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और अपनी बेटी के बिना कुछ बोले, माँ सब समझ रहीं थीं…

नीलिमा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ने माँ को इतमिनान दिला दिया या शायद उन्होंने खुद को मना लिया कि वो संजीव के साथ खुश है। 

नीलिमा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ने माँ को इतमिनान दिला दिया या शायद उन्होंने खुद को मना लिया कि वो संजीव के साथ खुश है। 

“क्या हुआ बेटा? तुम अपने दिल की बात मुझे क्यों नहीं बताती?” मम्मी ने अपनी प्यारी बेटी से पूछा।

“कुछ नहीं मम्मी। आपको वहम हुआ है। मैं कुछ भी आपसे छिपा सकती हूँ? आप मेरी मम्मी नहीं दोस्त भी हैं। कभी भी कोई परेशानी होगी, आपको बताने में झिझक नहीं करूंगी। आप मेरी फिक्र करना छोड़ दीजिये। खुश रहा करिये। आपके दोनों बच्चों की शादी हो चुकी है। कोई जिम्मेदारी भी नहीं है। भाई भाभी भी अच्छे हैं। मेरी फिक्र में बीमार होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। मैं बहुत खुश हूँ अपने ससुराल में। सब बहुत ख्याल रखते हैं मेरा। और आपके दामाद तो हैं ही अच्छे…”

“जानती हूँ! मेरा दामाद हीरा है हीरा! कभी किसी के सामने ऊंची आवाज में बात नहीं करता। जितना अदब अपनी मम्मी का करता है उतना ही मेरा भी करता है। चेहरे पर कैसी प्यारी सी मुस्कान रहती है। कुछ कहो तो मुस्कुरा देंगे”, वो अपने दामाद पर निहाल ही रहती थीं।

जब संजीव अपने घर वालों के साथ नीलिमा को देखने आए थे, कैसे सर झुका कर बैठे थे। कुछ कहो बस मुस्कुरा देते। उनकी यही खूबी तो मम्मी को कितनी पसंद आई थी। उनको लगा, उनकी इतनी मासूम सीधी सादी बेटी को ऐसा ही शरीफ लड़का चाहिए, जिसके अंदर गुस्सा नाम का ही हो।

नीलिमा को घर वालों की पसंद पर पूरा भरोसा था। मम्मी ने पूछा भी की कोई और पसंद हो तो बता दो, मगर पता नहीं क्यों उसे जीवन साथी के रूप में कोई पसंद ही नहीं आया। इसलिए जब मम्मी ने पूछा तो बोली, “मुझे कोई पसंद नहीं मम्मी! आप सब की पसंद पर मुझे पूरा भरोसा है। यूं संजीव की दुल्हन बनकर वो उनके घर पहुँच गयी…”

जब वो पहली बार मायके आई तो मम्मी जैसे उसके चेहरे पर कुछ ढूंढ रहीं थीं। मगर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ने उन्हें इतमिनान दिला दिया या शायद उन्होंने खुद को मना लिया कि वो खुश है।

वो जब भी आती मम्मी को लगता जैसे वो एकदम ठीक हो गई हैं। उनकी बात ही खत्म नहीं होती थी। जाने कहाँ कहाँ की बात इकट्ठा रहती। पूरी रात जाग कर गुजार देतीं, तब भी दिल नहीं भरता।  कहती रहतीं, “इतने कम टाइम के लिए ना आया करो। मेरा दिल नहीं भरता। कम से कम दस-पंद्रह दिन के लिए आया करो।” और वो बस मुस्कुरा कर रह जाती। कैसे बताती पंद्रह दिन कोई रुकने भी देगा?

नीलिमा की पहली औलाद  होने वाली थी। मम्मी ने सुना तो फौरन नीलिमा को फोन करके ढेरों नसीहत दे डालीं, “ऐसे मत चलना, भारी सामान ना उठाना, दूध पीना, फ्रूट खाना, कोई टेंशन ना लेना, खुश रहना और जाने क्या क्या…” वो बस ‘हूँ हूँ’ करती रही।

मम्मी उसके घर बहुत कम ही जाती थीं। जातीं भी, तो कुछ घंटो में वापस आ जातीं। उन्हें उसके घर में अजीब लगता। इसके बारे में उन्होंने कभी नीलिमा से कुछ नहीं कहा, मगर नीलिमा शायद समझ गयी थी। या कोई और ही बात थी जो उसने कभी मम्मी को रुकने के लिए नहीं कहा।

