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चीटियाला अइलम्मा – बहुजन महिला संघर्ष की इस बेमिसाल महिला ने दास प्रथा को ललकारा

“यह मेरी जमीन है, यह मेरी फसल है। किसी में हिम्मत है जो मेरी फसल और मेरी जमीन ले ले? यह तभी संभव है जब मैं मर जाऊं।”- चीटियाला अइलम्मा

“यह मेरी जमीन है, यह मेरी फसल है। किसी में हिम्मत है जो मेरी फसल और मेरी जमीन ले ले? यह तभी संभव है जब मैं मर जाऊं।”- चीटियाला अइलम्मा

भारत में महिला संघर्ष के इतिहास में अगर सबलर्टन महिलाओं के संघर्ष के इतिहास या फिर सबलर्टन लोगों के लिए संघर्ष के इतिहास की तलाश करते हैं,  तब कितने ही महिलाओं के संघर्ष देखने को मिलने है जिनको इतिहास में वो जगह नहीं मिली जो उनको मिलनी चाहिए। आजाद भारत में कितनी ही सबलर्टन महिलाओं का संघर्ष नदारद है जबकि वह लोकस्मृतियों में जीवित है तो कई उन समुदायों के बीच में छोटी सी मूर्ति के रूप में। उनके संघर्ष की कहानी किसी किताब का हिस्सा नहीं है जबकि उनका संघर्ष उस समाज की महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है।

असल में हम उन महिलाओं के संघर्षो को मुख्य़धारा में इसलिए शामिल नहीं करना चाहते है क्योंकि इससे भद्र कहे जाने वाले समाज का शोषित करने वाला सामंती चेहरा सामने आ जाएगा, जो कभी सामाजिक व्यवहार का हिस्सा रहा हैं। सबलर्टन महिलाओं के संघर्ष का इतिहास सभ्य समाज कहे जानेवाले लोगों के शराफत का नकाब उतार देगा। हम सब हैदराबाद के निजाम को जब भी याद करते है तो निजामशाही के शान-शौकत को याद करते है। इतिहास की सच्चाई यही बताती है शान-शौकत की जमीन पर लाल कालीन इसलिए बिछाई जाती है ताकि नीचे बिखरा लोग का खून पसीना उसमें दिखाई न पड़े।

“यह मेरी जमीन है, यह मेरी फसल है। किसी में हिम्मत है जो मेरी फसल और मेरी जमीन ले ले? यह तभी संभव है जब मैं मर जाऊं।”- चीटियाला अइलम्मा

महिला स्वतंत्रता सेनानी चीटियाला अइलम्मा जो चाकली अइलम्मा के नाम से भी जानी जाती है, का यह संदेश तेलंगाना सशस्त्र संघर्ष में भाग लेने वाली कई महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बना। तेलंगना में लोकस्मृतियों में उनका जन्मदिवस और पुण्यतिथी आज के ही दिन है। आज उनकी जन्मदिवस और पुण्य तिथी के दिन लोग उनके संघर्ष को याद कर रहे है। हालांकि विकीपीडिया में उनका जन्मदिन 26 सिंतबर 1895 और पुण्यतिथी 10 सितंबर 1985 दर्ज है। आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले पालाकुर्थी गांव में सामंतों, जमीदारों और निज़ाम सरकार की संगीनों से बेख़ौफ़ न केवल काश्तकारों और खेतिहर मजदूरों के मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ी अपितु महिला समानता के लिए भी लड़ाई लड़ी।

चीटियाला अइलम्मा या चाकली अइलम्मा का जीवन

आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले के कृष्णपुरम गांव में उनका परिवार भी जातिगत संरचना पर आधारित परंपरागत पेशे के ही अपना जीवन-यापन करता था। आंघ्र प्रदेश और आज के तेलंगाना में धोबियों को चाकली के नाम से ही जाना जाता है। जिसका अर्थ है सेवा करना। आमतौर पर जाति का उपनाम लोग नाम के बाद लगाते है। चाकली अइलम्मा ने इसे अपने नाम के पहले लगाकर निजाम के खिलाफ अपने प्रतिरोध की शुरूआत की। इसके पीछे उनका मुख्य मकसद यह था कि उपजाति के नाम के आधार पर लोगों का जो शोषण और उत्पीड़न है वह जग-जाहिर हो। यह जातिगत सरंचना के खिलाफ उनका पहला विद्रोह था।

