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पापा आप इस उम्र में ऐसा कैसे कर सकते हैं…?

जब तुम बूढ़े हो जाओगे तो क्या अपनी महिला मित्रों से दोस्ती तोड़ दोगे? नहीं ना, तो पापा का इस उम्र में किसी महिला से मित्रता करना इतना क्यों अजीब लग रहा है?

जब तुम बूढ़े हो जाओगे तो क्या अपनी महिला मित्रों से दोस्ती तोड़ दोगे? नहीं ना, तो पापा का इस उम्र में किसी महिला से मित्रता करना इतना क्यों अजीब लग रहा है?

“दुआओं का असर दिखाती है जिंदगी, अब तेरे नाम पर मुस्कुराती है जिंदगी!”

“राकेश उठो ना ऑफिस नहीं जाना है क्या आज?” अनु ने राकेश को गुस्से में आवाज लगाई।

“नहीं आज ऑफिस से छुट्टी ली है अनु, सोच रहा हूँ आज थोड़ा आराम कर लूँ”, राकेश ने जवाब दिया।

“ठीक है कर लो आराम, सही है। एक हम हैं जो आराम नहीं कर सकते, ना घर में और न ही ऑफिस में”, अनु ने झल्लाकर कहा। “मैं ऑफिस के लिए निकल रही हूँ, खाना बना दिया है खा लेना समय पर। और हाँ घर गंदा मत करना”, ये बोलते हुए अनु घर से निकल गई।

राकेश एक बहुत बड़ी कम्पनी में कार्यरत था और वह यहाँ पूणे में अपनी पत्नी अनु और पिता के साथ रहता था। अनु भी किसी कम्पनी में ही कार्यरत थी।

पिता रिटायर्ड थे, माँ का देहांत बहुत समय पहले ही हो गया था। राकेश बहुत छोटा था जब उसकी माँ गुजरी। तब से लेकर उसके पिता ने ही राकेश का पालन किया। राकेश के पिता सुबह सैर के लिए जाते थे और अनु के ऑफिस जाने से पहले घर आ जाते थे। राकेश और वर्मा जी बहुत शांत स्वभाव के थे, जबकि अनु थोड़ी गुस्से वाली थी। पर वो सबका बहुत ध्यान रखती थी।

पिछले कुछ दिनों की व्यस्तता के चलते राकेश बहुत थक गया था, तो उसने आज ऑफिस से छुट्टी ले रखी थी। उसने सोचा आज थोड़ा रिलैक्स करूंगा, टीवी पर अपनी मनपसंद मूवी देखूंगा। राकेश बिस्तर से निकलकर आँखों को मलते हुए रसोई में गया।

“पापा चाय बना रहा हूँ आपके लिए भी बना दूँ?” राकेश ने वर्मा जी से पूछा।

“नहीं राकेश मैं थोड़ा ओर सैर कर आता हूँ, तुम आज घर हो तो मुझे भी घर की चिंता नहीं है”, कहते हुए वर्मा जी घर से बाहर निकल गए। राकेश अपने लिए चाय बनकर टैरेस पर बैठा ही था कि दरवाजे की घंटी बजी। राकेश ने दरवाजा खोला तो सामने कामवाली बाई खड़ी थी।

“अरे साहब आप? बाबूजी नहीं हैं क्या?” कमला बोली।

“यहीं हैं पापा, सैर करने गए हैं”, राकेश ने उत्तर दिया। राकेश फिर से टैरेस पर आकर बैठ गया। कमला अपने रोज के कामों को निपटाने में लग गई।

राकेश चाय का कप रखने रसोई में गया तो कमला राकेश को बोली, “साहब कुछ बताना था आपको, आप गुस्सा तो नहीं होगे?”

“हाँ बताओ क्या बात है मैं गुस्सा नहीं करूंगा”, राकेश ने कहा।

“साहब जब आप और दीदी ऑफिस चले जाते हैं तो बाबूजी के पास एक औरत आती है। रोज चाय नाश्ता साथ करते हैं, खूब हंसी-मजाक चलता है। पहले तो कभी-कभी आती थी पर अब तो रोज का ही काम हो गया है। मुझे तो शर्म आती है। बाबूजी की ही हमउम्र है, पर साहब आप सबके जाने के बाद ऐसे आना मुझे तो अच्छा नहीं लगा तो आपको बता रही हूँ।”

राकेश कमला की ओर देखता रहा, उसे समझ नहीं आया कि वो क्या बोले।

“साहब मैं जाती हूँ, मेरा काम हो गया”, कहकर कमला चली गई।

राकेश वहीं स्तब्ध खड़ा सोचने लगा, ‘पापा ऐसा कैसे कर सकते हैं? इतने साल उन्होंने मुझे अकेले सम्भाला और अब इस उम्र में वो…’

“अरे राकेश ये दरवाजा क्यों खुला छोड़ा है?” वर्मा जी ने घर में दाखिल होते हुए पूछा।

“पापा एक बात पूछनी थी आपसे”, राकेश ने वर्मा जी से कहा।

“हाँ पूछो क्या हुआ राकेश?” वर्मा जी ने कहा।

राकेश ने कहा, “वो औरत कौन है पापा जो मेरे और अनु के ऑफिस जाने के बाद आपके पास आती है?”

