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कभी सिर्फ अपने लिए भी, दिल में दबे अरमान पूरे करना चाहती हूं। नाते रिश्तेदार गर रूठ भी गए कोई गम नहीं, रूठे ज़मीर को मनाना है, सिर्फ अपने लिए !!
ज़िंदगी से इक लम्हा चुराना चाहती हूं…
कभी सिर्फ अपने लिए भी,
बढ़ती उम्र में से इक दिन जीना चाहती हूं।
दिल में दबे अरमान पूरे करना चाहती हूं।
कभी सिर्फ अपने भी,
सांसें भले फूल जाएं दौड़ना चाहती हूं।
कभी अपने लिए भी,
मंज़िल भले मिले न मिले पर कोशिश करना चाहती हूं।
सिर्फ अपने लिए…
नाते रिश्तेदार गर रूठ भी गए कोई गम नहीं,
रूठे ज़मीर को मनाना है,
सिर्फ अपने लिए !!
मूल चित्र : Pexels
कुछ सुकून के पल चाहती हूँ…
अब मैं कमला भसीन जैसा बनना चाहती हूँ…
यहां इक तू है, तो इक मैं भी तो हूं…
हां, मैं आत्मसम्मान हूं! तेरा आत्मसम्मान हूं!
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