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तुम्हारी कोई गलती नहीं है माँ, तुम्हारे कंधों पर पड़ी जिम्मेदारियों ने तुम्हें बाँट दिया, पर मुझे सुकून है कि थोड़ा ही सही पर मेरे हिस्से का प्यार दिया है।
बेशक तुम मेरी माँ होंगी, मानती हूं, पर शायद तुमने कभी सुना नहीं होगा मेरे दिल में उमड़ते उन ख्यालों को!
कभी मेरी आवाज़ से नापा नहीं होगा, मेरे दर्द की गहराईयों को!
बेशक तुम मेरी दोस्त बनी, मैं मानती हूं, पर तुमने कभी समझा नहीं होगा मेरे दिल में उठते उन सवालों को!
मैं हर रोज़ घुटती-सहमती, पर तुम शायद ही जान पाई हो मेरे रोज़मर्रा की कठिनाइयों को!
जानती हो! कई बार रातों में डरावने सपनों को देखकर, मैंने टटोला है तुम्हें अपने बिस्तर पर, पर क्या तुम कभी जान पाई हो मेरे उस अनजान डर को!
मेरे तुमसे दूर चले जाने पर, बेशक तुम कई राते सोई नहीं होगी, मैं मानती हूं, पर तुम कभी जान पाई हो, तुम्हारे साथ गुजारी उन रातों को जिसमें मैंने तुम्हें हो कर भी नहीं पाया था!
तुम अक्सर शिकवा करती हो कि मुझमें भावनाओं का स्तर कम है ,पर तुम क्या कभी जान पाई हो मेरी भावनाओं को?
क्या कभी देखा है तुमने मेरे माथे पर परेशानियों से पड़े उन लकीरों को, जो वक्त से पहले महसूस किए है मैंने?
क्या तुम कर पाई हो मां जैसा प्यार, क्या तुमने भी सज़ाएँ हैं मेरे विवाह के सपने जो अक्सर मायेँ किया करती हैं?
क्या तुमने भी कभी कल्पना की होगी मेरे अच्छे भविष्य की?
शायद तुम्हारी कोई गलती नहीं है माँ, तुम्हारे कंधों पर पड़ी जिम्मेदारियों ने तुम्हें बाँट दिया अलग अलग स्तर पर और शायद मेरा स्तर हो कहीं छोटा सा पर मुझे सुकून है माँ कि थोड़ा ही सही पर मेरे हिस्से का प्यार दिया तो है तूने माँ।
मूल चित्र : Canva Pro
ये दिन तुम्हारा है, चलो इसी बात पर एक सच बतलाती हूँ तुमको आज माँ!
क्या तुम कर पाओगे उस पावन अग्नि में स्वाहा अपने मर्द होने के अहंकार को?
जैसे ही सब ठीक होगा तुम्हारी लाडो घर आ जाएगी माँ…
तुम कहाँ हो माँ…अब तो एक बार आ जाओ ना माँ…
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