1 Posts | 1,760 Views
All Categories