कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

तुम्हारा पौरुष और मेरा अस्तित्व…

मैं अपने हर श्रृंगार से बढ़ा सकती हूं, तुम्हारे जीवन की खूबसूरती, पर नहीं चाहती कि तुम्हारे पौरुष से ढक जाए मेरा अस्तित्व।

मैं अपने हर श्रृंगार से बढ़ा सकती हूं, तुम्हारे जीवन की खूबसूरती, पर नहीं चाहती कि तुम्हारे पौरुष से ढक जाए मेरा अस्तित्व।

मैं अपने पाँव में बांध कर पायल,
देना चाहती हूं तुम्हारे जीवन को संगीत,
पर नहीं बनने दे सकती इसे,
अपने पाँव की बेड़ियाँ…

मैं अपनी चूड़ियोँ की खनक से,
तुम्हारे जीवन की रौनक तो बन सकती हूँ,
पर नहीं बनने देना चाहती इन्हें,
अपने लिए हथकड़ी…

अपने कानों के झुमके से देना चाहती हूँ,
तुम्हारे जीवन मे सौंदर्य को जन्म,
पर नहीं होने देना चाहती,
खुद को परम्पराओं के नाम पर बहरा…

चाहती हूं भर दूँ रंग तुम्हारे जीवन में,
अपने माथे की बिंदी से,
पर नहीं ढोना चाहती मैं,
तुम्हारे नाम की पहचान…

अपने बालों की गहनता से तुम्हारे जीवन की,
कड़ी धूप को बादलों की छाँव तो दे दूँ मैं,
पर नहीं चाहती, क्रोध में तुम्हारे हाथों उलझे इनमें
और रोकें मुझे आगे बढ़ने से…

मैं अपने हर श्रृंगार से बढ़ा सकती हूं,
तुम्हारे जीवन की खूबसूरती,
पर नहीं चाहती कि
तुम्हारे पौरुष से ढक जाए मेरा अस्तित्व।

 मूल चित्र : Canva Pro

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

3 Posts | 6,182 Views
All Categories