जब वो हास्पिटल में एडमिट हुई तो मम्मी भाई के साथ फौरन चल दीं। बेटी की पहली औलाद के बारे में सोचकर ही उनका दिल खुशी से भरा जा रहा था। उनसे इन्तजार ही नहीं हो रहा था मगर नीलिमा के ससुराल वाले नहीं दिख रहे थे सिर्फ दामाद ही थे। उनको लगा, हो सकता है बाद में आएं।

बेटी की बेटी को हाथ में लेकर लगा नन्ही सी नीलिमा उनकी गोद में है, “बिल्कुल मेरी नीलिमा की तरह है”, उन्होंने उसके माथे पर प्यार करते हुए कहा।

संजीव कुछ नहीं बोले तो मम्मी फिर बोलीं, “बेटा! आप अपनी मम्मी से पूछ लीजिएगा, तो मैं नीलिमा को अपने साथ ले जाऊँगी। पहली औलाद तो मायके में ही होती है ना। मैंने तो पहले ही कहा था, मगर नीलिमा ने मना कर दिया था। आप…”, वो शायद कुछ जताना चाहती थीं।

“मैं मम्मी से बात करके बताऊंगा”, दामाद ने कहा था।

सासु माँ को भला क्या एतराज़ हो सकता था? हास्पिटल से जब छुट्टी मिली तो मम्मी नीलिमा के साथ उसके घर चलीं गयीं कि उसको जो सामान लेना हो ले ले फिर साथ ले आएंगी। घर में दाखिल हुईं तो पता चला कि नीलिमा की बड़ी ननद आई है। उन्होंने ही बच्ची को गोद में उठा रखा था। तभी एक छोटा बच्चा भागता हुआ आया बच्ची को लेने लगा।

“क्या कर रहे हो? पागल हो गए हो? इतनी छोटी है वो अभी, चोट लग जाएगी उसको। चलो जाओ खेलो तुम”, ये नीलिमा की ननद थी जो अपने बेटे को डांट रही थी। उसकी बात पर मम्मी मुस्कुरा दीं।

“मैं गलत थी, सब कितना ख्याल रखेंगे।” उन्होंने खुद से कहा और वहीं बैठने लगीं तो सासु माँ बोल पड़ी, “अरे समधन जी आप बहू के पास चली जाइए। यहाँ तो बड़ी गरमी है। आप अंदर ही बैठिये।  हम तो सब सह लेते हैं मजाल है आपकी बेटी को कोई तकलीफ होने दें। मेरी बेटी भी आई है। वो भी ऐसे ही रहती है मेरे साथ। कितनी बार बोला, भाभी के कमरे में चली जा, एसी चला लिया कर।  क्या हुआ बहू को मायके से मिला है? मगर मजाल है चली जाए।”

“कहती है, ‘मम्मी आदत खराब हो जाएगी तो मेरे बेटे को गरमी में नींद नहीं आएगी। अगर आपके कमरे में होती तो और बात थी।  हम किसी भी टाइम चला कर बैठ जाते।’ मैंने कहा किस्मत की बात है बेटा, तुम्हारी माँ के पास होता तो वो भी तुमको दे देती।” वो बोले जा रहीं थी।

तभी नीलिमा की ननद भी आ गयी वो भी बोलने लगी। मम्मी के तो समझ में ही नहीं आ रहा था।  ना किसी ने नीलिमा का हाल चाल लिया ना पूछा कब वापस आएगी। बल्कि ये लोग तो कुछ और ही…

वो उठकर नीलिमा के पास चलीं आईं। बच्ची नार्मल हुई थी। मगर  फिर भी नीलिमा को सहारे की जरूरत थी। उन्होंने एक नज़र बेटी के चेहरे पर डाली वो खामोशी से कुछ कर रही थी। मम्मी के आंखे भीगनें लगी थीं, कितनी बड़ी हो गई है उनकी बेटी की उनसे अपना दुःख छुपाने लगी थी।

