कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
कैसे ढूंढें ऐसा काम जो रखे ख्याल आपके कौशल और सपनों का? जुड़िये इस special session पर आज 1.45 को!
माँ के जगने से, जगता था, घर-आँगन, धूल भी छूकर उसे, बन जाती थी, पावन, पर, अब वो माँ, निस्तेज सी जगने लगी है, माँ! अब बूढ़ी लगने लगी है…
माँ के जगने से, जगता था, घर-आँगन, धूल भी छूकर उसे, बन जाती थी, पावन, पर, अब वो माँ, निस्तेज सी जगने लगी है, माँ! अब बूढ़ी लगने लगी है।
जली-कटी, सब सास की, सुन, हर उलझन को, जो लेती बुन, पर, उसकी चुप्पी और, बढ़ने लगी है, माँ! अब बूढ़ी लगने लगी है।
पकवानों में मृदुल, अमृत को घोल, भिखारी के भी, जो पूरे करती बोल, पर, चाय में चीनी कम पड़ने लगी है, माँ! अब बूढ़ी लगने लगी है।
स्वर से घर में, रौनकें भरती थी, जो, बच्चों संग शैतानियाँ, करती थी, जो, पर, जबान बहू की, छलनी करने लगी है, माँ! अब बूढ़ी लगने लगी है।
इस घर की, जो कभी रानी थी, खत्म होने को, शायद कहानी थी? अब वह बीते कल में, रहने लगी है, माँ! अब बूढ़ी लगने लगी है।
अब टूटा चश्मा, कमजोर नज़र है, अकेली, पगली! क्या रटने लगी है? माँ! अब बूढ़ी लगने लगी है, माँ! अब बूढ़ी लगने लगी है…
मूल चित्र : Canva Pro
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं एक अच्छी माँ कैसे बन सकती हूँ…
आज फिर-तुझे याद है ना माँ
ये दिन तुम्हारा है, चलो इसी बात पर एक सच बतलाती हूँ तुमको आज माँ!
तुम कहाँ हो माँ…अब तो एक बार आ जाओ ना माँ…
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!