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जानिये क्यों है आज का गूगल डूडल ज़ोहरा सहगल के नाम!

यह डूडल पार्वती पिल्लै ने डिज़ाइन किया है। इस गूगल डूडल में ज़ोहरा सहगल एक क्लासिकल डांस फॉर्म की पोज़ में बेहद ख़ुश नज़र आ रही हैं।

यह डूडल पार्वती पिल्लै ने डिज़ाइन किया है। इस गूगल डूडल में ज़ोहरा सहगल एक क्लासिकल डांस फॉर्म की पोज़ में बेहद ख़ुश नज़र आ रही हैं।

29 सितंबर 2020 को गूगल ने अपना डूडल प्रसिद्ध अदाकारा ज़ोहरा सहगल को समर्पित किया है। आज ही के दिन साल 1946 में ज़ोहरा सहगल जी को इंटरनेशनल लेवल पर पहचान मिली थी जब उनकी फिल्म ‘नीचा नगर’ कान्स फिल्म फेस्टिवल में रिलीज़ हुई थी और इस फिल्म को सबसे बड़ा अवॉर्ड Palme d’Or मिला था। जोहरा भारत की पहली ऐसी महिला कलाकार थीं जिन्हे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान मिली।

ज़ोहरा सेहगल का यह शानदार डूडल आर्टिस्ट पार्वती पिल्लै ने डिज़ाइन किया है। इस डूडल में ज़ोहरा एक क्लासिकल डांस फॉर्म की पोज़ में बेहद ख़ुश नज़र आ रही हैं और उनके चारों ओर रंग-बिरंगे फूल बनाए गए हैं। भारतीय अभिनेत्री और नृत्यांगना ज़ोहरा  उनकी क्लासिकल डांस वाली पोज की तस्वीर बना उन्हें याद किया और इसके चारों तरफ रंग- बिरंगे फूल बनाये गए हैं। इस डूडल पर गूगल ने लिखा है, सेलेब्रटिंग ज़ोहरा सहगल , तो हम भी आज ज़ोहरा जैसी महान अभिनेत्री, ज़िंदादिल इंसान और अद्भुत महिला को याद करते हैं।

चलो, तुमको लेकर चलें…ज़ोहरा के कुछ यादगार लम्हों की ओर

ज़ोहरा सहगल का पूरा नाम साहिबज़ादी ज़ोहरा मुमताज़ुल्ला खान बेगम था। वो 27 अप्रैल, 1912 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में मुमताज़ुल्लाह खान और नटिका बेग़म के घर पैदा हुईं। 7 भाई-बहनों में ज़ोहरा तीसरे नंबर पर थीं। ज़ोहरा को खेलना-कूदना बहुत पसंद था। वो सिर्फ एक साल की थीं जब उन्हें ग्लूकोमा हो गया था जिसकी वजह से उनकी एक आंख की रोशनी चली गई थीं लेकिन इलाज के बाद वो ठीक हो गईं। ज़ोहरा और उनकी बहनें लाहौर में पढ़ती थी जहां लड़कियों के लिए बहुत कड़ी पर्दा प्रथा का पालन करना पड़ता था। ज़ोहरा इसके सख्त ख़िलाफ़ थीं क्योंकि वो बराबरी में यकीन रखती थीं। ईडिनबर्ग में ज़ोहरा के मामा जी रहते थे जिनकी मदद से ज़ोहरा को ब्रिटिश एक्टर के साथ एक ट्रेनी की तरह काम करने लगी। 20 साल की उम्र में उन्होंने जर्मनी के ड्रेसडेन में एक स्कूल में बैले डांस की शिक्षा ली।

गूगल डूडल ज़ोहरा सहगल पर क्यों – ज़ोहरा के जीवन का टर्निंग प्वाइंट

1940- प्रसिद्ध भारतीय नर्तक और कोरियोग्राफर उदय शंकर से ज़ोहरा बेहद प्रभावित हुईं और उनकी टीम के साथ ज़ोहरा ने इंटरनेशनल दौरा किया। वर्ष 1940 में ज़ोहरा ने अल्मोड़ा में उदय शंकर के इंस्टीट्यूट में शिक्षक के रूप में काम करना शुरू कर दिया। यहीं पर वो युवा वैज्ञानिक और पेंटर कामेश्वर सहगल से मिलीं जिनसे बाद में उनकी शादी हुई।

1945- कई वर्षों तक ज़ोहरा सहगल इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन में शामिल हो गईं और अभिनय में जुट गईं। Indian People’s Theatre Association से जुड़े रहकर ज़ोहरा ने कई थिएटर प्ले किए।

1946- इस साल उनकी पहली फिल्म धरती के लाल रिलीज़ हुई। इसके बाद उन्होंने नीचा नगर में फिल्म में कमाल का काम किया जिसके बाद उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली।

1959- अपने पति के निधन के बाद ज़ोहरा दिल्ली आ गई और नाट्य अकादमी की डायरेक्टर के पद पर काम किया।

1962- कुछ साल बीतने के बाद ज़ोहरा को ड्रामा स्कॉलरशिप मिली जिसके लिए उनका लंडन जाना ज़रूरी था। वहां उन्होंने ‘डॉक्टर व्हू‘ जैसे क्लासिल ब्रिटिश टीवी शो और 1984 मिनीसीरीज ‘दी ज्वैल इन द क्राउन’ में काम किया।

1990- ज़ोहरा जब 80 की उम्र के करीब थीं तो वो भारत वापस आ गईं और यहां पर अभिनय के क्षेत्र में फिर से सक्रिय हो गईं। कई लोगों ने सोचा कि शायद इस उम्र में ज़ोहरा अभिनय की दुनिया से अलविदा ले लेंगी लेकिन उन्होंने इसे बरकरार रखते हुए हिंदी सिनेमा की कई बड़े बैनर की फिल्मों में काम किया। दिल से, हम दिल दे चुके सनम, कभी खुशी-कभी गम, वीर ज़ारा, मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेस, चीनी कम, सांवरिया इनमें से कुछ अहम फिल्में हैं। 1994 में ज़ोहरा को कैंसर डिटेक्ट हुआ था लेकिन उन्होंने इसे मात दे दी।

जोहरा अभिनेत्री और नृत्यांगना होने के साथ कोरियोग्राफर भी थीं। अपनी बेजोड़ प्रतिभा के लिए उन्हें वर्ष 1998 में पद्म श्री, 2001 में कालिदास सम्मान और 2010 में पद्म विभूषण सहित देश के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजा गया। साल 2008 में UNPF की तरफ़ से ज़ोहरा सहगल ‘लाडली ऑफ द सेंचुरी’ का सम्मान दिया गया। ज़ोहरा सहगल जिस भी किरदार को करती थीं उसे ज़िंदादिली से करती थीं। अपने जीवन का शतक पूरा करने पर 10 जुलाई 2014 को 102 साल की उम्र में ज़ोहरा ने ज़िंदगी को अलविदा कहा। उन्होंने अपना जीवन खुल के जिया और अपनी शर्तों पर जिया।

मूल चित्र : Google 

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