वर्मा जी ने बड़े ही निश्छल भाव से कहा, “ओह वो तो आशा जी हैं, राकेश। हम पार्क में मिले थे, साथ में घूमना शुरू कर दिया। उनके पति का देहांत हुआ बहुत समय बीत गया है। वो बहुत अकेला महसूस करतीं हैं, बेटे बहू भी विदेश में रहते हैं। हम अच्छे मित्र बन गये हैं तो रोज सुबह की चाय साथ में पी लेते हैं। वो अपने घर बुला रहीं थीं पर मैंने मना कर दिया और उन्हें ही यहाँ आने का निमंत्रण दे डाला।” वर्मा जी अपनी बताकर कमरे में चले गये।

राकेश वही बहुत परेशान हो रहा था, ‘पापा की इस उम्र में कोई महिला मित्र? मैं सबको क्या बताऊँगा, क्या जवाब दूंगा। अरे दुनिया का क्या मैं अनु को कैसे बताऊँ और क्या बताऊँ। वो पहले ही इतने गुस्से वाली है, ऊपर से जब पता चलेगा कि बाहर पापा को लेकर क्या-क्या बात हो रही हैं तो अनु कैसे रिएक्ट करेगी?’

शाम हो आयी थी और अनु भी रसोई में खाना बनाने में व्यस्त थी।

“अनु मुझे तुमसे कुछ बात करनी है”, राकेश ने कहा।

“बोलो राकेश अब क्या हुआ?” अनु ने थके हुए स्वर में कहा।

राकेश ने घबराते हुए अनु को सारी बात बता दी।

“अरे वाह ये तो गुड न्यूज है, इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है राकेश?” अनु ने कहा।

राकेश अचम्भित हो उठा, “ये क्या बोल रही है अनु, कहीं मुझ पर व्यगं तो नहीं कर रही?” क्या है उसके मन में, यही जानने के लिए राकेश बोला

“यह बात तुम दिखावे के लिए बोल रही हो और मन ही मन पापा पर हंस रही हो?”

“क्या राकेश तुमने इतने साल में मुझे इतना ही जाना है? मैं बहुत गुस्सा करती हूँ क्योंकि मुझे तुम्हारी और पापा की चिंता है। याद है हम तुम्हारे दोस्त के घर शादी में गये थे। वहां उसने बताया था कि कैसे उसकी माँ पिता की मृत्यु के बाद डिप्रेशन में चली गई थी। वह अपने मन की बात किसी से नहीं करती थी तब डाक्टर ने उन्हें सलाह दी थी कि अगर उनका कोई हम उम्र उनके इस अकेलेपन को बांट सके तो वो ही इनकी बीमारी का इलाज है। और कैसे तुम्हारे दोस्त ने दुनिया की परवाह के बिना अपनी माँ की दूसरी शादी करवाई। जब तुम्हें ये पता चला तो तुमने उसे कितना सराहा था।”

अनु बिना रूके एक सांस बोलती रही, “राकेश आज जब बात अपने घर की आई तो तुम दुनिया का सोचने बैठ गये। दुनिया में लोग बस बोलने मात्र के लिए होते हैं वह न तो सुख में काम आते हैं न दुःख में।”

“एक बात बताओ राकेश, क्या तुम्हारी कोई महिला मित्र नहीं है? जब तुम बूढ़े हो जाओगे तो क्या उनसे अपनी दोस्ती तोड़ दोगे? नहीं ना, तो पापा का इस उम्र में किसी महिला से मित्रता करना इतना क्यों अजीब लग रहा है? उम्र कोई भी हो अकेलेपन को बाँटने के लिए एक दोस्त की आवश्यकता सभी को होती है। हम तो खुश होना चाहिए कि पापा हमारे पीछे से अकेले नहीं रहते हैं उनके साथ उनकी दोस्त है।” ये बोलकर अनु अपने काम में लग गई।

राकेश को लगा था कि अनु बहुत गुस्से वाली है तो शायद वो गुस्सा होगी। पर सच में राकेश ने अब तक अनु का समझा ही कहाँ था। आज उसे बहुत गर्व महसूस हो रहा था कि अनु उसकी पत्नी बनी। अब उसे अपने पापा की किसी महिला मित्र से दोस्ती पर कोई प्रॉब्लम नहीं थी क्योंकि अनु ने उसकी आँखें खोल दी थीं।

किसी भी रिश्ते का नामकरण करने से पहले हमें पहले थोड़ा सोच लेना चाहिए। क्या हमारे बुजुर्ग अपना जीवन अपनी शर्तों पर नहीं जी सकते? क्या उन्हें जीवन जीने का अधिकार नही है।

मूल चित्र : Canva Pro 

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