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क्यों? मेरा मन!

आखिर! कौन है वो? जिसके लिए, मेरा मन! व्याकुल सा है! इस संसार से, विरक्त रहकर भी, किसके लिए, मेरा मन, इतना आसक्त है?

आखिर! कौन है वो? जिसके लिए, मेरा मन! व्याकुल सा है! इस संसार से, विरक्त रहकर भी, किसके लिए, मेरा मन, इतना आसक्त है?

क्यों?
मेरा मन!
भटकता रहता है।
सुनसान गलियों में,
तो कभी तन्हाइयों में,
जाने किसे ढूंढता है?

मेरा मन!

शहरों व कस्बों में,
गांव-नगर में,
जन-निर्जन में,
पहाड़, जंगल और बीहड़ में,
आखिर किसे खोजता है?

मेरा मन!

कौन है, जो?
मेरे अंतर्मन को,
इतनी गहराइयों तक,
छू गया।

मन को मेरे,
चितवन से,
चुरा ले गया।

कौन है वो?
जिसने,
मेरे हृदय के,
सूनेपन में,
संगीत बिखेर दिया।
दिल के हर तार को,
कैसे उसने,
झंकृत कर दिया ?

आखिर!
कौन है वो?
जिसके लिए,
मेरा मन!
व्याकुल सा है।

इस संसार से,
विरक्त रहकर भी,
किसके लिए?
मेरा मन!
इतना आसक्त है।

किसकी?
मेरे जीवन में
तलाश है।
कौन है वो?
आखिर!
कौन है वो?
जिसके लिए,
मेरा मन!
व्याकुल सा है।

मूल चित्र:Canva

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Manoranjan Srivastava

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