जब वो उन दोनों को लेकर घर आईं तो उन्होने सोच लिया था जब तक नीलिमा पहले की तरह ना हो जाएगी उसे जाने ना देंगी। खुशकिस्मती से नीलिमा की भाभी उसकी दोस्त थी जो उससे बहुत प्यार करती थी।

मम्मी ने ताकत वाला लड्डू बनाया। जाने कितने मेवे, हल्दी, घी सब भर कर बनाया था कि उनकी बेटी जल्द से जल्द पहले की तरह मजबूत हो जाए। अपने सामने खिलातीं। कहतीं, “खाओ नहीं तो छुपा कर फेक दोगी।”  पहले जब दूध पीने की बारी आती तो कितनी नौटंकी करती लेकिन अब खामोशी से सब खा पी लेती।

“अरे बेटा सब खाओ पियो बाद में पतली हो जाना। अभी तुमको ताकत की जरूरत है, नहीं तो उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों में दर्द रहने लगेगा। कमर का तो पूछो मत कैसे तकलीफ होती है। जरा से देर बैठ ना पाओगी फिर…”, वो समझाती रहतीं और नीलिमा मुस्कुरा उठती। कितना सुकून था, हर दुख, हर परेशानी, हर जिम्मेदारी से बेनियाज कितना सुकून…

“मम्मी ने भेजा है बुलाने के लिए”, एक दिन कोई आया सुकून खत्म करने।

“मगर बेटा अभी तो सवा महीना नहीं हुआ”, मम्मी ने कहा मगर नीलिमा ने ही कह दिया कि अब वो एकदम ठीक है, चली जाएगी।

मगर, उन्होंने कहना चाहा तो उसने उनके गले में बाहें डालते हुए कहा, “मेरी प्यारी मम्मी! जाना तो है ही ना आज नहीं तो चार दिन बाद सही। आप परेशान ना हों। मैं एकदम ठीक हूँ। आपने अपनी बेटी को बहुत मजबूत कर दिया है। वो सब कर लेगी।”

मम्मी के सामने कितना भी आंसू छुपाने की कोशिश की मगर घर से निकलते निकलते वो बेकाबू होकर बाहर आ ही गए। मम्मी ने भी शायद जब्त किया था उनके आंखों से आंसू बहने लगे तो वो लौट कर उनसे लिपट कर रो दी बिल्कुल वैसे ही जैसे बिदाई पर रोई थी। भाभी भी रो दीं और बोली, “नीलो, तुम इस घर से बिदा जरूर हो रही हो मगर रिश्ता खत्म नहीं हुआ है। जब भी दिल करे इस घर के दरवाजे, हमारे दिल के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले रहेंगे। कभी भी खुद को अकेला ना समझना…”

“तुमको नौकरी की क्या जरूरत पड़ गयी नीलो? अभी तो तुम्हारी बिटिया छोटी है ना?” पांच महीने बाद जब नीलिमा ने बताया कि वो नौकरी करने लगी है तो मम्मी ने पूछा।

“मम्मी! आप फिक्र ना करिये। सब ठीक है। बस मेरा दिल घर में नहीं लग रहा था। सोचा थोड़ा वक्त बाहर रहूंगी तो अच्छा रहेगा। बिटिया को उसकी दादी और संजीव देख लेंगे। कुछ महीनों के लिए वो घर पर हैं। दूसरी नौकरी के लिए कई जगह इन्टरव्यू दिए हैं। जल्द ही मिल जाएगी नौकरी। तब तक मैंने सोचा किसी स्कूल में पढ़ा लूं। ज्यादा टाइम भी नहीं देना पड़ेगा और…”

वो उन्हें दिलासा दे रही थी। समझा रही थी और मम्मी की आंखें भीगी जा रहीं थी। उनकी छोटी सी नीलो बहुत बड़ी हो गई थी। बातें छुपाना सीख गयी थी कि मम्मी को तकलीफ ना हो।

ये बेटियां कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं। अपना दर्द माँ तक आने ही नहीं देना चाहतीं और माएँ भी बेटियों का दर्द बिना बताए ही जान जातीं हैं। कितना खूबसूरत रिश्ता होता है माँ और बेटी के बीच।  माँ चाहती है, वो सब दर्द सह ले मगर बेटी को ना सहना पड़ेगा और बेटी चाहती है उसकी तकलीफ माँ तक ना पहुंचे।

मूल चित्र : Canva Pro 

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