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शादी हो गयी है बेटी की, अब तुम उसे रोज़-रोज़ फोन मत करना…

वह सोचने लगी कि क्या वाकई में एक माँ के अपनी बेटी से रोज बात करने से या उसके ससुराल की बातें बताने से उसे परेशानी होती है नई दुनिया में ढलने में?

वह सोचने लगी कि क्या वाकई में एक माँ के अपनी बेटी से रोज बात करने से या उसके ससुराल की बातें बताने से उसे परेशानी होती है नई दुनिया में ढलने में?

“सुन रही है ना? जानकी बेटी ससुराल चली गई है। अब अगर तू चाहती है कि वह अपने नए घर में रम जाये और उन लोगों को जल्द ही अपना ले, तो कम फोन करना उसे। रोज़-रोज़ फोन करके उसकी नई ज़िन्दगी में दखलंदाजी करेगी तो रास नहीं आयेगा ये उसके ससुराल वालों को। बेटी काे उसके ससुराल में खुशहाल देखना है तो कम से कम बात करनी चाहिए। बस हाल-चाल ले लो, बहुत है।”

जानकी जी की सास ने कहा। वह अपने छोटे बेटे बहु के साथ दूसरे शहर में रहती हैं। जानकी की बेटी देविका की शादी के कारण कुछ दिनों से यहीं थी। आज वह वापस जा रही थीं, तो जाते-जाते अपनी नसीहत जानकी को दे गईं।

उनके जाने के बाद सासु माँ की कही एक-एक बात उनके कानों में गूंज रही थी। अभी कुछ दिनों पहले ही तो विदा किया है उन्होंने अपनी बिटिया को,  अपने जिगर के टुकड़े देविका को। जानकी जी का दिमाग फटा जा रहा था सासु जी की कही बातें सोच सोचकर।

उन्हें अपनी नन्ही देविका याद आ रही थी जिसे माँ के बिना नींद नहीं आती थी जो उनके बिना एक दिन भी कहीं रह नहीं पाती थी। हर छोटी से छोटी बड़ी से बड़ी बात शेयर करती थी देविका उनसे। कभी दो दिन के लिए भी अकेला छोड़कर नहीं गई उसे। कभी एमरजेंसी में कहीं जाना भी पड़ा तो दस बार बात कर लेती थीं वो। आज जब वह इतनी दूर है मुझसे तो कैसे छोड़ दूँ उस नई दुनिया में नए लोगों के बीच ऐसे अकेले? मुझसे बात किये बिना तो ना उसकी सुबह होती है और ना ही रात।

वह सोचने लगी कि क्या वाकई में एक माँ के अपनी बेटी से रोज बात करने से या उसके ससुराल की बातें बताने से उसे परेशानी होती है नई दुनिया में ढलने में? क्या वाकई मेरी देविका रह पायेगी मुझसे बात किये बिना? अगर मैंने कम किया तो कहीं वो अकेलापन महसूस न करे।

जानकी जी ये सब सोच रही थी कि देविका का फोन आया। फोन उठाकर उससे बात की। देविका बोले जा रही थी, ‘मम्मा आज ये हुआ आज वो हुआ, हम यहाँ गये, ये किया, वो किया फलाना ढिकाना।’

एक खुशी थी उसकी आवाज में। ऐसा लगता था जैसे पूरे दिन की बातें अपनी मम्मा से करके हल्का महसूस करती थी अपने आपको। जानकी जी सोचने लगी चलो अभी सब ठीक है लेकिन अगर कभी कोई परेशानी हुई उसके जीवन में और मैंने बात करना कम कर दिया तो किससे बांटेगी वो अपनी परेशानी? किससे करेगी वो इतनी बातें?

