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"कैसी बातें कर रही हो खुशी? मैं कोई बच्चा थोड़े हूँ जो तुम मुझे समझा रही हो। फिर तुम सारा दिन करती ही क्या हो? बस मज़े से टीवी देखती रहती हो..."
“कैसी बातें कर रही हो खुशी? मैं कोई बच्चा थोड़े हूँ जो तुम मुझे समझा रही हो। फिर तुम सारा दिन करती ही क्या हो? बस मज़े से टीवी देखती रहती हो…”
रोहन आज बहुत ही खुश था। होता भी क्यों ना? आज उसकी पत्नी पहली बार ज्यादा दिन के लिए मायके जो जा रही थी। वो मन ही मन सोच रहा था, ‘अब तो बड़े मज़े करुँगा। दोस्तों के साथ खूब पार्टी करूगा कोई रोकने टोकने वाला नहीं होगा अब तो अपने मन की करूंगा।जब से शादी हुई है ऐसा लगता है जैसे सारी आज़ादी ही छिन गई…’
रोहन के मन में तरह तरह के ख्याली पुलाव पक रहे थे तभी उसकी पत्नी खुशी ने कहा, “सुनो जी मेरे बिना तुम सब मैनेज तो कर लोगे ना वैसे मैंने सभी जरूरी सामान की लिस्ट फ्रिज पर चिपका दी है।”
खुशी ने भी फीकी सी मुस्कान बिखेर दी क्योंकि उसे पता था रोहन को इस मुद्दे पर समझाना आसान नहीं था, फिर वो जाते हुए कोई झगड़ा करना नहीं चाहती थी।
कुछ ही देर में टैक्सी आ गई। रोहन खुशी-खुशी पत्नी का सामान कार में रख रहा था और मन ही मन खुश हो रहा था की चलो कुछ दिन तो चैन से रहेगा।
खुशी तो खुश थी ही क्योंकि इतने दिनों बाद मायके जाने को जो मिल रहा था। उसे भी अपनी सहेलियों से मिलने का इंतजार था उनके साथ मज़े जो करने थे।
रोहन खुशी को विदा करके एक नजर घर की तरफ डालता है। खुशी के बिना घर बड़ा ही शांत सा लग रहा था, लेकिन ये शांति उसे अच्छी लग रही थी। वो अपने दोस्तों को फोन करता है और उन्हें शाम की पार्टी के लिए इनवाइट करता है। शाम को दोस्तों के आने पर सभी पुराने दिनों की याद करते हुए महफ़िल जमाते हैं। कब रात के ग्यारह बज जाते हैं पता ही नहीं चलता।
पार्टी खत्म होते ही रोहन टीवी पर मूवी देखने लगता है मूवी देखते देखते कब उसे नीद आ जाती है पता ही नहीं चलता। सुबह नींद खुलती है तो पता चलता है टीवी तो रातभर चलता ही रहा।
अब रोहन की रोज की दिनचर्या बड़ी ही अस्त व्यस्त रहने लगी थी। जल्दी ही अपनी इस दिनचर्या से वो बोर होने लगा घर अब उसे काटने को दौड़ता। जब भी घर की तरफ उसकी नजर जाती हर तरफ सामान बिखरा हुआ, मेज पर अखबार का ढेर लगा हुआ, बिस्तर की चादर अस्त-व्यस्त, बाथरूम में कपड़ों का ढेर लगा हुआ, फ्रिज के अंदर सब्जियों का ढेर लगा हुआ। डाइनिंग टेबल पर बोतलों का ढेर, खराब होते हुए फल।
एकाएक उसके दिमाग में खुशी का चेहरा घूमने लगता है। अब उसे एहसास होता है कि खुशी कितने अच्छे से सारे घर को संभालती थी जबकि उसे हमेशा यही लगता था कि खुशी के पास काम ही क्या है वह तो बस मजे से टीवी सीरियल देखती है रहती है। सोचते सोचते उसे कब नींद आ जाती है पता ही नहीं चलता।
सुबह जब नींद खुलती है तो वो राहत की सांस लेता है क्योंकि आज संडे था। वो चाय बनाने के लिए गैस पर रखता है तभी फोन की घंटी बजती है उसके कॉलेज की फ्रेंड नीरजा का फोन था। वो उसे बताती है कि उसके पति सोमेश का ट्रांसफर हो गया है वो उसकी घर ढूंढने में मदद कर सकता है?
रोहन बोलता है क्यों नहीं जरूर कर सकता है। नीरजा खुशी के बारे में पूछती है। रोहन उसे बताता है कि खुशी अपने मायके गई है इसलिए वो बोर हो रहा है। नीरजा रोहन को बोलती है, “पता है रोहन तुम आदमी लोग बोर क्यों होते हो? और हम औरतें बोर क्यों नहीं होती?”
“हाँ बताओ…”
“तो सुनो रोहन, हम औरतें अपने घर से बहुत प्यार करती हैं। ऐसा नहीं है कि तुम आदमी लोग अपने घर से प्यार नहीं करते। लेकिन तुम लोगों की परवरिश ही ऐसे की जाती है। अब देखो तुम बोल रहे हो कि तुम बोर हो रहे हो। अच्छा ये बताओ तुम जब भी खाली होते हो या तुम्हारी छुट्टी होती है तो तुम क्या करते हो?”
“कुछ नहीं ना? अब खुशी नहीं है तो घर भी अस्त व्यस्त हो गया होगा। मेज पर धूल जमी पड़ी होगी, सिंक में बर्तन पड़े होगे, बाथरूम गंदे पड़े होंगे, बेड पर कपड़े, तोलिया ऐसे ही पड़े होंगे। डाइनिंग टेबल पर फ्रूट्स ऐसे ही पड़े होंगे। लेकिन तुम फिर भी बोर हो रहे हो पता है क्यों? क्योंकि तुम्हें ये काम दिखाई नहीं देते, ना ही तुम आदमी इन कामों को काम समझते हो।”
“तुम्हें तो हमेशा से ही यही लगता है कि औरतें घर में करती ही क्या हैं। आराम से चाय पीती हुई मज़े से टीवी देखती हैं।”
“तुम सही कह रही हो नीरजा मैं तो हमेशा से यही सोचता था। लेकिन अब मुझे पता चला है, घर में कितने सारे काम होते हैं काश हमें भी कुछ तुम लड़कियों जैसी थोड़ी सी भी परवरिश मिलती तो शायद हम भी कभी बोर नहीं होते।”
“अच्छा चलो फिर तुम अपनी बोरियत मिटा लो जब तक खुशी लौटे घर को घर जैसा बना दो। मैं फोन रखती हूँ और हाँ सोमेश की घर ढूंढने में मदद जरूर कर देना।”
रोहन चाय की प्याली के साथ सोचता है सच ही तो बोला नीरजा ने और घर को घर जैसे बनाने में लगा जाता है।
मूल चित्र : Canva Pro
Msc,B.Ed,बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक है कॉलेज के जमाने से ही लेख कविता और कहानियां लिख रही हूं मुझे सामाजिक मुद्दों पर लिखना पसंद है अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में पॉजिटिव बदलाव लाना चाहती हूं। read more...
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