उनका पारिवारिक जीवन

शिक्षा तो चाकली अइलम्मा के जीवन में बहुत बड़ी बात थी वह भी निचली जाति की महिला होने के नाते और भी अधिक। परंपरागत तरीके से कम उम्र में उनका भी विवाह हो गया चीटियाला नारसैयाह से हुआ, जिससे उनने चार बेटे और एक बेटी सोमू नरसम्मा हुए। उनका जीवन यापन कपड़े धोने के परंपरागत पेशे से नहीं हो रहा था। अइलम्मा ने एक सामंत कोंडाला राव रेड्डी से कुछ एकड़ जमीन पर पत्ते की खेती करनी शुरू कर दी। यह भी सीधे तौर पर सामंत/जमीदारों और निजाम सरकार को चुनौति देने जैसा ही था इसलिए उनको यह बर्दास्त नहीं हुआ और निम्न जाति की महिला का ऎसा करना लोगों को अपमान लगा।

उनके पति और बेटे को फर्जी मुकदमें में फंसाकर जेल भेजवा दिया। चाकली अइलम्मा डरी नहीं और अदालत तक गई पति और बेटे को छुड़ाकर लाई। उनका घर जला दिया गया पति की हत्या कर दी गई बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया।

चीटियाला अइलम्मा चुप नहीं रहीं

इसके बाद चाकली आइलम्मा चुप नहीं रहीं। इस बर्बरतापूर्ण दमन को उन्होंने राजनीतिक लड़ाई बनाने के लिए सीपीआई के सदस्यों से सहायता मांगी। सदस्यों में रामचंद्रन राव रेड्डी नाम के जमीदार ने अपनी जमीन चाकली आइलम्मा के नाम से स्थांतरित कर दी। इसके बाद उन्होंने दास प्रथा के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की, जिसे बहुजन महिलाओं के संघर्ष के रूप में भी याद किया जाता है। उनका घर सामंत जमीदारों के खिलाफ संघर्ष करने बाला गतिविधियों का केंद्र बन गया। उन्होंने जमीदारों के खिलाफ रचनात्मक संघर्ष और दास प्रथा के खिलाफ लड़ने वाले के विचार का रास्ता खोला।

हम महिलाओं का संघर्ष उच्च जातियों के महिलाओं के संघर्ष से अलग है

तेलंगाना सशस्त्र आंदोलन में उन्होंने उन महिलाओं को संगठित किया जो जमीदारों के यौनिक हमलों से प्रताड़ित थी या जिनके पतियों को मार दिया गया था। वह उन महिलाओं में से रही जिन्होंने महिलाओं के लैंगिक समस्या पर वर्ग के आधार पर पहचाना। उन्होंने यह बताया है कि हम महिलाओं का संघर्ष उच्च जातियों के महिलाओं के संघर्ष से अलग है क्योंकि जाति भी लैंगिक शोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस तरह से उनका संघर्ष केवल सामतवाद को खत्म करने की मुखालफत नहीं करता है। इसके साथ-साथ जेंडर समानता और महिला समानता के सवालों में निचली जातियों के महिलाओं के संघर्ष को भी शामिल करने की बात करता है।

एतिहासिक पुस्तकों से चीटियाला अइलम्मा का योगदान नदारद है

चाकली अइलम्मा के संघर्षों को जाति प्रथा के खिलाफ संघर्ष और स्त्रीवादी संघर्ष के नजरिए से देखा जाना चाहिए जो अभी तक नहीं हुआ। उन्होंने न केवल भोजन के लिए लड़ाई लड़ी अपितु महिलाओं की समानता और सम्मान की लड़ाई भी लड़ी। वह जहां एक तरफ सामन्तों के खिलाफ संघर्षरत थीं वहीं दूसरी ओर पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ भी लड़ रही थीं। उस दौर में जब भारत ब्रिटिश शासकों के आधीन था चाकली अइलम्मा सामान्य अपराधों कत्लेआम, सामूहिक बलात्कार, यौनिक हमले और सांस्थानिक शोषण के खिलाफ बिना भयभीत हुए लड़ीं।

उनके द्वारा किए गए उल्लेखनीय योगदान के लिए उनकी मूर्ति वारंगल, हैदराबाद में लगाई गई। जो उनके संघर्ष को इतिहास में दफन नहीं होने दे रहा है। वह तेलंगाना विद्रोह और स्वतंत्रता आंदोलन में एक क्रांतिकारी नेता के रूप में सहभागी हुईं लेकिन अफसोस कि इतिहास की पुस्तकों से उनका योगदान नदारद है।

(नोट:चीटियाला अइलम्मा का संघर्ष तेलगांना सफर के दौरान वहां के लोगों के स्मॄति के आधार पर लिखा गया हैतेलंगाना राज्य बनने के बाद उनके संघर्ष अंग्रेजी भाषा में देखने को मिलता है परंतु हिंदी भाषाभाषी में उनका संघर्ष नदारद है। सोशल मीडिया के साथी नरेन्द्र दिवाकर ने अपने शोध में चीटियाला अइलम्मा के जीवन और संघर्ष पर शोध किया है…इस लेख को लिखने में उनके शोध का सहारा लिया गया है।)

मूल चित्र : Wikipeida/AIDWA  

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