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बुढ़ापे को अभिशाप न मानें, ये आने वाली पीढ़ी के लिए अनुभवों की टोकरी है…

घर आकर मैं काफी देर सोचती रही कि क्यों उम्र के आखिरी हिस्से में बूढ़े मां बाप को अकेला छोड़ दिया जाता है? ज्यादातर बच्चे साथ होकर भी साथ नहीं होते?

घर आकर मैं काफी देर सोचती रही कि क्यों उम्र के आखिरी हिस्से में बूढ़े मां बाप को अकेला छोड़ दिया जाता है? ज्यादातर बच्चे साथ होकर भी साथ नहीं होते?

अभी 2 महीने पहले ही हम नए अपार्टमेंट में शिफ्ट हुए थे 3 कमरे का बड़ा सा घर था। पति, मैं और हमारा 2 साल का बेटा अमूल्य। बहुत अनमोल था वह हमारे लिए, यही सोचकर नाम अमूल्य रखा है।

एक महीना नए घर में कैसे बीता पता ही नहीं चला। घर सजाते-सवांरते, बच्चा, पति, घर-भर के काम। बस कब सुबह से रात हो जाती पता ही न चल पाता। आसपास किसी को मिल भी नहीं पाई मैं, न हीं जान पाई कि कौन-कौन रहता है। बस हमारे ही फ्लोर पर सामने एक आंटी रहती हैं, यह पता था मगर कभी देख नहीं पाई थी उनको, न हीं मिल पाई थी।

70 के आसपास की उम्र रही होगी उनकी। तीन-चार कामवाली बारी-बारी से आती थीं उनके यहां। तीन चार कमरों का बड़ा घर, सारी सुविधाएं, अच्छा रहन-सहन सब था आंटी के घर में। मगर एक बात थी, आंटी बार-बार बीमार हो जाती थीं। कभी-कभी रात में तबीयत उनकी काफी खराब हो जाती थी।

एक बार सोसाइटी की गैदरिंग में उनसे बात करने का मौका मिला तो उन्होंने अपने घर आने का न्योता दिया। एक दिन टाइम निकाल कर मैं गई उनसे मिलने और बातों-बातों में पूछ ही लिया, “आंटी आपके बच्चे?”

एक अनकही दर्द भरी मुस्कान उनके चेहरे पर देखी मैंने। बोलीं, “है ना बेटा, दो-दो बेटे हैं, मेरे दो बहुए हैं, पोते-पोतिया हैं। बेटे-बहुएं सब नौकरी की वजह से दूसरे शहरों में बसे हैं।”

मैं उनकी यह बात सुनकर चौंक गई क्योंकि पिछले 6 महीनों में मैंने एक बार भी उनके किसी बेटे को उनके घर आते नहीं देखा था।

फीकी सी मुस्कान के साथ मैंने ‘ओके’ बोला, वह भी बेमन से, क्योंकि यह कहीं से भी एक ओके वाली स्थिति तो बिल्कुल नहीं थी। शायद वह भी समझ गई थीं।

घर आकर मैं काफी देर सोचती रही कि क्यों उम्र के आखिरी हिस्से में बूढ़े मां बाप को अकेला छोड़ दिया जाता है? ज्यादातर बच्चे साथ होकर भी साथ नहीं होते? क्यों बूढ़े मां-बाप का अधिकार क्षेत्र या तो सीमित कर दिया जाता है या फिर समाप्त…!

अपने सोते हुए 2 साल के बेटे के सर पर हाथ सहलाते हुए अचानक ही मेरी आंखें भर आई, कि जिस संतान को हम अपनी सारी इच्छाएं मार कर इतने जतन से बड़ा करते हैं उनको पैरों पर खड़ा करते हैं, पहले चलने के लिए और फिर जीवन के संघर्षों से लड़ने के लिए, उनके लिए हम इतने बेमानी हो सकते हैं क्या?

मैंने सोच लिया कि सामने वाली आंटी का अकेलापन दूर करने के लिए कुछ ना कुछ जरूर करूंगी और मैं सो गई।

अगले दिन सन्डे था। बेटे को पति के पास छोड़कर मैं सोसाइटी के आसपास के घरों में मिलने गई,  जिनमें से काफी घरों में छोटे बच्चे और कुछ घरों में बुजुर्ग भी थे। मैंने सब के फोन नंबर लेकर एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और सबको अपनी योजना के बारे में बताया, मुझे बहुत ही अच्छा रिस्पांस मिला।

उसी शाम में आंटी को लेकर सोसाइटी के पार्क में गई, मेरा बेटा अमूल्य भी साथ था सोसाइटी के बच्चे और बुजुर्ग पहले से ही वहां आ चुके थे और जैसा हमने प्लान किया था पार्क में चेयर और मेट्स लगा दी गई थी।

आंटी ने मुझसे पूछा, “बेटा आज कुछ है क्या सोसाइटी में?”

मैंने कहा, “आंटी आज नहीं, अब हर रोज शाम को सब यहां इकठ्ठा होंगे यानी कि आप सब अंकल आंटी और यह बच्चे। आप लोग इनके साथ खेलिए, इन्हें कहानियां सुनाइए और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इनको अपने जीवन के अनुभवों की वह गठरी खोल कर दिखाइए जो अनमोल है, जो यह कभी बाजार से खरीद नहीं पाएंगे और आप सबके मन में जो चाह है, बच्चों के साथ हंसने-खिलखिलाने की, वह भी पूरी हो जाएगी।”

मैंने आगे कहा, “आंटी आपको पता नहीं है, आप लोगों के तजुर्बे और जिंदगी के बारे में आप लोगों की समझ हमारे लिए कितनी अमूल्य है। आशा करती हूं आपको अच्छा लगेगा।”

मेरे इतना कहते ही आंटी ने मेरे हाथ अपने हाथों में ले लिए और उनकी आंखों से आंसू छलक गए जो शायद कभी अकेले में छलकते होंगे, “बेटा तुमने आज जो किया है उसके लिए थैंक्स बहुत छोटा शब्द है। मेरे बच्चों ने मेरे लिए सारी सुविधाएं जुटाई, 3-4 नौकरानी, बड़ा सा घर, सब कुछ…मगर मुझे इस उम्र में सबसे ज्यादा जिस चीज की जरूरत थी, वह था अपनों का साथ। मेरे बुढ़ापे के अकेलेपन को दूर करने वाली मेरे बच्चों की हंसी, उनका स्नेह जो तुम्हारी इस कोशिश से आज मुझे मिल गया है थैंक यू बेटा।”

मूल चित्र : Trilok from Getty Images Signature via Canva Pro 

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