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एक स्त्री की उदारता का मोल पुरुष कभी चुका नहीं पायेगा क्यूँकि वो इसे समझ नहीं सकता, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो स्त्री का अस्तित्व भूल जाए!
तुम क्या मेरी उदारता का मोल लगाओगे तुम लगा ही नहीं सकते, ये एक ऋण है तुम्हारे ऊपर जिसको तुम कभी चुका नहीं सकते।
जब भी तुमने अपनी नाकामयाबी को क्रोध के माध्यम से मुझपर निकाला है मैंने उसे अपनी संवेदना और प्यार से टाला है, तुम्हारी चिड़चिड़ाहट को, तुम्हारे अहम को मैंने अपने साड़ी के पल्लू से पोंछा है।
क्या कभी तुम मेरे उस प्रेम को समझ पाओगे? शायद तुम समझ ही नहीं सकते तुम तो कभी महसूस ही नहीं कर सकते मेरे ऊपर बीतने वाले उस समय की गाथा को, जब मैंने कई बार तुम्हारे लिए अपनी भावनाओं को मारा है जब मैंने ख़ुद के टूटे हुए दिल को फ़िर से झूठ मूठ के लिए संवारा है।
ये एक ऋण है तुम्हारे ऊपर तुम कभी इसे भूलना नहीं और मैं तुम्हे भूलने भी नहीं दूंगी, क्यूंकि मैं नहीं चाहती कि तुम मेरा अस्तित्व भूल जाओ।
तुम क्या मेरी वेदना को जान पाओगे तुम जान ही नहीं सकते, क्यूंकि मेरा अभिनय बहुत अनूठा है! मैं अपने दर्द को मुस्कान में छिपा लेती हूं मैं अपने दुख को आंचल में समेट लेती हूं।
यह एक रहस्य होता है औरों के लिए पर तुम्हारे लिए मैं एक खुली किताब हूं मैं चाहती हूं कि तुम मुझे पढ़ो पर शायद तुम मुझे नहीं पढ़ सकते।
तुम क्या मेरी उदारता का मोल लगाओगे तुम लगा ही नहीं सकते।
मूल चित्र : FatCamera from Getty Images Signature via Canva Pro
हर घर में एक स्त्री होती है…
क्या तुम कर पाओगे उस पावन अग्नि में स्वाहा अपने मर्द होने के अहंकार को?
एक स्त्री जब खामोश होती है तो…
हे! मेरी वूमनिया…
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