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तब बिटिया तू मेरे इन हाथों से छूट जाएगी…!

दूँ तुझे मैं मुट्ठी भर ज़मीन और अपनी आंखों का उजाला, तो अपने हिस्से की ज़िंदगी खुद से ही तू जियेगी, तब बिटिया... तू मेरे इन हाथों से छूट जाएगी!

दूँ तुझे मैं मुट्ठी भर ज़मीन और अपनी आंखों का उजाला, तो अपने हिस्से की ज़िंदगी खुद से ही तू जियेगी, तब बिटिया… तू मेरे इन हाथों से छूट जाएगी!

एक एड देखा मैंने…
कह रहा था, एक व्यक्ति,
अपनी नन्ही बिटिया को स्कूल
छोड़ने जा रहे एक पिता से…
कि पढ़-लिखने से पंख भये हैं,
देख भर लेना कि बिटिया हाथ से छूटने ना पाए!

नन्ही ने अपने नन्हे से दिमाग पर लगाया ज़ोर…
जब कुछ न समझ आया तो,
व्याकुल हो पूछ बैठी पिता से!

धीर-गंभीर हो पिता ने सिर पर हाथ फेर,
बिटिया को गोद में बिठाया और कहा
दूँ तुझे मैं मुट्ठी भर ज़मीन और अपनी आंखों का उजाला,
तो बिटिया पंख उनसे तू बनाएगी,
उस आकाश से हिस्से का अपने सूरज तू छीन लाएगी।

तू बनाएगी सबसे ऊँचे पेड़ पर अपना एक घरौंदा और
अपने हिस्से की ज़िंदगी खुद से ही तू जी जियेगी,
तब बिटिया… तू मेरे इन हाथों से छूट जाएगी!

बिटिया मुस्कुरायी, बोली…बाबा
रहोगे न साथ मेरे उस घरोंदे में, जब हाथ से छूट जाऊं तो?
मेरे उस सूरज से हम घर रौशनी फैलाएंगे…

बिटिया और बाबा देख एक दूजे को
मुस्कुराये और चल दिए दोनों अपने रास्ते…

मूल चित्र : Canva Pro 

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