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NGO गूंज ने किरीत खुराना के साथ मज़दूरों की आवाज़ बनने का फ़ैसला करते हुए एक प्रोजेक्ट शुरू किया जो अब तैयार है जिसका नाम है सफ़र #safar
NGO गूंज ने किरीत खुराना के साथ मज़दूरों की आवाज़ बनने का फ़ैसला करते हुए एक प्रोजेक्ट शुरू किया जो अब तैयार है जिसका नाम है सफ़र #safar
भले ही अब हम अपने घरों में बंद नहीं हैं, भले ही अब हम अपनी नौकरियों पर वापस चले गए हैं, भले ही माहौल बिल्कुल पहले जैसा ना सही लेकिन पहले से थोड़ा बेहतर हो गया है, लेकिन कोरोना का डर हमारे सिर पर अभी भी मंडरा रहा है। कोई रास्ता नहीं है, इसलिए थोड़े डर और थोड़ी हिम्मत के साथ हम आगे बढ़ रहे हैं, ‘आत्मनिर्भर’ बन रहे हैं।
जब पूरी दुनिया में महामारी फैली तो बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गई। इतना नुकसान हुआ जिसका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। पिछले कुछ महीनों को याद करते हैं तो हम सबको बस अपनी ही तकलीफ़ें और अपनी ही परेशानियां दिखाई देती हैं। लेकिन इस मुश्किल घड़ी में एक तबका ऐसा था जिसकी तकलीफ़ हम ना देख सके, ना सुन सके।
आपके घर की सफाई करने वाली बाई, आपके घर का टॉयलेट साफ करने वाला, आपकी गाड़ी साफ करने वाला, बिल्डिंग बनाने वाला, फैक्ट्री में काम करने वाले हर मज़दूर पर मानो जैसे पहाड़ सा टूट पड़ा हो। इस महामारी ने इनसे इनकी रोज़ी-रोटी छीन ली। हमें कहा गया था कि हम इनकी तनख्वाह ना काटें। लेकिन क्या हम सबने उन्हें बिना काम के पैसे दिए?
मुझे नहीं लगता क्योंकि मैंने ऐसा होते हुए देखा। हमने उनसे उनका काम भी छीन लिया और ना ही उन्हें पैसे दिए क्योंकि हम तो खुद परेशान थे, है ना? हमारी परेशानी थी कि हमारे सिर पर छत थी, खाने को खाना था, पहनने को कपड़े थे, सैलरी थोड़ी कम आ रही थी पर आ रही थी।
इन्ही मज़दूरों की कहानी सब तक पहुंचाने की कोशिश की है ‘गूंज- A voice, an effort’ ने। दिल्ली स्थित ये NGO भारत के 23 राज्यों में आपदा, सामुदायिक विकास और गरीब लोगों की मदद करता है। गूंज ने किरीत खुराना के साथ मिलकर मार्च 2020 में इन मज़दूरों की आवाज़ बनने का फ़ैसला करते हुए एक प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया जो अब बन तक तैयार है जिसका नाम है ‘सफ़र’ #safar
अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर इसे शेयर करते हुए गूंज ने लिखा है, “ वो सड़क पर थे और अब दिखाई नहीं दे रहे। उनमें से ज्यादातर लॉकडाउन से ठीक पहले हम सबके सामने थे, वो बेघर, शोषित और बिखरे हुए थे। उनका ‘सफ़र’ अभी भी चल रहा है। यह उन लोगों को हमारी श्रद्धांजलि है जिन्होंने हमारा घर बनाया, ऑफिस बनाया, दुकानें बनाईं, जिन्होंने हमारे लिए अन्न उगाया, जिन्होंने हमारा ख्याल रखा और हमारे साथ खड़े रहे और जिन्हें हम अक्सर ‘वो’, ‘उन्हें’ या ‘उनका’ कहकर पुकारते हैं।”
ज़रा सुनिए, ये हमने कभी जाहिर नहीं किया,
जिन आशियानों में आबाद हो तुम, उसकी तामीर में हम भी शामिल थे
हमने तो कभी ये जताया ही नहीं
दौड़ती है गाड़ियां तुम्हारी जिन सड़कों पर, हमारे टपकते पसीने ने बनाई हैं
हमने तो कभी उफ्फ तक नहीं की,
जिस रिक्शा में सवार होते हो तुम, वो हमारे फेंफड़े खींचते हैं
मालूम है मुझे, तुम्हें तलाश है मेरी
उस बंद नाली को खोलने के लिए, फैक्ट्री की बेजान मशीनों के लिए
जागते रहो की आवाज़ सुनकर चैन से सोने के लिए, गाड़ी पर जमी गर्द साफ करने के लिए
जी हां, एहसास है मुझे
साहबज़ादे को मेरे ही हाथ के लज़ीज़ पकवान पसंद हैं और तुम्हें बर्तन धोने से सख्त नफ़रत है
रह-रहकर यही ख्याल आता है, उस तरह जाने क्यों दिया हमें
क्यों बेसहारा छोड़ दिया, क्यों गाड़ियां, ट्रेनें बंद थी
क्यों लाठियां चली हमपर, क्यों चलते रहे हम भूखे-प्यासे
ये हमने कभी ज़ाहिर नहीं किया, हम सिर्फ काम की सूरत में तुम्हें याद आते हैं
ना हमने स्कूल मांगे, ना सड़क, ना चमचमाती कार, ना पक्की छत
कम से कम एक बार किसी इशारे से फोन से, आवाज़ से
रोका तो होता, उस अनचाहे सफ़र से पहले…
फिल्म सफ़र में हिंदी, पंजाबी, अंग्रेज़ी और उर्दू में आवाज़ दी है अभिनेत्री तापसी पन्नू, दीया मिर्ज़ा और टिस्का चोपड़ा ने। क्लाइबमीडिया इंडिया की डिज़ाइन टीम ने इसका एनिमेशन किया है जो बहुत ही उम्दा है। हर तस्वीर कहानी के एक-एक ज़ज़्बात को पूरी ईमानदारी से उकेरती है। सफ़र नंदिता दस की आवाज़ में ओड़िया में और बंगाली में आनंदिता दास की आवाज़ में भी है।
किरीत खुराना 6 बार प्रतिष्ठित राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं। वो एक कहानीकार, फिल्मकार और निर्देशक हैं। उन्होंने 12 से ज्यादा शॉर्ट फिल्म्स और 500 से ज्यादा एड फिल्म्स बनाई हैं। किरीट ने कई सारे पब्लिक सर्विस कैंपेन पर काम किया है और सफ़र भी उन्हीं का हिस्सा है।
मूल चित्र : YouTube/Twitter
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