पूरा दिन उन लोगों के साथ रहती है, सुबह और रात को दो बार फोन करती है अब इतना अधिकार तो है मेरा कि मेरी ही बेटी मुझसे जब चाहे बात कर सके? देविका की प्यारी बातों को और उसकी चहकती आवाज सुनकर जानकी जी ने तय किया कि वह सासु माँ की बातों पर ध्यान नहीं देंगी और देविका को ऐसे अकेले नहीं छोडे़गी। उनका पूरा हक बनता है अपनी बेटी का दुख सुख बांटने का और उसके जीवन में क्या चल रहा है ये जानने का।

कुछ दिनों बाद देवरानी के बेटे का जन्मदिन था तो जानकी जी उनके घर गईं।  एक दिन वहीं रूकीं। सासु माँ ने देखा कि कल रात को भी देविका से बात हुई और अब सुबह फिर फोन आ गया। फोन कटते ही उन्होंने जानकी जी पर बरसना शुरू कर दिया, “मैंने समझाया था ना बहु तुझको अब पराये घर की हो गई है बिटिया? कम बात किया कर उससे? लेकिन तुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता।अपने हाथों से बर्बाद कर लेगी अपनी बेटी का घर। तेरे पल्लु से बंधी रहेगी तो कभी नहीं अपनायेगी वो उन लोगों को, कभी नहीं हो पायेगी वो उनकी।”

“ससुराल में पूरी तरह रमने के लिए मायका छोड़ना ही पड़ता है लड़की को। लेकिन तू है कि उसे बांधे बैठी है खुद से। जब हर वक्त तुझसे ही लगी रहेगी तो अपने जीवन में आये नए रिश्तों को कब अपनायेगी? अगर तेरी बेटी का घर बर्बाद हुआ तो उसकी जिम्मेदारी तेरी ही होगी। अभी बता दे रही हूँ, फिर रोना बैठ कर कोने में लेकर अपनी बेटी को।”

सासु माँ के कड़वे शब्द आज जानकी जी के हदय को चीरे जा रहे थे। अपनी सास को कभी भी पलट कर जबाब न देने वाली जानकी जी आज चुप नहीं रह पाई और बोली, “माता जी, देविका मेरी बेटी है। उसका दु:ख-सुख बांटना मेरा अधिकार है और उसके जीवन की हर परिस्थिति में उसके साथ खड़े होना मेरा फर्ज है और शादी कर देने से ना ही माँ के दिल से अपनी बेटी के प्रति प्रेम और परवाह कम हो जाती है और ना ही जिम्मेदारी।”

“रही बात उस घर और वहां के लोगों को अपनाने की तो वो मेरी बेटी है हर रिश्ते को निभाना सिखाया है मैंने उसे। जो संस्कार मैंने उसे दिये हैं वो उस घर में भी अपनी जगह बना लेगी और उस घर के लोगों के दिल में भी लेकिन अगर मैंने उसे पहाड़ से इस जीवन को काटने के लिए अकेला छोड़ दिया तो वो टूट जायेगी।”

“मैं नहीं मानती कि  शादी के बाद एक माँ के अपनी बेटी के जीवन में दखल देने से उसका घर टूट सकता है। दुनिया की कोई भी माँ अपनी बच्ची का घर नहीं तोड़ सकती अगर ऐसा कभी हुआ भी होगा तो परिस्थितियां कुछ और रही होंगी। मैं हमेशा उसकी ढाल बनकर उसके साथ खड़ी रहूंगी।अपनी सोच बदलने की जरूरत एक माँ को नहीं बल्कि समाज में रहने वाले आप जैसे लोगों को है जो ऐसा सोचते हैं कि मायके से जुड़ी रहेगी तो ससुराल की नहीं बन पायेगी”, इतना कहकर वह अपना बैग उठाकर अपने घर के लिए चल दीं और सासु माँ उनको देखती रह गई।

दोस्तों, अक्सर लोग ये हिदायत देते हैं कि एक बेटी अपने जीवन की हर बात अपनी माँ को बतायेगी तो वह सुखी नहीं रह पायेगी, ससुराल वालों को नहीं अपना पायेगी। ये धारणा बहुत ही गलत है।

यहाँ सोच बदलने की जरूरत ना तो बेटी को है और ना ही एक माँ को क्योंकि उनका ऐसा प्यार और रिश्ता जन्म से है, यहां सोच बदलने की आवश्यकता है, ऐसी गलत धारणा को मानने और आगे बढ़ाने वाले लोगों को। अपने बच्चों के जीवन में खुशियां लाने के लिए अपने जीवन की अनगिनत खुशियों को कुरबान किया हो ऐसे  माँ-बाप कभी अपनी बेटी का घर नहीं तोड़ सकते।

मूल चित्र : Canva Pro

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